बीजेपी के नेता नीतीश कुमार पर इसलिए कर रहे हैं लगातर हमले!
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जितनी शिद्दत से विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लगे हैं उतनी ही मजबूती से भाजपा के कुछ नेता उनका विरोध भी कर रहे हैं। कभी उनकी सत्ता के साथी रहे, बिहार के उप मुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद सुशील कुमार, नीतीश कुमार को लगातार घेरने की कोशिश कर रहे हैं।
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ऐसे में नीतीश कुमार इस समय दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। पहली चुनौती विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश को कामयाब करने की है, जबकि दूसरी चुनौती अपने पुराने साथियों को यह बताने की है कि अभी वह थके नहीं हैं।
दरअसल नीतीश कुमार को छोड़कर विपक्ष का दूसरा कोई ऐसा नेता नहीं है, जो भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश इतनी गंभीरता से कर रहा हो। नीतीश के इस कदम से सत्ताधारी पार्टी का बेचैन होना लाजिमी है। क्योंकि भाजपा को भी इस बात का आभास है कि अगर नीतीश कुमार अपने मकसद में कामयाब हो गए तो 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कड़ी टक्कर मिल सकती है।
नीतीश कुमार देश के इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्हे ना तो दबाव में लाया जा सकता है और ना ही उन्हें डराया या धमकाया जा सकता है। कथित तौर विपक्ष के लगभग सभी छोटे बड़े नेता भाजपा से डरे हुए हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि केंद्र की सरकार कभी भी उनके पीछे सीबीआई या ईडी लगा सकती है। आम तौर पर विपक्ष पहले ही यह आरोप लगा चूका है कि केंद्र की सरकार सीबीआई और ईडी का गलत इस्तेमाल कर रही है। इसलिए विपक्ष के अधिकांश नेता सीधे तौर पर वर्तमान सरकार के खिलाफ उतना ही बोलने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं,जितना बोलने से उनका नुकसान ना हो। सीधे तौर पर कहा जाय तो विपक्ष का हर वो नेता अपने आपको डरा हुआ महसूस कर रहा है, जिसने कुछ गलत किया हुआ है।
ऐसे में नीतीश कुमार अकेले ही इस मिशन पर लगे हए हैं। सम्भवतः चुनाव के आखिर तक उनकी यात्रायें ऐसी ही होती रहेंगी। हालांकि जिस मिशन में नीतीश कुमार लगे हैं, उसमें सभी पार्टियां साथ आएंगीं,अभी यह कहना मुश्किल है, लेकिन कुछ पार्टियां अभी से उनके संभावित गठबंधन से किनारा करने लगी हैं। ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक विपक्ष के पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने साफ़ तौर से कह दिया है कि वो 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस से एक समान दुरी बनाकर चुनाव मैदान में जाएंगे। यानी उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ेगी।
हालांकि बसपा सुप्रीमों मायावती का भी कुछ वैसा ही हाल है। वैसे मायावती ने स्पष्ट तौर से तो नहीं कहा है कि वह विपक्ष के साथ आएंगीं या नहीं आएंगी, पर संभावना ऐसी लग रही है कि अंत तक शायद वो अपने पत्ते ना खोलें। अब नीतीश कुमार के लिए एक कहावत बड़ी फिट बैठती है कि "मैं अकेला ही चला था ज़ानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।
2024 लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार के कारवां में अगर आठ-दस पार्टियां भी जुड़ गईं तो आगामी लोकसभा का चुनाव वाकई मजेदार होगा। सत्ताधारी पार्टी भाजपा को भी कड़ी टक्कर मिलती हुई दिखाई देगी। नीतीश कुमार की इसी कोशिश और उनकी कोशिश द्वारा होने वाले संभावित नुकसान को देखते हुए शायद भाजपा उन पर लगातार हमले कर रही है। भाजपा की कोशिश है कि वह घबड़ा कर अपने मिशन को रोक दें या फिर वैसी पहल ना करें जैसा कि अभी कर रहे हैं। ऐसे में अब देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार अपने मिशन को किस ऊंचाइयों तक लेकर जाते हैं।
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