आनंद मोहन के सात प्रतिशत वोटों पर नजर है नीतीश की!
अगर कोई बहुत बड़ी अड़चन नहीं आयी तो बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन हमेशा के लिए जेल से बाहर आ जाएंगे। बिहार की सरकार ने जेल नियमावली में संशोधन कर उनके बाहर निकलने का रास्ता साफ कर दिया है।
![]() बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार |
माना जा रहा है कि राजपूतों को लुभाने के लिए नीतीश कुमार ने ऐसा जानबूझकर किया है, ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में राजपूतों के वोटों के सहारे बिहार की अधिक से अधिक सीटें जीतीं जा सकें। हालाँकि नीतीश कुमार के इस निर्णय से आईएएस असोसिएशन ने नाराजगी व्यक्त की है। इस संशोधन के खिलाफ असोसिएशन ने कोर्ट जाने की तैयारी कर ली है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस समय विपक्षी एकता को लेकर देश भर के नेताओं से मिल रहे हैं। उन्होंने इस बार भाजपा को केंद्र से हटाने का संकलप ले लिया है। शायद वो इस समय हर वो हथकंडा अपना रहे हैं जिससे चुनाव में लाभ मिल सके। आनंद मोहन की रिहाई भी इसी नजरिये के रूप में देखा जा रहा है। नीतीश कुमार को अन्य पिछड़ा और दलित वर्ग के वोटों पर भरोसा है। उन्हें यकीन है कि महागठबंधन की वजह से दलित और पिछड़ा वर्ग का वोटर उनके साथ खड़ा रहेगा। उन्हें चिंता सिर्फ वहां के स्वर्ण वोटों की थी। शायद इसलिए उन्होंने जेल नियमावली में संशोधन कर बिहार के राजपूतों के दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश की है।
यहाँ बता दें कि बिहार में राजपूत वोटर सात प्रतिशत के आसपास हैं। इनकी संख्या भले ही कम हों लेकिन बिहार में राजपूत, आर्थिक और राजनैतिक दृष्टिकोण से बहुत आगे हैं। बिहार में आज भी जातिगत समीकरणों के आधार पर वोटिंग होती है। नीतीश कुमार ही नहीं बल्कि बिहार में सभी पार्टियां जातिगत समीकरणों के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करती हैं। नीतिश कुमार ने जो किया है ,ऐसा करने वाले देश के वो पहले नेता नहीं हैं। जिस मामले में आनंद मोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, वह घटना 4 दिसंबर 1994 में हुई थी।
बिहार के मुजफ्फरपुर में एक छोटन शुक्ल नाम के कथित अपराधी की हत्या हुई थी। मृतक आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी से ताल्लुक रखता था। उसकी हत्या के विरोध में आनंद मोहन की पार्टी के लोग मुजफ्फरपुर प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है थे। उसी दौरान गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया पटना से गोपालगंज अपनी सरकारी गाडी से लौट रहे थे ,उनकी सरकारी गाडी देखकर भीड़ ने उन पर हमला बोल दिया था। भीड़ ने बड़ी ही बेरहमी से उनकी पीट -पीट कर हत्या कर दी थी। उस भीड़ का नेतृत्व आनंद मोहन कर रहे थे। उस मामले में आनंद मोहन समेत कई अन्य लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था। वहां की स्थानीय अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी।
आनंद मोहन की तरफ से पटना हाई कोर्ट में अपील की गई थी, लेकिन पटना हाई कोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिली थी। उनकी फांसी की सजा बरकरार रही । जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, तो वहां से उनकी फांसी की सजा आजीवन कारावास में तब्दील हो गई थी। हालांकि आनंद मोहन एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने जे पी आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
खैर नीतिश कुमार ने जिस राजनैतिक फायदे के लिए जेल नियमावली में संसोधन किया है, जिसकी वजह से आनंद मोहन अब हमेशा के लिए जेल से बाहर आने वाले हैं। क्या नीतीश कुमार को उसका फायदा मिलेगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा एक समय के बाद आनंद मोहन को अपने पाले में कर ले। क्योंकि कथित तौर पर आनंद मोहन के ऊपर और भी कई मामले उजागर हो सकते हैं। भविष्य में उन पर ईडी और सीबीआई की जाँच भी हो सकती है । अगर भविष्य में आनंद मोहन के साथ ऐसा होता है तो फिर क्या होगा? इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लिहाजा नितीश कुमार ने जो दॉंव चला है वो कितना कामयाब होता यह देखने वाली बात होगी।
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