हमारे लोकतंत्र पर बुद्ध के आदर्शों का गहरा प्रभाव : राष्ट्रपति
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को यहां राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन किया। रत्नागिरी की पहाड़ियों पर स्थित यह स्तूप शांति का प्रतीक है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद |
इस स्तूप का निर्माण हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिराए जाने से पीड़ित एक जापानी बौद्ध ने किया था। वह महात्मा गांधी की शिक्षाओं से भी प्रभावित थे।
कोविंद राष्ट्रपति बनने से पहले बिहार के राज्यपाल रह चुके हैं। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत एक मंत्र - ‘नाम म्यो हो रेंगे क्यो’ के उच्चारण से की, जिसे जापान स्थित बौद्ध संप्रदाय निकिरेन ने दुनिया भर में प्रसिद्ध किया। विश्व शांति स्तूप के संस्थापक निचिदात्सो फूजी इस संप्रदाय से संबंधित थे।
इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल फागू चौहान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी मौजूद थे।
कोविंद ने कहा, ‘‘विश्व शांति स्तूप दुनिया में एकता और शांति की स्थापना तथा अहिंसा को बढावा देने के लिए बना है। इसकी आधारशिला तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने 1965 में रखी थी और इसका उद्घाटन चार साल बाद तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी गिरी ने उस समय किया था, जब देश महात्मा गांधी का जन्म शताब्दी उत्सव मना रहा था।’’
कोविंद ने कहा कि जब वह बिहार के राज्यपाल थे, उन्हें 2015 और 2016 के दौरान विश्व शांति स्तूप में कई कार्यक्रमों में आने का अवसर मिला। वह यहां 2018 में धर्मों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए भी आए थे।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस अवसर पर आसपास के देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका के साथ ही दूर एशिया, यूरोप और अमेरिका के बौद्ध मतावलंबियों का स्वागत करता हूं।’’
उन्होंने कहा, "हमारे लोकतंत्र पर बौद्ध धर्म के आदर्शो और प्रतीकों का गहरा प्रभाव पड़ा है। प्राचीन काल में बुद्ध के संदेश और अनुयायी एशिया के अधिकांश हिस्सों में फैले थे।"
इस समारोह में 13 देशों के करीब 300 विदेशी मेहमान भी पहुंचे हैं।
इस अवसर पर नीतीश कुमार ने कहा कि राजगीर में विवाद निपटारे के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाया जा रहा है।
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