2 से ज्यादा बच्चे हैं तो सरकारी नौकरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का फैसले को माना सही

Last Updated 29 Feb 2024 04:41:42 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी रोजगार पाने के लिए राजस्थान सरकार के दो बच्चों के पात्रता मानदंड को बरकरार रखा है और कहा है कि यह भेदभावपूर्ण नहीं है तथा न ही यह संविधान का उल्लंघन करता है।


राजस्थान विभिन्न सेवा (संशोधन) नियम, 2001 उन अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरी पाने से रोकता है जिनके दो से अधिक बच्चे हैं।

शीर्ष अदालत ने दो बच्चों के मानदंड को बरकरार रखते हुए भूतपूर्व सैनिक रामजी लाल जाट द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिन्होंने 2017 में सेना से सेवानिवृत्ति के बाद 25 मई, 2018 को राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी के लिए आवेदन किया था।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि संबंधित नियम गैर-भेदभावपूर्ण है और यह संविधान का उल्लंघन नहीं करता।

राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम, 1989 के नियम 24(4) के अनुसार, ऐसा अभ्यर्थी सेवा में नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा, जिसके एक जून 2002 को या इसके बाद दो से अधिक बच्चे हों।

नियम के आधार पर जाट की उम्मीदवारी यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि उनके एक जून 2002 के बाद दो से अधिक बच्चे हैं और राजस्थान विभिन्न सेवा (संशोधन) नियम, 2001 के अनुसार वह राज्य में सरकारी रोजगार के लिए अयोग्य हैं।

उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसने उनकी अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जिस नियम के तहत उन्हें अयोग्य ठहराया गया है वह नीति के दायरे में आता है और अदालत द्वारा किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

हालाँकि, भूतपूर्व सैनिक ने तर्क दिया कि दो बच्चों के पात्रता मानदंड निर्धारित करने वाले नियमों के अलावा, पूर्व सैनिकों को समायोजित करने के लिए ऐसे नियम हैं जहाँ दो से अधिक बच्चे न होने की शर्त निर्दिष्ट नहीं की गई है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारा विचार है कि ऐसी याचिका अपीलकर्ता के मामले को आगे नहीं बढ़ाती है। यह निर्विवाद है कि अपीलकर्ता ने राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भर्ती के लिए आवेदन किया था और ऐसी भर्ती राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम, 1989 द्वारा शासित होती है।’’

इसने कहा, "1989 नियम को विशेष रूप से 2001 के नियमों से जुड़ी अनुसूची में क्रम संख्या 104 पर सूचीबद्ध किया गया है। इसके मद्देनजर, हमें उच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण में हस्तक्षेप करने का कोई आधार दिखाई नहीं देता।"

भाषा
नई दिल्ली


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