क्यों मचा है, एक बहन के आंगन में कोहराम?

Last Updated 07 May 2023 05:22:26 PM IST

भारत का पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर आज अशांत है। हिंसा की आग में जल रहा है। सात बहनों के नाम से विख्यात पूर्वोत्तर की सात बहनों में से एक बहन के आँगन में कोहराम मचा है। हालांकि मणिपुर में हिंसा की वारदातें पहले भी होती थीं, लेकिन अबसे पहले वहां के कुछ लोग मामले को सुलझाने की कोशिशें करने लगते थे।


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 इस बार वहां वैसा कुछ भी नहीं हो रहा है। जो स्थानीय लोग हिंसक मामलों को शांत कराने में अपनी अहम् भूमिका निभाते थे, आज वही लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। आखिर वहां खुनी संघर्ष क्यों शुरू हुआ है। अब तक उस संघर्ष में 54 लोगों की मौत हो जाने के बाद भी मामला शांत क्यों नहीं हो रहा है। दरअसल इस बार सारा विवाद शुरू हुआ है,मेइती समुदाय को आरक्षित किये जाने को  लेकर। वहां का बहुसंख्यक समाज मेइती, वर्षों से अपने आपको अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग कर रहा था। वह मामला हाई कोर्ट में चल रहा था। कुछ दिनों पहले हाई कोर्ट का एक आदेश आया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार देखे कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल क्यों नहीं किया जा रहा है।

 इस आदेश का यह कतई मतलब नहीं था कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल कर लिया गया।लेकिन वहां की दो अनुसूचित जन जातियां कुकी और नागा ने समझ लिया की मेइती समुदाय अनुसूचित जाति में शामिल हो गया। बस क्या था ,शुरू हो गया बवाल। पहले कुकी और नागा ने वहां हंगामा खड़ा किया। सड़कों पर आगजनी की। गाड़ियों में आग लगा दी गईं। कुछ दिनों तक इस हंगामे में सिर्फ नागा और कुकी समुदाय के लोग ही शामिल रहे। जब बवाल बढ़ने लगा तो उनके विरोध में मेइती समुदाय के लोग भी खड़े हो गए।

फिर शुरू हो गई जातीय हिंसा। दोनों तरफ से हिंसात्मक रवैया अपनाया जाने लगा। अब तक जो लोग ऐसे मामलों को सुलझाने का काम करते थे, वो सबके सब हिंसा में शामिल हो गए। अब उन्हें समझाने की जिम्मेवारी सिर्फ सुरक्षा बालों की है। वहां की सड़कों पर चारों तरफ सेना और स्थानीय पुलिस के जवान ही दिख रहे हैं। मणिपुर की सामाजिक ढाँचे की बात करें तो वहां मेइती समुदाय हिन्दू है ,जिसकी आबादी 55 प्रतिशत के आस-पास है। वहां के कानून के मुताबिक़ इन्हे पहाड़ों पर ना तो रहने की इजाजत है और ना ही इस समुदाय के लोग वहां जमीन खरीद सकते हैं।

इस समुदाय के लोग घाटी में रहते हैं। जबकि नागा और कुकी पहाड़ों पर रहते हैं। इनकी आबादी भी कम है। नागा और कुकी समुदाय को ऐसा लगता है कि उनके अधिकार क्षेत्र में दखल करने की कोशिश की जा रही है। नागा और कुकी वहां की अनुसूचित जन जाति में शामिल हैं। यानि कुल मिलाकर यह, एक तरह से अधिकारों के जाने और अधिकारों में दखल का मामला बनाया जा रहा है। स्थानीय लोग बिना हकीकत समझे एक दूसरे को मारने काटने पर तुले हुए हैं।  

इन लोगों को समझाने वाले लोग शायद मामला सुलझाने की बजाय उस लड़ाई में घी डालने का काम कर रहे हैं।  अच्छा होता कि, राज्य और केंद्र की सरकार इस मामले को गंभीरता से देखे। मामले को सुलझाए ताकि पूर्वोत्तर का एक सुन्दर सा, एक प्यारा सा राज्य सुरक्षित रह सके। वहां सब एक दूसरे से मिल जुलकर रह सकें। ताकि सात बहनों में से एक बहन के रूप में शामिल मणिपुर, अपनी पुरानी गरिमा को पुनः हासिल कर सके।
 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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