भाजपा को घेरे या घर बचाए, दोहरे संकट में कांग्रेस
इस समय कांग्रेस संकट में है। जनवरी 2023 के पहले भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जहां राहुल गांधी की छवि में गुणात्मक सुधार देखने को मिला था। वहीं भारत जोड़ो यात्रा को मिले समर्थन से कांग्रेसी कार्यकर्ता भी उत्साहित हुए थे, लेकिन पिछले 2 महीनों के अंदर ही कांग्रेस कई तरह के संकटों से घिर गई। एक तरफ राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई, तो दूसरी तरफ उनकी पार्टी के कई पूर्व और वर्तमान नेता बगावती तेवर अपनाए हुए हैं।
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ताजा मामला राजस्थान का है। कभी राजस्थान के उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी हाईकमान की चिंताएं बढ़ा दी हैं। राजस्थान की तरह कभी छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व को लेकर इसी तरह का हंगामा मचा हुआ था। कभी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे टी एस देव सिंह भी पार्टी पर,अपने आप को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बनाते रहे। वह पार्टी हाईकमान को याद दिलाते रहे कि बघेल को ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया था, उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाए। सीधे तौर पर उन्होंने पार्टी से बातें नहीं की थी, लेकिन उनके कार्यकर्ता और उनके समर्थक मीडिया के जरिए पार्टी हाईकमान तक उनके इरादों की जानकारी देते रहे। कुछ ऐसा ही मामला राजस्थान में भी देखने को मिला था।
राजस्थान में सचिन पायलट के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था। पार्टी को बहुमत तो नहीं मिला था, लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप मे उभरकर जरूर सामने आई थी। सचिन ने उस समय मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की थी, लेकिन पार्टी हाईकमान ने अशोक गहलोत पर दांव खेला और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था। सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बना दिया गया था। ऐसा लगने लगा था कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन सचिन पायलट की मुख्यमंत्री बनने की चाहत खत्म नहीं हो पाई। लगभग दो साल के बाद उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था। जिस समय राजस्थान में मुख्यमंत्री के खिलाफ सचिन पायलट खड़े हुए थे, उसी समय छत्तीसगढ़ में टी एस देव सिंह ने अपने ढाई साल के कार्यकाल की बात से पार्टी हाईकमान को अवगत करा दिया था।
दरअसल छत्तीसगढ़ में चुनाव के दौरान भूपेश बघेल और टी एस देव सिंह, जय वीरू की जोड़ी के रूप में काम कर रहे थे। दोनों की मेहनत रंग लाई थी।कांग्रेस को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत में मिल गया था। मुख्यमंत्री बनने की दावेदारी 4 लोगों ने की थी। पार्टी हाईकमान ने टी एस देव सिंह और भूपेश बघेल को यह क्या कर समझा लिया था कि भूपेश बघेल ढाई साल तक मुख्यमंत्री रहेंगे, उसके अगले ढाई साल टी एस देव सिंह मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। टी एस देव सिंह निराश हुए थे, लेकिन उन्होंने बगावती तेवर नहीं अपनाया था।
राजस्थान में सचिन पायलट ने बगावती तेवर अपना रखा है। सचिन पायलट 11 अप्रैल यानी मंगलवार को जयपुर के शहीद स्मारक स्थल पर अपने ही सरकार के खिलाफ एक दिन के अनशन पर बैठ गए। हालांकि अनशन पर बैठने का कारण उन्होंने वसुंधरा सरकार के दौरान हुए घोटाले को उजागर करना बताया है। पार्टी हाईकमान ने सचिन पायलट के इस पहल को गलत बताया है। राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष ने भी सचिन पायलट को गलत बताने की कोशिश है। उधर छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस देव सिंह , जो कभी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे, उन्होंने भी सचिन को लेकर बहुत स्पष्ट तरीके से कुछ नहीं कहा है।
छत्तीसगढ़ और राजस्थान दोनों ही राज्यों में इसी वर्ष चुनाव होने वाले हैं। पार्टी के बड़े नेता दोनों की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए हैं। पार्टी को लगता है कि छत्तीसगढ़ में अगर भूपेश बघेल कांग्रेस के लिए जरूरी है तो टी एस देव सिंह भी उतना ही महत्वपूर्ण हैं। उसी प्रकार राजस्थान में सचिन पायलट अगर जरूरी हैं तो अशोक गहलोत को भी कमतर करके नहीं आंका जा सकता है। राहुल गांधी केरल के वायनाड की यात्रा पर हैं। पूरी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगी हुई है। पार्टी इस समय रोजगार, महंगाई और अडानी को लेकर लगातार प्रधानमंत्री को घेरने की कोशिश कर रही है। ऐसे वक्त में कांग्रेस के अपने ही घर में उठापटक शुरू हो गई है।
सचिन पायलट को लेकर भले ही कुछ लोग कह रहे हों कि वह भाजपा में जा सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों का सोचना गलत है। सचिन पायलट भाजपा में कभी नहीं जाएंगे, क्योंकि अगर वह भाजपा में जाएंगे, तो उनको भाजपाई मुख्यमंत्री पद का दावेदार कभी नहीं बनाएंगे। जबकि सचिन पायलट को राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के अलावा कुछ चाहिए ही नहीं। लिहाजा वो रहेंगे कांग्रेस में ही, इस दबाव के कारण संभव है कि कांग्रेस हाईकमान उनके समर्थकों को ज्यादा टिकट दे दे, जैसा कि सचिन चाह रहे हैं। कांग्रेस इस समय मोदी को घेरने के प्रयास में लगी है लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने घर के सदस्यों को पार्टी से जोड़े रखने की है।
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