Communal Riots को रोकने की जिम्मेदारी किसकी?
1947 में देश आजाद हो गया था। भारत को अंग्रेजों से मुक्ति मिल गई थी। माना जाने लगा था कि सब कुछ ठीक होगा जाएगा, लेकिन 1949 में भारत के विभाजन के दौरान ऐसा रक्तपात हुआ। ऐसी हिंसा हुई, जिसका दर्द वर्षों तक महसूस किया गया। हजारों लाखों लोग बेघर हुए।
![]() साम्प्रदायिक दंगों को रोकने की जिम्मेदारी किसकी? |
धीरे-धीरे माहौल शांत हुआ, लगभग ग्यारह वर्षों तक सब कुछ ठीक रहा। ऐसा लगने लगा था कि अब शायद लोग जाति और धर्म के नाम पर लड़ने की मानसिकता से ऊपर उठ चुके हैं, लेकिन मुम्बई के वर्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगे के बाद एक बार फिर देश, साम्प्रदायिक दंगों का शिकार होने लगा। उसके बाद जो सांप्रदायिक हिंसा का दौर शुरू, हुआ उसका सिलसिला आज तक जारी है। किसी न किसी रूप में, किसी ना किसी बहाने आज भी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं।
ताजा मामला रामनवमी के अवसर पर देशभर के कई राज्यों में हुए सांप्रदायिक हिंसा का है। 21वीं सदी में भारत के लोग विकासशील से विकसित होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन बौद्धिकता के मामले में आज भी भारत के लोग कमोबेश 70 साल पहले जैसे ही हैं।
सवाल यह है कि आखिरकार सांप्रदायिक दंगे क्यों होते हैं? किसकी वजह से होते हैं? अलग-अलग धर्मों के जो लोग आपस में मिलजुल कर रहने का दावा करते हैं, अचानक एक दूसरे के त्योहारों में शरीक होकर खुशियां मनाने का दम भरते हैं, वही आपस में क्यों लड़ने लगते हैं? सांप्रदायिक दंगों के दौरान सरकारी संपत्तियों का भारी नुकसान होता है,देर-सबेर इसकी भरपाई भी हो जाती है, लेकिन दंगों के बाद जो इंसानियत का नुकसान होता है, जो भावनाओं का नुकसान होता है, जो बौद्धिकता का नुकसान होता है, उसकी भरपाई करने में बरसो लग जाते हैं।
केंद्र की सरकार हो या प्रदेश की, हमेशा दावा यही किया जाता रहा है कि दंगों पर रोक लगाई जाएगी। ऐसा माहौल तैयार किया जाएगा, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे ना हों, बावजूद इसके सांप्रदायिक दंगों का होना बदस्तूर जारी है।
अभी हाल में राम नवमी के पावन पर्व पर जब जुलूस निकाला गया तो उसे बाधित करने की कोशिश की गई। सवाल यह है कि रामनवमी के जुलूसों में किसने बाधा पहुंचाने की कोशिश की? जाहिर सी बात है सीधे-सीधे हिंदू धर्म के लोगों ने दंगा फैलाने का आरोप मुस्लिम धर्म के लोगों पर लगा दिया।
व्यवहारिक तौर पर ऐसा मान भी लिया गया, क्योंकि सबको यही पता है कि अपने घर में कोई आग नहीं लगाता है। लेकिन यहां बता दें कि अपना घर और धर्म के घर में जमीन आसमान का अंतर होता है। धर्म के प्रति लगाव की बात तो सभी करते हैं। लेकिन कई बार देखा गया है कि कुछ खुराफ़ाती लोग अपने ही घर मे आग लगाकर माहौल खराब करने की कोशिश करते हैं।
बिहार के कई जिलों में हिंसा हुई है। बिहार शरीफ, सासाराम और भागलपुर में हालात अभी भी बिगड़े हुए है। माहौल तनावपूर्ण है। उधर वेस्ट बंगाल के कई जिलों में सांप्रदायिक हिंसा के बाद तनाव व्याप्त है। आपको यहां बता दें कि आजादी मिलने के बाद देश के लोगों ने पहला सांप्रदायिक हिंसा 1949 में देखा था।
जिस वक्त देश का विभाजन हो रहा था। कुछ छोटे-मोटे दंगों को छोड़ दें तो, उस मामले के शांत हो जाने के बाद 1961 तक भारत में कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ था। यानी लगभग 11 वर्षों तक सांप्रदायिक दंगों से प्रभावित लोग अपने अपने जख्मों को भूलने लगे थे। लेकिन 1974 में मुंबई के वर्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगे के बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड बयूरो के मुताबिक 2016 से 2020 तक साम्प्रदायिक दंगों को लेकर 34000 मामले दर्ज किए जा चुके थे। 2020 के बाद में देश की राजधानी दिल्ली में भी सैकड़ों मामले दर्ज हुए। यह सत्य है कि खुराफ़ाती या कट्टर लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आएंगे। वो माहौल खराब करने का प्रयास करते ही रहेंगे। लेकिन यह भी सत्य है कि शासन, प्रशासन और पुलिस चाह ले तो दंगा तो दूर की बात है ,कोई वैसा करने की सोच भी नहीं सकता।
आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी इतनी सी बात अभी तक समझ नहीं आई। आजादी के इतने वर्षों बाद समझ नहीं आयी कि कुछ लोगों की दुष्टता के कारण हजारों बेगुनाह लोग क्यों परेशान होते हैं। कितने मासूम लोग इन दंगों की भेंट चढ़ जाते हैं, तो यह मान लेना चाहिए कि आज भी देश लोग भले ही आर्थिक रूप से तरक्की कर लिए हों, इंसानियत के मामलों में बहूत पीछे हैं। दूसरी तरफ देश के जिन नेताओं को ऐसे मामलों को रोकने की जिम्मेवारी मिली है, उन्हीं में से अधिकांश इन्हें भड़काने की कोशिश क्यों करते हैं? इन साम्प्रदायिक दंगों का कौन है दोषी असली दोषी?
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