9 दिसम्बर को पूरी तैयारी के साथ आए थे चीनी सैनिक, यांग्त्से पठार पर कब्जा करने की फिराक में है चीन
वर्ष 2008 में महात्मा बुद्ध की मूर्ति तोड़ने के बाद से ही चीन तवांग क्षेत्र के खूबसूरत यांग्त्से नदी और झरने वाले पठार को कब्जाने की फिराक में है।
![]() 9 दिसम्बर को पूरी तैयारी के साथ आए थे चीनी सैनिक |
नौ दिसम्बर को यांग्त्जी सेक्टर में झड़प से पांच दिन पहले चीनी सैनिक पेट्रोलिंग करने के बाद यहां ठहर गए थे और भारतीय सैनिकों ने उन्हें डांट-डपटकर वापस भेज दिया था। उसके बाद चीनी सैनिक नौ दिसम्बर को पूरी तैयारी के साथ पत्थर और डंडे लेकर आए थे क्योंकि पांच दिन पहले चीनी सैनिकों के लौटने के बाद भारतीय सैनिक भी पीछे हट गए थे।
उन्होंने इस बात का अंदाजा नहीं लगाया कि चीनी सैनिक तैयारी करने के लिए गए हैं क्योंकि उनकी संख्या कम थी। बाद में चीनी 600 से अधिक सैनिकों को लेकर आए थे। जब भारतीय सैनिकों ने उन्हें वापस जाने को कहा तो चीनी सैनिकों की तरफ से पथराव हुआ जिसमें हमारे कुछ सैनिक घायल हुए।
फिर भारतीय सैनिकों ने भी मजबूती के साथ उनका मुकाबला करते हुए उन्हें खदेड़ दिया। इसी बीच फ्लैग मीटिंग हुई और मामले को शांत कर दिया गया लेकिन अरु णाचल के एक बड़े हिस्से पर चीन की नजर बहुत पहले से लगी है। तवांग के बुद्ध सर्किट को चीन दक्षिणी तिब्बत कहकर अपना मानता है। इसी साल मई में चीनी सेना ने अरुणाचल के एक 21 वर्षीय युवक का असापिला से अपहरण कर लिया था और बाद में उसे 19 दिनों के बाद भारतीय सेना को लौटा दिया था। युवक का अपहरण कब्जा करने की साजिश का हिस्सा था।
1962 के युद्ध से ही चीन चार संवेदनशील क्षेत्रों पर नजर गड़ाए हुए है। इनमें असपिला, लोंगज़ू, बीसा और माझा हैं। यहां चीन बार-बार घुसपैठ करता है और इस बहाने भारतीय सीमा को परिवर्तित करता है। चीन पूरे असपिला क्षेत्र को अपना बताता है। इस क्षेत्र में चीन ने अपनी तरफ पक्की सड़क बना ली है। वर्ष 1975 में चीनी सेना का निशाना तुलुंग-ला था, जहां झड़प में असम राइफल के चार जवान शहीद हुए थे। 2016 में चीनी सेना ने यांग्त्से में घुसपैठ की कोशिश की थी।
बड़ा विवाद 2008 में हुआ जब चीनी सैनिकों ने आईटीबीपी और भारतीय सेना द्वारा यांग्त्से पठार में स्थापित की गई बुद्ध की मूर्ति को तोड़ दिया था। तब भारतीय सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया था लेकिन वह बार-बार इस पठार पर अपना कब्जा करना चाहते हैं क्योंकि यांग्त्से नदी जिस पहाड़ी से आती है, वह 17000 फीट की ऊंचाई पर है और यांग्त्से पठार 14000 फीट की ऊंचाई पर है। इस पठार में टेंट या पक्के स्ट्रक्चर बनाए जा सकते हैं, बाकी इलाका पहाड़ी है। सर्दियों में यहां बर्फ पड़ जाती है। मौसम का फायदा उठाकर चीन ने इस क्षेत्र को फिर कब्जाने की कोशिश की।
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