देश में पुरुष व महिला के बीच ही शादी की अनुमति : केंद्र
समलैंगिकों के विवाह को मान्यता देने के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट से कहा कि भारतीय कानून में अभी केवल जैविक पुरुष व जैविक महिला के बीच ही शादी की अनुमति है।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया है, लेकिन शादी की बात नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने सभी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करने व उसका उत्तर देने के लिए समय देते हुए सुनवाई 30 नवम्बर के लिए स्थगित कर दी है।
पीठ अभिजीत अय्यर मित्रा, वैभव जैन, डॉ. कविता अरोड़ा, ओसीआई कार्ड धारक जॉयदीप सेनगुप्ता व उनके साथी रसेल ब्लेन स्टीफेंस की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि स्पाउस का अर्थ पति और पत्नी है।
विवाह विषमलैंगिक जोड़ों से जुड़ा एक शब्द है। इस प्रकार नागरिकता कानून के संबंध में कोई विशिष्ट जवाब दाखिल करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि कानून जैसा भी है, जैविक पुरु ष और जैविक महिला के बीच विवाह की अनुमति है।
जॉयदीप सेनगुप्ता और स्टीफेंस की ओर से पेश हुए वकील करु णा नंदी ने बताया कि जोड़े ने न्यूयॉर्क में शादी की है। उनके मामले में नागरिकता अधिनियम 1955, विदेशी विवाह अधिनियम 1969 और विशेष विवाह अधिनियम 1954 कानून लागू होता है।
उन्होंने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 7 ए (1) (डी) पर प्रकाश डाला। जो विषमलैंगिक, समान-लिंग या समलैंगिक पति-पत्नी के बीच कोई भेद नहीं करता है। इसमें प्रावधान है कि भारत के एक विदेशी नागरिक से विवाहित एक व्यक्ति, जिसका विवाह पंजीकृत है और दो साल से अस्तित्व में है, को ओसीआई कार्ड के लिए जीवनसाथी के रूप में आवेदन करने के लिए योग्य घोषित किया जाना चाहिए।
वकील ने कहा कि हमारे अनुसार, यह एक बहुत ही सीधा मुद्दा है। नागरिकता कानून विवाहित जोड़े के लिंग पर मौन है.. राज्य को केवल पंजीकरण करना है। इसलिए यदि केंद्र जवाब दाखिल नहीं करना चाहता है, तो कोई बात नहीं। हमें कोई आपत्ति नहीं है।
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