बोफोर्स की जांच 2004 से 2014 तक शासन करने वालों ने बिगाड़ी
सीबीआई के पूर्व प्रमुख आरके राघवन ने कहा है कि ‘बोफोर्स’ मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किस तरह एक पार्टी की सरकार ने एक सही मामले की जांच को पलीता लगा दिया,जिसके पास बहुत कुछ छिपाने को है।
![]() ‘बोफोर्स’ मामला |
उन्होंने कहा कि अदालत में मामला न टिक पाने के लिए वे लोग दोषी हैं जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004 से 2014 तक जांच एजेंसी को नियंत्रित किया।
भ्रष्टाचार का यह मामला 1,437 करोड़ रुपए के हॉवित्जर तोप सौदे में कथित रित से जुड़ा है जिसकी वजह से 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था। स्वीडन की अस्त्र निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ इस सौदे पर 1986 में हस्ताक्षर हुए थे।
आरोप था कि कंपनी ने नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और नौकरशाहों को लगभग 64 करोड़ रुपए की रित दी थी। चार जनवरी 1999 से 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई निदेशक के रूप में मामले की जांच करने वाले राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड’ में कांग्रेस की भूमिका के बारे में आलोचनात्मक रूप से लिखा है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि यह पुष्टि करना कठिन है कि क्या भुगतान वास्तव में पार्टी के लिए था।
मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी आरोप थे। राघवन ने अपने आगामी संस्मरण में लिखा है, यह संभव है कि कुछ भुगतान कांग्रेस पार्टी के लिए रहा हो। हालांकि, इसकी पुष्टि करना कठिन है। वर्ष 1991-96 में जहां कांग्रेस नेता पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे, वहीं 2004 से 2014 तक भी मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। नवम्बर 1990 से जून 1991 तक कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर के नेतृत्व में अल्पमत की सरकार थी।
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