मन की बात में PM मोदी ने की अपील, कहा- लोकल खिलौनों के लिए वोकल बनें

Last Updated 30 Aug 2020 11:43:59 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' रेडियो कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश में खिलौना कारोबार को बढ़ाने की जरूरत बताई है। उन्होंने 'लोकल के लिए वोकल' होने पर फिर से जोर दिया।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को 'मन की बात' के दौरान देश की युवा प्रतिभाओं से भारतीय थीम वाले गेम्स बनाने की अपील की।

मोदी ने कहा कि हमारे देश में लोकल खिलौनों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। भारत के कुछ क्षेत्र टॉय क्लस्टर्स यानी खिलौनों के केंद्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं। कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आंध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी कई ऐसे नाम हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा, आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि ग्लोबल टॉय इंडस्ट्री सात लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की है। सात लाख करोड़ रुपये का इतना बड़ा कारोबार, लेकिन भारत का हिस्सा उसमें बहुत कम है। अब आप सोचिए कि जिस राष्ट्र के पास इतनी विरासत हो, परंपरा हो, विविधता हो, युवा आबादी हो, क्या खिलौनों के बाजार में उसकी हिस्सेदारी इतना कम होना अच्छा लगेगा क्या?

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, मैं अपने स्टार्टअप मित्रों, नए उद्यमियों से कहता हूं कि आइए मिलकर खिलौने बनाएं। अब सभी के लिए लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने का समय है। आइए हम अपने युवाओं के लिए कुछ नए प्रकार के, अच्छी क्वालिटी वाले, खिलौने बनाते हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल भी हों।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अब कंप्यूटर और स्मार्टफोन के इस जमाने में कंप्यूटर गेम्स का भी बहुत ट्रेंड है। लेकिन, इनमें भी जितने गेम्स होते हैं, उनकी थीम भी अधिकतर बाहर की होती है। हमारे देश में इतने आइडियाज हैं, बहुत समृद्ध हमारा इतिहास रहा है, क्या हम उन पर गेम्स बना सकते हैं? मैं देश के युवा टैलेंट से कहता हूं, आप भारत में गेम्स बनाइए और भारत के भी गेम्स बनाइए। कहा भी जाता है कि चलो, खेल शुरू करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ऐप इनोवेशन चैलेंज में हमारे युवाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। करीब सात हजार एंट्रीज आईं।

मोदी ने पोषण को जनांदोलन बनाने पर दिया जोर, सितंबर में मनेगा पोषण माह

मोदी ने न्यूट्रिशन (पोषण) पर जोर देते हुए कहा है कि सितंबर को पोषण माह के रूप में मनाया जाएगा। जिस तरह से स्कूलों की क्लास में रिपोर्ट कार्ड बनता है, उसी तरह से न्यूट्रिशियन कार्ड की भी शुरूआत की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' करते हुए देश में न्यूट्रिशन को जनांदोलन बनाने की अपील की।

मोदी ने कहा, हमारे यहां के बच्चे, हमारे विद्यार्थी, अपनी पूरी क्षमता दिखा पाएं, अपना सामथ्र्य दिखा पाएं, इसमें बहुत बड़ी भूमिका न्यूट्रिशन (पोषण) की भी होती है। पूरे देश में सितंबर महीने को पोषण माह के रूप में मनाया जाएगा। नेशन और न्यूट्रिशन का बहुत गहरा संबंध होता है। हमारे यहां एक कहावत है -- यथा अन्नम तथा मन्नम। यानी जैसा अन्न होता है, वैसा ही हमारा मानसिक और बौद्धिक विकास होता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शिशु को गर्भ में, और बचपन में, जितना अच्छा पोषण मिलता है, उतना अच्छा उसका मानसिक विकास होता है और वो स्वस्थ रहता है। पोषण का मतलब केवल इतना ही नहीं होता है कि आप क्या खा रहे हैं कितना खा रहे हैं, कितनी बार खा रहे हैं। इसका मतलब है कि आपके शरीर को कितने जरूरी पोषक तत्व मिल रहे हैं। आपको आयरन, कैल्सियम, सोडियम मिल रहे हैं या नहीं? विटामिन्स मिल रहे हैं या नहीं। यह सब पोषण के तत्व हैं।

प्रधानमंत्री ने न्यूट्रिशन के इस आंदोलन में जनसहभागिता की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में, इस दिशा में, देश में, काफी प्रयास किए गए हैं। खासकर हमारे गांवों में इसे जनभागीदारी से जनांदोलन बनाया जा सकता है। पोषण सप्ताह हो, पोषण माह हो, इनके माध्यम से ज्यादा से ज्यादा जागरूकता पैदा की जा रही है। स्कूलों को जोड़ा गया है। बच्चों के लिए प्रतियोगिताएं हों, उनमें जागरूकता बढ़े, इसके लिए लगातार प्रयास जारी है। जैसे क्लास में एक क्लास मॉनीटर होता है, उसी तरह न्यूट्रिशन मॉनीटर भी हो, रिपोर्ट कार्ड की तरह न्यूट्रिशियन कार्ड भी बने, इस तरह की भी शुरूआत की जा रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत एक विशाल देश है, खान-पान में ढेर सारी विविधता है। हमारे देश में छह अलग-अलग ऋतुएं होती हैं, अलग-अलग क्षेत्रों में वहां के मौसम के हिसाब से अलग-अलग चीजें पैदा होतीं हैं। इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हर क्षेत्र के मौसम, वहां के स्थानीय भोजन और वहां पैदा होने वाले अन्न, फल, सब्जियों के अनुसार एक पोषक डाइट प्लान बने।

मोदी की शिक्षकों से अपील - नई शिक्षा नीति का लाभ छात्रों तक पहुंचाएं

प्रधानमंत्री मोदी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लाभ छात्रों तक पहुंचाने के लिए शिक्षकों से अपील की है। उन्होंने रविवार को मन की बात में आगामी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस की चर्चा करते हुए कोरोना काल में शिक्षकों की भूमिका की सराहना की।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, कुछ दिनों बाद, पांच सितंबर को हम शिक्षक दिवस मनाएंगे। हम सब जब अपने जीवन की सफलताओं को, अपने जीवन की यात्रा को देखते हैं तो हमें अपने किसी न किसी शिक्षक की याद अवश्य आती है। तेजी से बदलते हुए समय और कोरोना के संकट काल में हमारे शिक्षकों के सामने भी समय के साथ बदलाव की एक चुनौती लगती है। मुझे खुशी है कि हमारे शिक्षकों ने इस चुनौती को न केवल स्वीकार किया, बल्कि उसे अवसर में बदल भी दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पढ़ाई में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कैसे हो, नए तरीकों को कैसे अपनाएं, छात्रों को मदद कैसे करें, यह हमारे शिक्षकों ने सहजता से अपनाया है और अपने स्टूडेंट्स को भी सिखाया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, आज, देश में, हर जगह कुछ न कुछ इनोवेशन हो रहे हैं। शिक्षक और छात्र मिलकर कुछ नया कर रहे हैं। मुझे भरोसा है कि जिस तरह से देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है, हमारे शिक्षक इसका भी लाभ छात्रों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएंगे।

पर्व और पर्यावरण में गहरा नाता

मोदी ने कहा कि हमारे पर्व और पर्यावरण के बीच बहुत गहरा नाता रहा है। आम तौर पर ये समय उत्सव का है। जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं। जिससे कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग और उत्साह तो है ही, मन को छू लेने वाला अनुशासन भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, लोग अपना ध्यान रखते हुए, दूसरों का ध्यान रखते हुए, अपने रोजमर्रा के काम भी कर रहे हैं। देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है। गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो ज्यादातर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, हम, बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात अवश्य ध्यान में आएगी-हमारे पर्व और पर्यावरण। इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता रहा है। जहां एक ओर हमारे पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सह जीवन का संदेश छिपा होता है तो दूसरी ओर कई सारे पर्व प्रकृति की रक्षा के लिए ही मनाए जाते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने थारू आदिवासी समाज की बरना नामक परंपरा की सराहना की। उन्होंने कहा कि बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में 60 घंटे के बरना का पालन करते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारू समाज के लोगों ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और ये सदियों से है। इस दौरान न कोई गांव में आता है, न ही कोई अपने घरों से निकलता है और लोग मानते हैं कि अगर वो बाहर निकले या कोई बाहर आया, तो उनके आने-जाने से, लोगों की रोजमर्रा की गतिविधियों से नए पेड़-पौधों को नुकसान हो सकता है।

उन्होंने कहा, बरना की शुरूआत में भव्य तरीके से हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजापाठ करते हैं और उसकी समाप्ति पर आदिवासी परंपरा के गीत, संगीत, नृत्य के कार्यक्रम भी होते हैं।

 
 

आईएएनएस
नई दिल्ली


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