अति दलित व अति पिछड़े आरक्षण में प्राथमिकता के हकदार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अति दलित और अति पिछड़ों को आरक्षण में प्राथमिकता दी जाए। अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की कुछ जातियों को बरसों से चले आ रहे आरक्षण का लाभ नहीं मिला है।
![]() सुप्रीम कोर्ट |
उप-जातियों का वर्गीकरण करके उन्हें नौकरी और शिक्षा में प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण दिया जाए। ताकतवार जातियों को ही आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता। बाल्मीकि आदि जातियों को अनंतकाल तक गरीबी में नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, मुकेश कुमार शाह और अनिरुद्ध बोस की पांच सदस्यीय बेंच ने ईवी चिन्नइया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और आरक्षण का यह महत्वपूर्ण मुद्दा सात सदस्यीय बेंच के हवाले कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 78 पेज के जजमेंट में साफ तौर पर कहा कि दलित और ओबीसी अपने आप में एकसमान (होमोजीनियस) जाति नहीं है। ईवी चिन्नइया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में इन्हें एकसमान जाति माना था। जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा, 15 साल पुराने जजमेंट की समीक्षा की आवश्यकता है ताकि आरक्षण का लाभ समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को मिल सके। इसके लिए राज्य सरकार जातियों का वर्गीकरण करने में सक्षम हैं। अति दलित और अति पिछड़ी जातियों का वर्गीकरण करके उन्हें आरक्षण में प्राथमिकता दी जाए। इससे असमानता का संवैधानिक दायित्व पूरा होगा और आरक्षण का लाभ गरीबी में जी रहे लोगों को मिल सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पंजाब सरकार बनाम देवेन्द्र सिंह के मामले में दिया। पंजाब सरकार ने एससी में से दो जातियों-बाल्मीकि और मजहबी सिख को एससी कोटे के लिए तयशुदा प्रतिशत में से 50 फीसद रिजर्व कर दिया था। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दलित आरक्षण में 50 फीसद उप-जातियों को निर्धारित करने के सरकार की अधिसूचना को निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने एसएलपी की सुनवाई करते समय इसे पांच सदस्यीय बेंच के पास भेजा था। तीन सदस्यीय बेंच का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट का चिन्नइया मामले में फैसला उसके बाद आए कई निर्णयों से मेल नहीं खाता। लिहाजा विरोधाभास को दूर किया जाए।
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