कोरोना पर नियंत्रण में हम हुए कामयाब : सिसोदिया

Last Updated 08 Jul 2020 02:38:14 AM IST

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत


सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया

दिल्ली सरकार ने एक वक्त स्वयं 31 जुलाई तक राजधानी में कोरोना संक्रमितों की संख्या 5.50 लाख तक पहुंचने का अंदेशा जताया था, लेकिन मौजूदा स्थिति काफी बेहतर नजर आ रही है। लोगों के स्वस्थ होने की दर लगातार बढ़ रही है। सक्रिय केसों की संख्या भी घट रही है। दिल्ली सरकार की रणनीति, केंद्र समेत अन्य एजेंसियों के साथ उसके तालमेल और आने वाली चुनौतियों से निपटने की उसकी तैयारियों समेत अन्य मुद्दों पर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत

मनीष जी दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या एक लाख पार कर चुकी है। हालांकि इनमें से ज्यादातर लोग ठीक भी हो चुके हैं और एक्टिव केस की संख्या काफी कम हुई है, तो क्या ये माना जाए कि दिल्ली सरकार ने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में कोरोना पर काबू पा लिया है?
दिल्ली के डॉक्टरों के नेतृत्व में अरविंद केजरीवाल जी, प्रशासन और हम सबने मिलकर कोरोना से लड़ाई लड़ी है। डॉक्टरों ने रिस्क लेकर बहुत मेहनत की है। इसका श्रेय उनको दूंगा। मुख्यमंत्री जी का नेतृत्व है। उन्होंने जिस तरह से रणनीति बनाई, सबको साथ लिया, केन्द्र सरकार से लेकर सामाजिक संस्थाओं को साथ लिया उससे डॉक्टरों का हौसला बढ़ा। आज हम कह सकते हैं कि कोरोना को नियंत्रण में लाने में हम कामयाब हुए।

मनीष जी जब भी हिन्दुस्तान की बात होती है तो दिल्ली और मुंबई ये दो शहरों की बात जरूर आती है। दिल्ली ने अपना कदम आगे बढ़ा दिया और कोरोना के साथ जीने की कला सिखा दी लेकिन मुंबई में बड़ा डर और भय बना हुआ है। मुंबई प्रशासन को क्या संदेश देना चाहेंगे भय को दूर करने के लिए।
जैसा मुख्यमंत्री कहते हैं कि हमें कोरोना के साथ जीने की प्रैक्टिस करनी होगी। मुंबई में हमसे पहले केस बढ़ने शुरू हुए थे तो हमने मुंबई से सबक लेने की कोशिश की और दिल्ली के सिस्टम को बेहतर बनाने की कोशिश की। मुख्यमंत्री जी का पांच सूत्री जो एजेंडा है, उसमें सबसे पहला टेस्टिंग है। 25 हजार टेस्ट रोजाना हो रहे हैं। इसके अलावा आइसोलेशन है, जिसमें होम आइसोलेशन बहुत महत्वपूर्ण है, प्लाज्मा थेरेपी है, सर्विलांस है। इस तरह से हर चीज को लेकर मुख्यमंत्री जी ने रणनीति बनाई है। दिल्ली के प्रयोग से मुंबई और दूसरे शहरों के लोग भी समझ सकते हैं।

जून के पहले हफ्ते में दिल्ली की स्थिति खराब हो रही थी। विशेषज्ञों के आकलन के आधार पर आपने भी कहा था कि अगर संक्रमण की यही रफ्तार रही तो जुलाई तक मरीजों की संख्या बढ़कर दिल्ली में पांच लाख हो जाएगी। अब आपका अनुमान क्या कहता है?
भारत सरकार की जो वेबसाइट है, उसमें उस समय साढ़े पांच लाख केस बताए गए थे। उस समय 12 दिनों में केस दोगुने हो रहे थे। अब करीब 30 दिन में केस डबल हो रहे हैं। अब 70 फीसद लोग ठीक हो गए हैं। अब वो स्थिति नहीं है, जो जून के पहले हफ्ते की थी। पूर्वानुमान के मुताबिक, 15 हजार बेड की जरूरत तब पड़ने वाली थी, लेकिन यदि हम आज की स्थिति का आकलन करते हुए बात करें तो अब उतने बेड की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन हम अपनी ओर से पूरी तरह तैयार हैं ताकि किसी भी व्यक्ति को आइसीयू या हॉस्पिटल बेड की दिक्कत न हो।

लॉकडाउन खुलने के बाद जून के पहले सप्ताह में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने के क्या कारण रहे? जब लॉकडाउन पीरियड में सरकार कोरोना के इलाज से जुड़ी सारी तैयारियां करने में जुटी थी तो आखिर दिक्कत कहां पर आई? लॉकडाउन में तो लोग आइसोलेशन में ही थे बावजूद इसके बहुत तेजी से ट्रांसमिट हुए।
उपेन्द्र जी हर जगह कोरोना का जो ट्रेंड देखने को मिला है, उसके मुताबिक लॉकडाउन की वजह से यह स्लो तो हो सकता है लेकिन रोका कहीं भी नहीं जा सकता है। दिल्ली और मुंबई की बात करें तो जितने अंतरराष्ट्रीय यात्री लॉकडाउन की वजह से रुके हुए थे, विदेशों में बसे हुए जो भारतीय थे, उनको लाकर दिल्ली और मुंबई में ही रोका गया। दिल्ली में 35 हजार लोग लॉकडाउन खुलने के बाद विदेशों से आए थे, जिनको भारत के अलग अलग हिस्सों में जाना था लेकिन उनको दिल्ली में रोका गया कुछ समय के लिए। यह एक बहुत बड़ा फैसला था। उस जिम्मेदारी में रिस्क तो उठाना ही था। देश की राजधानी है दिल्ली तो रिस्क उठाया। ऐसे और भी बहुत सारे कारण हो सकते हैं जिससे केस बढ़े।

राजधानी दिल्ली में केंद्र, राज्य, नगर निगम अलग अलग एजेंसियां काम करती हैं। क्या आप ये मानते हैं कि शुरुआत में समन्वय की कमी रही, जिसकी वजह से लॉकडाउन खुलते ही कोरोना के मामले तेजी से बढ़ गए। यदि समन्वय रहता तो बेहतर कंट्रोल कर पाते?
उपेन्द्र जी ये एक पोस्टमार्टम है। एक समय के बाद हो सकता है कि आपकी बात ठीक हो। समन्वय में जहां भी कमी थी, मुख्यमंत्री जी ने आगे बढ़कर उसको दुरुस्त करने की कोशिश भी की। गृह मंत्री भी साथ आए, मीटिंग हुई और भारत सरकार की ओर से जो भी दिशा निर्देश मिलते रहे, मुख्यमंत्री रोजाना उसकी समीक्षा करते रहे। एमसीडी के साथ भी हमारी तरफ से तालमेल में कोई कमी नहीं रही। केन्द्र सरकार के सक्रिय होने के बाद से समन्वय और बढ़ा होगा। हमारी ओर से न पहले कमी थी कोआर्डिनेशन में, न अब है।

मनीष जी ये देखा गया है कि केंद्र के साथ आप लोगों का सैद्धांतिक टकराव रहा है। टकराव बढ़ने के कारण मीडिया भी बहुत दिल्चस्पी दिखाता था, लेकिन इस वक्त आप लोगों ने बहुत संतुलन रखा है। गृह मंत्री के साथ जिस तरीके से दिल्ली सरकार का समन्वय दिखा, बैठकें हुई, उसके पीछे आधार क्या है?
इसका आधार यही है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी कहते हैं कि दिल्ली के लोगों ने हमें चुना है, दिल्ली के लोगों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। किसी के सामने हाथ जोड़ना पड़े, मनाना पड़े  समझाना पड़े, लड़ना पड़े, किसी से प्यार से बात करनी पड़े, वो सब कर सकते हैं। इतने गंभीर समय में यदि कोई छोटी मोटी असहमति है भी तो हमने उसे बातों से सुलझाने की कोशिश की है। आपने देखा कि केंद्र के साथ कुछ मुद्दों पर टकराव हुए तो उसके बाद बैठकें हुई, बातचीत हुई और मसले सुलझे भी।

पिछले समय की बात करें तो एलजी के साथ मुख्यमंत्री का जो प्रशासन है, उनके बीच बहुत ज्यादा मतभेद रहते थे। क्या ये माना जाए कि संकट काल में छोटे छोटे मतभेद अपने आप समाप्त हो जाते हैं।
बिल्कुल यही एप्रोच लेकर हम चल रहे हैं कि कोई भी ऐसा मुद्दा, जिसमें केंद्र सरकार को लगे कि दखल देना चाहिए या फिर दिल्ली सरकार को लगे कि उसे कहना चाहिए, संकट के इस समय में हम नहीं छेड़ना चाहते। कोरोना ऐसी महामारी है कि इसको कोई भी सरकार चाहे केंद्र हो राज्य हो अपने बूते नहीं सुलझा सकती, इसलिए एप्रोच यही है कि संकट के इस समय में दिल्ली के हित में दिल्ली के लोगों को कोई असुविधा न हो।

2014 से 2017 के बीच काफी टकराव रहा। प्रधानमंत्री को आप लोग हर मुद्दे पर घेरते थे, आलोचना करते थे। लेकिन अरविंद जी जब दोबारा चुनकर आए तो इस बार कहा जाता है कि वो बहुत ही संतुलित एप्रोच लेकर चल रहे हैं। क्या उन्होंने समझ लिया कि प्रधानमंत्री से हमें नहीं लड़ना चाहिए या आप लोगों ने ये मान लिया कि प्रधानमंत्री पहले से ज्यादा बेहतर कर रहे हैं। पहले उतना अच्छा नहीं कर रहे थे इसलिए आप लोग उनको घेरते थे ,उनकी आलोचना करते थे।
मैं ऐसा नहीं मानता हूं। देखिए आदमी आगे बढ़ता है तो चीजों को सीखता भी है, समझता भी है और समय के साथ अनुभव भी परिपक्व होता है। इस बार के चुनाव के बाद से दिल्ली में, देश में, दुनिया में लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। दो पार्टियों, दो सरकारों में विरोध होना या मतभेद होना लाजिमी है लेकिन इस समय उन मतभेदों को आगे लाकर कोरोना मुद्दे को पीछे करना आज की तारीख में उचित नहीं है। 

आप लोग अपने अधिकारों की लड़ाई लेकर सुप्रीम कोर्ट गए और सुप्रीम कोर्ट ने बहुत हद तक आपलोगों की बात सुनकर उचित फैसला दिया, जिसका आपकी सरकार ने स्वागत भी किया था। आप लोगों को सुप्रीम कोर्ट क्यों जाना पड़ा था, उसके पीछे क्या वजह थी और उसके बाद जो निर्णय आया, उससे आप लोगों को प्रशासन चलाने में कितनी मदद मिल रही है।
आपने बोला कि 2016 के बाद उस तरह से अरविंद जी लड़ते हुए नहीं दिखते हैं तो उसकी जड़ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। 2018 से पहले ये सिस्टम बना रखा था कि हर फाइल, हर काम की मंजूरी चाहे वो सीसीटीवी लगाने हों, हॉस्पिटल में बेड लगाने हों सभी चीजें आर्डर के मुताबिक एलजी साहब के पास जाती थीं। एलजी साहब की तरफ से एक पालिटिकल निर्णय होता था, टांग अड़ाई जाती थी, काम रोका जाता था। इन्हीं कारणों से लड़ाई झगड़े होते थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये स्थितियां बदलीं और फाइलें जानी बंद हो गई तो लड़ाई झगड़े भी बंद हो गए।

सरकार अस्पतालों, कोविड केयर सेंटरों में कोरोना मरीजों के लिए बेड तो बढ़ा रही है लेकिन अस्पतालों के सामने सबसे बड़ी समस्या डाक्टर्स और र्नसंिग स्टाफ की कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए आपलोग किस तरह के प्रयास कर रहे हैं या जहां कमी होती है उसको कैसे मैनेज कर रहें आप?
इनमें बेड बढ़ाने का जो हमारा माडल है, दिल्ली में वो इसलिए सफल हो पाया क्योंकि मुख्यमंत्री ने सभी मेडिकल अधिकारियों को ये पावर दे दी है कि आप सरकार के सिस्टम का इंतजार मत करिए। सरकार का सिस्टम एक लम्बी प्रक्रिया है, उसमें वर्ष लग जाता है। आपको जितने लोग चाहिए उसके लिए आप वाक इन इंटरव्यू कीजिए, आपको कोई छोटा मोटा विज्ञापन निकालना है निकालिए। लेकिन आप लोग ले आइए। हमने अपने हास्पिटल के अधिकारियों के अधिकार बढ़ा दिए हैं, इसलिए इस तरह की कोई दिक्कत नहीं आ रही है। छतरपुर में 10 हजार बेड का जो मेडिकल सेंटर बना है, उसमें 1 हजार बेड के लिए आईटीबीपी यानी केन्द्र सरकार की ओर से मेडिकल स्टाफ उपलब्ध कराया गया है। हमें वालेंटरी संस्था डाक्टर्स फार यू की तरफ से मेडिकल स्टाफ उपलब्ध कराया गया है।

कई लोग हमसे लगातार ये पूछते हैं कि रात 10 बजे से सुबह पांच बजे तक कर्फ्यू लगाने का क्या पर्पस है। रात 10 बजे तो अपने आप कर्फ्यू जैसी स्थिति हो जाती है। ऐसे वक्त में जो रेस्टोरेंट हैं, उनका धंधा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अगर ये बंदिश खत्म कर दी जाए तो बहुत से लोगों को काम पर लौटने की आजादी मिल जाएगी। लोगों को काम मिलेगा और दिल्ली सरकार को भी बहुत बड़ा फायदा होगा। ऐसा क्यों नहीं हो रहा है?
इस समय केन्द्र सरकार की गाइडलाइंस फॉलो की जा रही है। हम तो चाह रहे थे कि मेट्रो भी खुल जाए, लेकिन हमारा मानना है कि केन्द्र सरकार बहुत सारे विशेषज्ञों के साथ चर्चा करके ही कुछ फैसला लेती होगी। 10 बजे के बाद बाजार बंद रखने की उनकी मंशा जो भी हो, लेकिन अभी अनलाक भी धीरे धीरे किया जा रहा है। पहले 9 बजे तक खुला था अब 10 बजे तक खोल दिया गया है। दिल्ली में जिस तरह अब हालात स्थिर हो रहे हैं तो हम इस बारे में केन्द्र से बात करेंगे की रात वाली जो स्थिति है, उसमें बदलाव लाया जाए। मेट्रो को भी चालू किया जाए ताकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध हो।

कोरोना संकट के चलते दिल्ली की अर्थव्यवस्था को मनीष जी कितना नुकसान हुआ है। दिल्ली की विकास योजनाओं पर कितना असर पड़ा है और इस मंच से आपलोगों की तारीफ भी करूंगा कि सीमित संसाधनों के बावजूद आपलोगों ने दिल्ली को बहुत कुछ दिया है। तो ऐसे में कोरोना के बाद विकास कार्यों को कैसे जारी रखा जाएगा।
इसमें दो चीजें हैं एक तो दिल्ली की अर्थव्यवस्था और दिल्ली सरकार का राजस्व और दूसरा लोगों की अपनी जिंदगी की अर्थव्यवस्था बहुत खराब हुई है। कनाट प्लेस या करोल बाग में काम करने वाला व्यापारी ये मान रहा है कि उसकी बिक्री अभी 10 प्रतिशत ही रही है पिछले वर्ष के जून जुलाई के मुकाबले। अगर उसकी सेल 10 परसेंट है या 20 परसेंट के नीचे है तो उसका असर दिल्ली सरकार के रेवेन्यू पर भी पड़ेगा ही। पिछले साल के अप्रैल मई और जून, जो फाइनेंसियल क्वार्टर था, में हमें साढ़े सात हजार करोड़ का रेवेन्यू मिला था। इस बार केवल 2500 करोड़ का राजस्व मिला है। इसलिए हमने आदेश जारी किया है कि महामारी के इस संकट में सरकार सारे विकास के कामों को लम्बित रखेगी। केवल हेल्थ, सैलरी और जो बहुत जरूरी हैं, उसको छोड़कर। हमने केन्द्र सरकार से 5000 करोड़ की मदद मांगी है फौरी तौर पर।

दिल्ली सरकार बिजली, पानी समेत कई मुफ्त योजनाएं चला रही है। चुनाव के समय आपने हर झुग्गी वासी को पक्का मकान देने समेत 10 गारंटी कार्ड योजना का भी ऐलान किया था। क्या मौजूदा आर्थिक हालात में इन योजनाओं पर असर नहीं पड़ेगा?
चुनाव के बाद हमारे कार्यकाल की अभी शुरुआत ही है और इसका असर कुछ योजनाओं की देरी में हो सकता है। लेकिन किसी भी योजना को पांच साल के अंदर हम पूरा करेंगे ये अभी भी हमारा कमिटमेंट है। 10 गारंटी पर हम गंभीर हैं।

दिल्ली सरकार ने केन्द्र से जो 5 हजार करोड़ मांगे हैं, इस पर कोई आश्वासन मिला है या आपकी ओर से सिर्फ  रिमांइडर ही जारी है।
अभी तक तो कोई आश्वासन नहीं मिला है, लेकिन हमें उम्मीद है कि जिस तरह से कोरोना से लड़ने में केन्द्र ने हमारी मदद की है, उसी तरह वह हमारी इस मांग को भी पूरी करेंगे।

ऐसा कहा जा रहा है कि कोरोना संकट में आर्थिक मुश्किलों का असर मेट्रो फेज 4 की योजनाओं पर पड़ सकता है। मेट्रो पिछले तीन महीने से बंद है। क्या कहना चाहेंगे आप?
मेट्रो बंद है तो उसका भी नुकसान होगा। मेट्रो से किराया भी आता है, राजस्व भी आता है। कर्मचारियों का वेतन और बहुत सारे खर्चे तो मेट्रो को वहन करने ही पड़ रहे हैं। आने वाले समय में जो योजनाएं थीं उसमें सरकारी फंडिंग की कमी तो रहेगी ही। थोड़ा बहुत तो असर हो सकता है लेकिन जैसे जैसे आर्थिक गतिविधियां बढेंगी तो आर्थिक स्थिति को सुधारा जाएगा।

मनीष जी मुझे भी आपके बनाए स्कूल को देखने का मौका मिला। वाकई में सहारा न्यूज नेटवर्क की ओर से मैं यह कह सकता हूं कि किसी कान्वेंट स्कूल से आपने बेहतर स्कूल बनाकर दिखाया। शिक्षा के स्तर में सुधार, इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार व अध्यापकों में भरोसा पैदा करना, यह कैसे संभव कर दिखाया।
सबसे पहले तो हमने अध्यापकों पर भरोसा किया। हमने कहा कि जितना आप शिक्षा को जानते हो उतना हम नहीं जानते हैं। मुझे याद है कि 2015 में जब सरकार बनी थी तो उसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री जी ने दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में सभी अध्यापकों के साथ मीटिंग की थी और उन्होंने कहा था कि हमसे जनता की अपेक्षा है कि हम सरकारी स्कूलों को आगे बढ़ाएं और शिक्षा के स्तर को सुधारें। ये काम हमारे प्रिंसिपलों को करना है, इस काम को करने के लिए आपको सरकार से क्या चाहिए ये, आप हमें खुलकर बताएं। हमारे बहुत सारे प्रिंसिपल ने बहुत सारे सुझाव दिए। उनमें भरोसा कायम करने के लिए मुख्यमंत्री की यह पहली मुलाकात थी। इस तरह सिलसिला चल पड़ा और बहुत सारे सुझाव आते रहे। जब हम बजट बनाने लगे तो पहले ही बजट में 25 प्रतिशत हमने शिक्षा के लिए दिए। ये अपने आप में एक रिकार्ड था। पहले 12 पर्सेट बजट इस पर खर्च होता था। तब से लेकर हर साल हम इस पर बजट का 25-26 पर्सेट रखते हैं।

दिल्ली सरकार का कहना है कि टेस्ट आइसोलेशन और प्लाज्मा के सहारे हम जीत जाएंगे कोरोना की लड़ाई में। लेकिन सबके मन में एक सवाल उठ रहा है कि ये लड़ाई आखिर कितनी लम्बी चलेगी।  इस बारे में डाक्टर्स की कोई सोची समझी रणनीति या कोई योजना कि ये वक्त आते आते हम मुक्त हो जाएंगे और चिंता की कोई बात नहीं। क्या अनुमान है?
समय का अनुमान लगाना तो बहुत मुश्किल है, क्योंकि अलग अलग देशों में कोरोना के अलग अलग अनुभव सामने आए हैं। देश में भी अलग अलग राज्यों में अलग अलग अनुभव सामने आएं हैं कम होने और बढ़ने को लेकर। इसलिए हम हाथ पर हाथ रखकर बैठने की बात नहीं कर रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री जी के जो 5 फार्मूले हैं, उसको जितना अच्छे से हम कर पाएंगे उतने ही अच्छे से इसके कर्व को कंट्रोल किया जा सकता है। दिल्ली में ये होता हुआ दिख रहा है।

दिल्ली में टेस्ट रिपोर्ट में देरी की वजह से भी मौत के मामले बढ़े हैं ये बात सुनने को मिली है। क्या दिल्ली सरकार कोई डेथ आडिट रिपोर्ट भी तैयार कर रही है कि जितने लोगों की मौत हुई, उसके पीछे बड़े कारण क्या क्या रहे?
टेस्ट की कमी के कारण तो कोई मौत नहीं हुई है। टेस्ट तो दिल्ली सरकार जितना कर रही है उतना कोई सरकार नहीं करा रही है। आज हम 25 हजार टेस्ट एक दिन में कर रहे हैं। हमारा टेस्टिंग का जो औसत है, वो राष्ट्रीय औसत से तीस गुणा ज्यादा है। लेकिन जहां तक डेथ हुई है तो डेथ की आडिट कमिटी बनी है। इसमें बकायदा एक एक मौत का विश्लेषण होता है। इसी वजह से टेस्टिंग बढ़ाने के फैसले लिए गए। टेस्ट के बाद जो नतीजे आने में देरी होती थी वो अब खत्म हा गया है। आप टेस्ट कराइए और आधे घंटे में रिपोर्ट ले जाइए।

केन्द्र सरकार के निर्देश पर 31 जुलाई तक शिक्षण संस्थानों को बंद रखा गया हैं। एक अनुमान के मुताबिक ये संस्थान कब तक खलेंगे।
अभी कहना मुश्किल है। देखिए स्कूल, कॉलेज सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। अलग अलग घरों से बच्चे आएंगे ,शिक्षक आएंगे, साथ रहेंगे। सभी को आइसोलेशन में रखना आसान काम नहीं है। ऐसे में रिस्क ज्यादा है और सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। 31 जुलाई तक अगर स्थिति नियंत्रण में रहती है तो अगस्त में इन्हें खोलने पर विचार किया जा सकता है।

मनीष जी देश का पहला प्लाज्मा बैंक आप लोगों ने बनाया। प्लाज्मा थेरेपी का जो आइडिया है वो आप लोगों ने ही आईसीएमआर को दिया था, जो काम कर गया। इसको कितनी बड़ी सफलता आप मानते हैं? प्लाज्मा बैंक कैसे काम कर रहा है।
जैसे जैसे लोग प्लाज्मा डोनेट करने के लिए आगे आ रहे हैं, वह खुद दूसरों से कह रहे हैं कि इससे कुछ भी नुकसान नहीं होता है तुम भी डोनेट करो।  इससे लोगों का आत्मविश्वास बढ़ रहा है और धीरे धीरे डोनर्स की संख्या भी बढ़ रही है।



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