भारत करेगा दोगुनी ताकत से वापसी : केवी सुब्रमण्यन
देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत-
![]() सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन |
कोरोना महामारी के कारण आज पूरा विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था भी भारी संकट से जूझ रही है। देश में महामारी के कारण लगे लॉकडाउन से हुए नुकसान, आने वाले समय में ग्रोथ रेट की स्थिति, कौन-कौन से क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित रहे और कब तक स्थितियां सामान्य होने की संभावना है जैसे तमाम मुद्दों पर देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत-:
आप से आज हम एक ऐसे समय में बात कर रहे हैं जब दुनिया अब तक की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही है, एक तरह की आर्थिक तबाही झेल रही है। हमारा देश भी 3 महीने के लॉकडाउन के बाद अभी भी कोरोना की मार झेल रहा है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की शुरु आत हुई है लेकिन अभी रफ्तार बहुत धीमी है। आपको क्या लगता है कि देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह पटरी पर आने में कितना वक्त लग सकता है?
यह वैश्विक महामारी है और वैश्विक आर्थिक संकट भी इसकी वजह से देखने को मिल रहा है। 2008-09 में जो वैश्विक आर्थिक संकट था, वह आर्थिक विषमताओं की वजह से था। जबकि इस वक्त के आर्थिक संकट का कारण महामारी है। जब तक वैक्सीन नहीं आता और लोगों में अनिश्चितता का माहौल खत्म नहीं होता, तब तक कोई भी बड़ा निवेश नहीं करेगा। जब तक मांग या उपभोग बढ़ेगा नहीं तब तक बाजार इसी तरह से चलेगा। लोगों में ये विास बढ़ाने की जरूरत है कि इंसान इस महामारी पर हावी हो सकता है। तभी हालात सुधरेंगे।
लॉकडाउन से हुए देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान को लेकर अलग अलग जानकारों का अलग अलग आकलन है। किसी का कहना है कि 20 लाख करोड़ का नुक़सान हुआ है तो किसी का आकलन 40 से लेकर 50 लाख करोड़ तक है। देश के आर्थिक हालात को सबसे नजदीक से देखने समझने और उसे मॉनिटर करने में आपकी शायद सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। आपका अनुमान क्या है? कोरोना के चलते हमारी अर्थव्यवस्था को कितने लाख करोड़ का नुक़सान हुआ है? और कौन कौन से क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए है ?
हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि यदि लॉकडाउन नहीं होता तो हालात क्या होते? यदि लॉकडाउन नहीं होता तो 30 से 70 हजार लोगों की मौत हो जाती, ऐसा शोधकर्ताओं का मानना है। माननीय प्रधानमंत्री ने पहले भी कहा है, जान है तो जहान है। इसीलिए इस महामारी के काल में लॉकडाउन जरूरी था। इस लॉकडाउन के दौर में हमें अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने का समय मिल गया। हम अस्पताल और दूसरी व्यवस्थाओं को मजबूत कर पाए। निश्चित तौर पर लॉक डाउन का अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है। 1 जून को लॉकडाउन हटाने के बाद से ही हमने हाई फ्रिक्वेंसी इंडिकेटर के डाटा को देखना शुरू किया है। इसमें बिजली की खपत, लोगों का आवागमन, पेट्रोल की खपत जैसे कई आंकड़े आते हैं। हम देख रहे हैं कि लॉकडाउन के बाद से लगातार स्थितियों में सुधार आ रहा है। फिर भी अनिश्चितता की वजह से डिमांड पर बहुत असर पड़ा है। जब तक अनिश्चितता रहेगी हालात को सुधरने में वक्त लगेगा। उदाहरण के लिए पर्यटन का पूरा उद्योग इसी की वजह से प्रभावित हुआ है। इसका उपाय तब तक नहीं निकाला जा सकता, जब तक वैक्सीन या कोई और तरीका हमारे सामने मौजूद ना हो।
आपकी और आपके विभाग की एक महत्वपूर्ण भूमिका इकोनॉमिक सर्वे तैयार करने में होती है। जब अधिकांश एजेंसियां भारत के ग्रोथ रेट को माइनस में आने की भविष्यवाणी कर रही हैं तब आपका क्या अनुमान है?
यह बहुत पेचीदा सवाल है। जैसा मैंने कहा अनिश्चितता का माहौल है और उम्मीद करते हैं कि साल के दूसरे हिस्से में स्थितियां सुधरें। यदि वैक्सीन बनता है तो डर का माहौल कम होगा और लोग खरीदारी में जुटेंगे। हो सकता है कि वैक्सीन न आए इसीलिए यह मानकर चलना चाहिए कि इस साल अनिश्चितता का यह माहौल बना रहेगा। हम उम्मीद करते हैं कि अगले साल तक स्थितियां सामान्य हो पाएं। दोनों स्थितियों को ध्यान में रखना होगा। अभी निश्चित तौर पर वैज्ञानिक भी इसके बारे में कुछ नहीं कह पा रहे हैं। यह तय है कि महामारी पर जीत हासिल करने के पहले स्थितियां सामान्य नहीं होंगी। हमने अनुमान लगाया है, लेकिन इस अनिश्चितता के दौर में यह अनुमान ऊपर नीचे हो सकता है। ग्रोथ रेट निगेटिव भी रह सकती है और ऐसा भी हो सकता है कि बहुत ज्यादा गिरावट ना हो। इस साल के दूसरे भाग में यदि इकोनॉमिक ग्रोथ ठीक होती है तो बहुत बुरा असर नहीं होगा।
मौजूदा वित्त वर्ष से तो बहुत उम्मीद नहीं दिखाई देती है लेकिन 2021 और 2022 का वित्तवर्ष भारत के लिए कैसा रहेगा? 5 ट्रिलियन इकोनॉमी की तरफ कितना आगे बढ़ पाएंगे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि 2019 की स्थिति को बचाए रखने या यूं कहिए कि उसे दोबारा हासिल करने की ही चुनौती अभी बड़ी दिख रही है?
हमें इसके लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। माननीय प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर पैकेज दिया है। यदि बाकी देशों से हम तुलना करें तो भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसने सेकेंड जेनरेशन रिफॉर्म को भी इस पैकेज के अंतर्गत सामने रखा है, जिसमें किसान, श्रमिक और निजीकरण जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं। आत्मनिर्भरता का संदेश माननीय प्रधानमंत्री ने सभी को दिया है और इस पर चलते हुए आगे निश्चित तौर पर हमारा उत्पादन बढ़ेगा। अगले वर्ष ग्रोथ रेट में और तेजी आ सकती है और जीडीपी भी बढ़ सकती है। पिछले साल मंदी इसलिए आई क्योंकि बैंक के लोन खराब हो गए थे। इस तरह के आर्थिक फैसलों के परिणाम पांच छह साल बाद ही आते हैं। 2013 में जो खराब लोन दिए गए थे, उसका विष 5-6 साल बाद देखने को मिला। इन दुष्परिणामों की वजह से बैंक ने लोन देना बंद कर दिया और फाइनेंशियल सेक्टर में जबरदस्त गिरावट आई। फाइनेंशियल सेक्टर के अलावा रियल सेक्टर में कोई खराबी नहीं आई है। यही वजह है कि आत्मनिर्भर पैकेज में तीन लाख करोड़ रुपए की घोषणा फाइनेंशियल सेक्टर के लिए की गई है। एमएसएमई को यह फंड दिया भी जा रहा है। जून के महीने में कई लोगों को लोन दिया भी जा चुका है। निश्चित तौर पर इससे फाइनेंशियल सेक्टर में ग्रोथ देखने को मिलेगी।
कोरोना के दौरान दुनियाभर में चीन की इमेज एक अविसनीय राष्ट्र की बनी है। हमें उम्मीद थी कि चीन से नाराज कई अमेरिकी, जापानी और कोरियाई कंपनियां भारत में अपनी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स लगाएंगी और निवेश करेंगी लेकिन ऐसा बहुत होता दिख नहीं रहा है ? ये ज्यादातर दूसरे देशों में जा रही हैं! आपको क्या जानकारी है ? हमारे देश में इन कंपनियों के आने की कितनी उम्मीद दिखाई देती है?
हमने जनवरी में अपना इकोनॉमिक सर्वे पेश किया था और इसमें पूरा एक अध्याय इसी विषय पर रखा था। हमें ग्लोबल वैल्यू चेन पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। भारत और चीन के निर्यात पर यदि गौर किया जाए तो चीन ने बहुत रणनीति के साथ काम किया है। उसने लेबर इंटेंसिव सेक्टर पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। भारत कभी भी इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करके काम नहीं कर पाया। यदि हमें बड़ा निर्यातक बनना है तो लेबर इंटेंसिव सेक्टर पर ध्यान केंद्रित करना होगा। कुछ लोग कहते हैं कि कोविड-19 से बने हालात में हम कैसे इन चीजों को लागू कर सकते हैं। मेरा कहना है कि हम इन हालात में भी इस रणनीति पर काम कर सकते हैं, क्योंकि भारत की हिस्सेदारी अभी इस क्षेत्र में बहुत कम है। इसीलिए हमारे पास संभावनाएं ज्यादा हैं। हम नेटवर्क प्रोडक्ट्स पर काम कर सकते हैं। ग्लोबल वैल्यू चेन को फोकस करते हुए लेबर इंटेंसिव सेक्टर पर काम कर सकते हैं।
आत्मनिर्भर भारत के साथ-साथ आपदा को अवसर में बदलने की बात भी कही जा रही है, दूसरी तरफ विपक्ष का यह आरोप है कि अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन की तरह हम सीधे कैश लाभार्थियों के खाते में क्यों नहीं दे रहे। गरीब तबके के खाते में पैसे डालने की बात कही जा रही है, जिस पर एक लाख करोड़ का खर्च आएगा। इस बात को क्यों नहीं माना गया?
यह महत्वपूर्ण विषय है और तीन, चार मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इसे समझना होगा। जितने भी देश अपने यहां राहत पैकेज देखते देते हैं, वह फिसकल, मॉनिटरी और लिक्विडिटी जैसी चीजों को ध्यान में रखते हुए इनमें संतुलन बनाकर पैकेज देते हैं। जिसको जहां स्पेस मिलता है, उसका इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंग्डम ने जो पैकेज दिया, वह उसकी जीडीपी का 15 फ़ीसद है, लेकिन उसका फिसकल मात्र 3.5 फ़ीसद है। उनके यहां राशन की दुकानों की व्यवस्था नहीं है। हमारे यहां एक मजबूत पीडीएस सिस्टम है। इसका इस्तेमाल करते हुए हमने 70 से 75% लोगों को राशन उपलब्ध करवाया। नेशनल फूड सिक्योरिटी के तहत हमने 35 किलो अनाज हर परिवार को दिया। जिसमें बाद में प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज यानी परिवार में 5 लोग हैं तो 25 किलो अनाज और बढ़ाया गया। कुल मिलाकर 60 किलो अनाज एक परिवार को दिया जा रहा है। आप सीधे पैसे न देकर आवश्यक वस्तुओं के द्वारा लोगों की मदद कर रहे हैं। बाकी देशों में राशन की यह व्यवस्था नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने सीधे कैश दिया। हमारे यहां भी गरीब कल्याण योजना के तहत धनराशि गरीबों को दी गई है। तुलना करते हुए हमें अंतर का भी ध्यान रखना चाहिए। आम और सेब की तुलना नहीं की जा सकती। अमेरिका में जो कैश दिया गया, उस पर उनके नेशनल ब्यूरो ऑफ रिसर्च ने शोध किया। जितने भी चेक लोगों को भेजे गए, उनका इस्तेमाल सिर्फ खाने पर हुआ है। ड्यूरेबल गुड्स पर किसी ने खर्च नहीं किया। हमने कैश देने के बजाय सीधे यह अनाज दे दिया।
देश में इस समय हर सेक्टर भारी संकट में है। उद्योगों को रियायतों की दरकार है। मध्य वर्ग के सामने सैलरी कट और लोन की किश्त भारी पड़ रही है। लोगों की नौकरियां चली गई हैं । मजदूर और छोटे बड़े दुकानदारों की जेब खाली है। राज्य सरकारों को जीएसटी का पैसा नहीं मिल पा रहा, उनके सामने कर्मचारियों को सैलरी देने की समस्या है। कारपोरेट टैक्स, इनकम टैक्स और जीएसटी का कलेक्शन बढ़ने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार के पास पैसा कैसे और कहां से आएगा ?
केंद्र ने राज्यों को वही पैकेज दिया है, जो अमाउंट बजट में तय किया गया था। हर महीने 14 में से 1 भाग राज्यों को दिया जाता है, इसमें कोई भी कटौती इन हालात में नहीं की गई है। केंद्र चाहता तो यह कह सकता था कि रेवेन्यू कम हुआ है और इसमें कटौती की जाएगी लेकिन केंद्र सरकार जानती है कि राज्य भी कई महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं और उन्हें पैसों की अभी जरूरत है। इस साल सभी के रेवेन्यू में कमी आई है, इसीलिए केंद्र सरकार ने राज्यों के फंड में कोई कटौती नहीं की।
जहां तक मेरी जानकारी है कि आप आरबीआई में भी रहे हैं। कई अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि रेटिंग कि चिंता को नजरअंदाज करते हुए अधिक नोट छापकर इस समय हर वर्ग को मदद देनी चाहिए। इसे हेलीकाप्टर मनी कहा गया। आप क्या मानते हैं ? अधिक नोट छापने से क्या नुक़सान है। आम पाठकों के लिए जरा इसे आसान तरीके से बताएं कि सरकार इस विकल्प का ज्यादा इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहती?
हममें से किसी ने भी अपने पूरे जीवनकाल में ऐसे वक्त का अनुभव नहीं किया है। सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। सरकार और आरबीआई मिलकर निर्णय लेंगे। एक बात कह सकता हूं कि जो भी होगा, वह आम लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा।
राहुल गांधी से लेकर पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल विजेता अभिजीत मुखर्जी तक ने कहा है कि तत्काल मजदूरों और गरीब लोगों के खाते में नकद पहुंचाने की जरूरत है। जहां तक मुझे जानकारी है कि आपने शिकागो यूनिर्वसटिी में रघुराम राजन के अंडर में पीएचडी की है। रघुराम राजन ने कहा है कि अगर करीब 12-13 करोड़ गरीब परिवारों को 5000 दिया जाता है तो बमुश्किल 60- 65 हज़ार करोड़ खर्च होंगे और 2 ट्रिलियन से ज्यादा बड़ी इकोनॉमी वाले और करीब 30-40 लाख करोड़ के सालाना बजट वाले भारत के लिए ये करना कोई बड़ी बात नहीं है। अपने गुरु रघुराम राजन के इस सुझाव पर शिष्य कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन की क्या राय है?
मैं इस पर महाभारत का उदाहरण देना चाहता हूं। द्रोणाचार्य और अर्जुन दोनों ही धनुर्विद्या में माहिर थे लेकिन अर्जुन हर वह बाण नहीं चलाता था, जो द्रोणाचार्य चलाते थे। दोनों के अपने अलग-अलग अस्त्र थे ।
वैसे तो शेयर बाज़ार को अर्थव्यवस्था का विसनीय पैमाना नहीं माना जाता लेकिन करोड़ों मध्यवर्गीय लोग बड़ी मात्रा में शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं। मार्च से ही लगातार शेयर बाजार गिरते गिरते धराशायी हो चुका है। आप शेयर बाज़ार को मॉनिटर करने वाली संस्था सेबी से भी जुड़े रहे हैं। शेयर बाजार को जनवरी फरवरी वाली स्थिति तक पहुंचने में अभी कितना वक्त लगेगा?
शेयर बाजार पर भी मैं ध्यान देता हूं। शेयर बाजार का ऊपर नीचे होना इकोनामी से भी जुड़ा होता है लेकिन शेयर बाजार ही सबसे महत्वपूर्ण चीज नहीं है। कई बार इकोनामी अच्छी होती है तब भी शेयर बाजार गिर जाता है या इसके उलट शेयर बाजार अच्छा हो तब भी इकोनामी गिरती है। शेयर बाजार भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए चलता है। अर्थव्यवस्था लोगों की जरूरत पर ज्यादा ध्यान देते हुए चलती है। हमारा ध्यान लोगों की आवश्यकता है।
मजदूरों की घर वापसी से पंजाब-हरियाणा के किसानों को खेती में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। मुंबई, दिल्ली, गुजरात के उद्यमियों को भी श्रमिकों की कमी की समस्या है। क्या मजदूरों के पलायन से औद्योगिक राज्यों को उद्योगों को चलाने में और मूल राज्यों को बेरोजगारों को समायोजित करने में समस्या नहीं होगी? और इससे आर्थिक परिवेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हमारे देश में सबसे बड़ा नौकरी देने वाला सेक्टर इनफॉर्मल सेक्टर है। 90 फ़ीसद नौकरियां इसी सेक्टर में आती हैं। प्रवासी मजदूरों पर बहुत असर पड़ा है, लेकिन इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। जिनमें वन नेशन वन राशन एक महत्वपूर्ण योजना है। जिसे इसी साल पूरा कर लिया जाएगा। प्रवासी मजदूरों को इससे फायदा होगा कि जहां काम करते हैं, वहीं उनके राशन कार्ड पर अनाज मुहैया कराया जाएगा। इसके अलावा श्रम कानूनों में भी काफी सुधार किया जा रहा है ताकि फॉर्मल सेक्टर में भी इन लोगों के लिए नौकरियों को प्रेरित किया जा सके। यह कठिन समय है लेकिन इसने हमें मजदूरों के महत्व को भी समझाया है। धूप में जाकर ही छांव का महत्व समझ में आता है। जो कुछ हुआ उससे आज हमें पता लगा है कि हमारी अर्थव्यवस्था के लिए मजदूर कितने महत्वपूर्ण है।
विदेशों में बसे भारतीय अपने देश में डॉलर भेजते रहे हैं, लेकिन कोरोना संकट में इनकी स्वदेश वापसी के बाद इस पर कितना असर पड़ने की संभावना है?
आपने बिल्कुल ठीक कहा है एनआरआई पैसा भेजते हैं तो रेमिटेंसेस बढ़ते हैं और भारत सबसे ज्यादा रेमिटेंस का लाभ उठाने वाला देश रहा है। गल्फ से बड़ी तादाद में लोगों ने वापसी की है हालांकि यह महामारी के काल में हुई वापसियां है। जैसे जैसे अन्य देशों की स्थितियां सुधरेगी लोग दोबारा वहां जाकर काम करना शुरू करेंगे। इस साल स्थितियां इसी तरह की रहेंगी।
पर्यटन, होटल उद्योग, एयरलाइन उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं, इनके खुलने के बावजूद लोग डर से वहां नहीं जा रहे हैं। इसका, देश की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव होगा? कृषि ही इस वर्ष की जीडीपी को किसी हद तक संभालेगी, क्या एमएसपी का 3% बढ़ाया जाना पर्याप्त है और क्या किसान एमएसपी पर फसल बेच पा रहे हैं?
ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरियों का ट्रेंड अच्छा रहा है। बारिश भी सही समय पर हो रही है, जिससे कृषि क्षेत्र में तेजी देखने को मिल रही है। जो रिफॉर्म के कदम उठाए गए हैं, उनसे भी फर्क पड़ा है। उदाहरण के लिए एपीएमसी एक्ट या एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में सुधार से भी इस क्षेत्र में काफी तेजी देखने को मिल रही है। किसान के जीवन में सुधार आ रहा है। 45 फ़ीसद लोग कृषि करते हैं। निश्चित तौर पर इनका जीवन सुधरेगा तो स्थितियां बेहतर होंगी।
एक ओर आत्मनिर्भर भारत और दूसरी तरफ निगेटिव जीडीपी ग्रोथ। हिंदुस्तान में इकोनॉमी के दो बड़े पिलर दिल्ली और मुम्बई में कोरोना ने रफ्तार रोक रखी है। गंभीर संकट में भी आखिर उम्मीद की वजह क्या है?
मैंने भी मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफर किया है। वहां ऐसी भीड़ होती है, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग तो छोड़िए सांस लेना भी मुश्किल होता है। यदि इस समय वहां जनजीवन सामान्य कर दिया गया तो कोरोना संक्रमण के मामलों में बहुत ज्यादा वृद्धि हो जाएगी। अभी बीच का रास्ता अपनाना होगा। देख देख कर कदम रखना होगा।
कोरोना की मार ने बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विस को कमज़ोर कर दिया है। कमजोर बैंकिंग सिस्टम के सहारे इकोनॉमी को ग्रोथ देना बड़ी चुनौती है।
बैंकिंग सेक्टर पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। महामारी के पहले भी हमारी बैंकिंग व्यवस्था बहुत दुर्बल अवस्था में थी। तीन लाख करोड़ के ऋण पैकेज से हम एमएसएमई सेक्टर को ऊपर उठाने का काम कर रहे हैं। उन्हें 1 साल तक ना प्रिंसिपल देना है और ना ही इंटरेस्ट। इस साल उनका कैश फ्लो भी कम रहने वाला है। 4 साल के लोन की भरपाई अगले 3 साल में होगी। इसी तरह रिफॉर्म को लेकर भी कई कदम उठाए गए हैं। जिन से आगे चलकर विकास दर बढ़ेगी। कंपनियों की फाइनेंशियल स्थितियां सुधरेंगी। कोई डिफॉल्ट नहीं रहेगा। कुल मिलाकर हमारे फाइनेंशियल सेक्टर को मजबूत करने का समय मिलेगा।
हम अनलॉक टू की तैयारी कर रहे हैं। हमें अब कोरोना के साथ जीना होगा। इस डर के बीच में सभी कामों को दोबारा शुरू करना है। इसके लिए किस तरह की वैकल्पिक रणनीति बनाई जा रही है?
हमारा जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा है। इसको ध्यान में रखकर हम आंकड़े जांच रहे हैं। 134 करोड़ लोगों में 4 लाख केसेज आना यूं तो हमारी अच्छी स्थिति को दिखाता है। यदि सिर्फ महाराष्ट्र की बात करें तो वह जर्मनी और ब्रिटेन से भी ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है। हम अपनी अर्थव्यवस्था को बहुत समय तक लॉकडाउन नहीं रख सकते हैं। ऐसे में हमें मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग आदि के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे आगे बढ़ाना होगा।
छोटी अवधि यानी शार्ट टर्म में डिमांड बढ़ाने के लिए क्या रणनीति अपनाई जा रही है?
इस महामारी के कारण एक अनिश्चितता का माहौल बना है। अभी लोग सिर्फ आवश्यक चीजों पर खर्च करेंगे। जो चीजें बहुत आवश्यक नहीं है, उसे कोई नहीं खरीदेगा। सभी को अनिश्चितता में भविष्य के लिए पैसा संभाल कर रखना है। ऐसे में डिमांड पर असर पड़ता है। बाकी देशों में कैश के जरिए जो मदद की जा रही है उससे भी लोग अनाज ही खरीद रहे हैं। यानी खाद्य सुरक्षा इस वक्त सबसे बड़ा मसला है। जैसे जैसे अनिश्चितता कम होगी वैसे वैसे इकोनामी को पुश मिलेगा। हमारे यहां कहा जाता है सब्र का फल मीठा होता है। अभी वक्त है सब्र करने का।
बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार के पास क्या योजना है? यदि कोरोना संक्रमण नियंत्रण में नहीं आते हैं और सरकार को दूसरे लॉक डाउन को लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ता है तो इसका आर्थिक प्रभाव क्या होगा?
मनरेगा में राशि को बढ़ाया गया है। हम लगातार आंकड़ों को फॉलो कर रहे हैं। मनरेगा में काम करने वालों की तादाद भी बढ़ी है। प्रवासी मजदूरों को रोजगार पैकेज भी दिया गया है। लेकिन यह सभी शार्ट टर्म प्रयास है। लॉन्ग टर्म में हमें फॉर्मल सेक्टर में नौकरियों को प्रेरित करना है। अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए ग्लोबल वैल्यू चेन पर पूरी तरह से ध्यान देना है। 2025 में हम चार से साढ़े चार करोड़ नौकरियां पैदा कर सकते हैं और 2030 तक हमारा लक्ष्य 8 करोड़ नौकरियां देने का है। इसके लिए हमें निर्यात को मजबूत करना होगा। इसी तरह कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए फूड प्रोसेसिंग, वेयरहाउस और स्टोरेज जैसी चीजों पर काम किया जा रहा है। इससे इस सेक्टर में रोजगार बढ़ोतरी का अनुमान है। छोटे उद्योगों को फूड प्रोसेसिंग जैसे प्रयासों से काफी मजबूती मिलेगी। इंफ्रास्ट्रक्चर पर 103 लाख करोड़ रु पए खर्च किए जा रहे हैं। इससे कंस्ट्रक्शन सेक्टर में भी रोजगार बढ़ेगा। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण काम है लेबर कानूनों में सुधार लाना। जिससे निवेशकों को प्रोत्साहन मिलेगा और उत्पादन के साथ-साथ रोजगार भी बढ़ेगा।
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम 5 ट्रिलियन की इकोनामी बनने की तरफ आगे बढ़ पाएंगे?
जरूर, हमने जुलाई 2019 में आर्थिक सर्वे में अपनी रणनीति को साफ तरीके से रखा था। निवेश पर हमें ध्यान देना है। निवेश से रोजगार बढ़ेगा। पैसा आता है तो डिमांड बढ़ती है, और एक वर्चुअल साइकिल तैयार होता है। कॉरपोरेट टैक्स रेट में कमी की जा रही है। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के जरिए ग्रोथ रेट को बढ़ाने पर काम हो रहा है। इस वक्त थोड़ा निराशा का समय है लेकिन कुछ समय बाद यह वक्त खराब सपने की तरह लगेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और नेतृत्व में क्या खूबी आप आते हैं?
वह एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो अपने लिए नहीं, बल्कि देश के लिए सोचते हैं। ऐसे लोगों के साथ अच्छी शक्तियां भी काम करती हैं। वह समर्पण के साथ काम करने वाले व्यक्ति हैं और उनका सबसे बड़ा गुण है ध्यान से सुनना। यही वजह है कि जब हम अपनी बातों को रखते हैं तो वह कभी टोकते नहीं और सुझावों को बहुत ध्यान से सुनते हैं। इससे आइडिया को अमल करने की संभावनाएं बढ़ती हैं और हम लोगों को काम करने के लिए ज्यादा स्कोप मिलता है।
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