हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखती हैं ममता : धनखड़
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत। |
केंद्र और पश्चिम बंगाल की ममता सरकार के बीच लंबे समय से टकराव चल रहा है। वोट बैंक की सियासत के बीच एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं जिसका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ रहा है। इन तमाम मुद्दों पर प. बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत-:
एक तरफ जब पश्चिम बंगाल कोरोना का मुकाबला करने में व्यस्त है तो दूसरी ओर प्रदेश में सुपर साइक्लोन अम्फान ने कहर बरपाया है। एक साथ दो आपदा। इस चुनौती से कैसे मुकाबला कर रहा है पश्चिम बंगाल?
चुनौती तो बहुत बड़ी है क्योंकि मुख्यमंत्री के टकराहट वाले व्यवहार की वजह से केंद्र और राज्य के बीच में समन्वय नहीं बन पा रहा है। केंद्र की तरफ से जो सुझाव और सहायता दी जाती है उसका क्रियान्वयन राज्य में सही तरीके से नहीं होता है। उदाहरण के लिए पूरे देश में किसानों के खातों में पैसे जा रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने अभी तक किसानों का कोई आंकड़ा केंद्र सरकार को नहीं दिया है। इससे किसानों के साथ ज्यादती हो रही है। इसी तरह आयुष्मान भारत योजना हो या स्किल डेवलपमेंट योजना, इन सभी मामलों में राज्य सरकार का रवैया टकराहट वाला रहा है। यहां के लोगों को वह मदद नहीं मिल पा रही है जो देश के अन्य हिस्सों में केंद्र की तरफ से अलग-अलग राज्यों को मिल रही है।
हर व्यवहार की वजह होती है। ममता बनर्जी का यह व्यवहार भी यूं ही तो नहीं होगा। आपको इसकी क्या वजह समझ में आती है?
वह हर चीज को राजनीतिक चश्मे से देखती हैं। मुझे भी 10 महीने का समय हो गया है। मैंने देखा है कि उन्होंने प्रतिपक्ष के लोगों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया है। उनकी प्राथमिकता हमेशा से राजनीति रही है। पुलिस की कार्यवाही प्रतिपक्ष के तमाम लोगों पर की गई है। अपनी पार्टी के लोगों और विशेष वर्ग के लोगों को ही सहूलियतें दी गई हैं। यह समझना होगा कि यह राजनीति और वोट बैंक को संभालने का समय नहीं है। केंद्र की तरफ से तीन महीने के लिए फ्री राशन का इंतजाम किया गया है। वह भी यहां राजनीतिक कार्यकर्ताओं के हाथ में देकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बदहाल कर दिया गया है। वैचारिक मतभेद अपनी जगह है लेकिन इसका शिकार जनता को नहीं बनाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल के साइक्लोन प्रभावित इलाके का दौरा किया और हरसंभव मदद का ऐलान किया। उनके इस दौरे का कितना असर देखा जा रहा है?
प्रधानमंत्री ने बिना समय गंवाए तूफान के बाद पश्चिम बंगाल का दौरा किया। मुख्यमंत्री उनके साथ रहीं। मैं भी इस दौरे के दौरान साथ ही था। मैं मुख्यमंत्री के इस कदम की सराहना करता हूं। प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य को इस आपदा के समय में 1000 करोड़ रुपए की मदद का वादा उस समय पर किया था जो उसी दिन शाम को राज्य सरकार को दिए गए। तूफान का समय जनता और प्रदेश के लिए इम्तिहान का समय है। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था जब कोलकाता जैसे शहर में बिजली पानी सब कुछ पूरी तरह से ठप हो गया हो। तमाम जानकारियां पहले से मिलने के बावजूद राज्य सरकार की तैयारियां शून्य थीं। तीन दिन बाद बिजली के खंभे खरीदने का आर्डर दिया गया। वहीं इंडियन कोस्ट गार्ड से मेरी बात हुई थी तो उन्होंने कहा था समंदर में किसी की मौत नहीं होगी और उन्होंने वहां किसी का नुकसान नहीं होने दिया। मौसम विभाग ने अच्छा काम किया और पहले ही सारी जानकारियां दे दी गई थीं लेकिन उनकी जानकारियों के मुताबिक कोई तैयारियां नहीं कीं।
किसी भी प्रशासन में अधिकारी पहले आते हैं और राजनेता बाद में। ऐसे में राजनीतिक विद्वेष पर पूरी जिम्मेदारी कैसे डाली जाए?
कोलकाता नगर निगम एक ऐसी जगह है जहां कभी सुभाष चंद्र बोस बैठा करते थे। यहां राज्य के एक मंत्री की बैक डोर से एंट्री करवा दी गई। वह अखबारों में विज्ञापन देते रहे। हालात बद से बदतर होते रहे। किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब आर्मी बुलाई गई तब हालात में कुछ सुधार आया। बहरहाल, यह टीका टिप्पणी करने का समय नहीं है। जनता के हितों को सर्वोपरि रखना जरूरी है।
पश्चिम बंगाल देश के उन टॉप-10 राज्यों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा कोरोना का संक्रमण फैला है। इस समय आपके अनुसार राज्य में कैसे हालात हैं?
हालात बेहद चिंताजनक है। प्रवासी मजदूर वापस आ रहे हैं लेकिन इसे भी राजनीतिक रंग दे दिया गया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि मजदूर यहां से बाहर क्यों जाते हैं? क्यों नहीं उन्हें यहीं पर रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाते? अब जब वह अपने घर वापस आ रहे हैं तो इसके लिए हमें तैयारी करनी होगी। कोलकाता में हालात किस कदर खराब हैं, इसका अंदाजा कोलकाता के पुलिस स्टेशन में होने वाले हंगामे, विद्रोह और ट्रेनिंग स्टेशन पर होने वाले विद्रोह जैसी घटनाओं से लगाया जा सकता है। मीडिया को भी यहां नहीं बख्शा गया है। बड़े अखबारों के संपादकों तक पर मामले दर्ज किए जा रहे हैं। पत्रकारों को धमकी दी जाती है कि उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
अभी तक राज्य में कितने मजदूर वापस आ पाए हैं और कितने मजदूरों को पश्चिम बंगाल से वापस भेजा जा चुका है? रेल मंत्री पीयूष गोयल ने तो यहां तक कहा है कि राज्य सरकार मजदूरों के साथ क्रूर मजाक कर रही है।
राजनीति नहीं यह जनता की मदद करने का समय है। यहां भारतीय संविधान को ताक पर रख दिया गया है। राज्यपाल की भूमिका पर ही सवाल खड़े कर दिए जाते हैं। अपने देश में चर्चा करने के बजाय पहले यूएन में चर्चा कराने की जल्दबाजी रहती है। हर बात को सांप्रदायिक रंग दे दिया जाता है। अभी समय यह नहीं है कि किस तरह राजनीतिक लाभ लिया जाए। अभी समय इस बात को जानने का है कि जनता को क्या दिया जा सकता है, कैसे मदद की जा सकती है। सरकार को अपने रवैए में बदलाव लाना होगा।
इसी तरह विदेशों में फंसे लोगों को लेकर भी राजनीति हो रही है। ममता सरकार का कहना है कि पश्चिम बंगाल के साथ पक्षपात हो रहा है। यह आरोप कितना सही है?
मैं बिल्कुल इस बात को नहीं मानता। मुझे 24 घंटे इस मामले में जानकारियां मिलती रहती हैं। विदेश की भी तमाम जानकारियां मुझे मिली हैं। हमारा केंद्रीय विदेश मंत्रालय इस मामले में काफी सक्रिय रहा है। इसी तरह हमारे प्रवासी मजदूरों और छात्रों को लाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन यहां भी राजनीतिक वायरस हावी हो जाता है। राज्य सरकार ने इन छात्रों को लाने के लिए जिन फ्लाइट्स की व्यवस्था की गई थी उन्हें पांच दिन के लिए टाल दिया जिन छात्रों ने अपने टिकट बुक करा लिए थे उन्हें भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
आपने केंद्र सरकार के आर्थिक पैकेज की सराहना की तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने आपको बीजेपी का प्रतिनिधि करार दे दिया। क्या कहना चाहेंगे आप?
मैं हर राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं से मिलता हूं सिर्फ रूलिंग पार्टी से मेरी मुलाकात नहीं हो पाती। हालांकि मैं तृणमूल कांग्रेस के भी कई सांसदों के संपर्क में रहता हूं। वह कहते हैं कि उनका ट्विटर अकाउंट उनके पास नहीं है। उनके अकाउंट कोई और इस्तेमाल कर रहा है। इसीलिए उनके अकाउंट से जो कुछ लिखा जाता है वह उसके लिए माफी मांगते हैं। संसद में पहुंचने वाले जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि इस तरह की बात करें तो यह राजनीति को कलंकित करने वाला है। मैं इसे घिनौना कृत्य मानता हूं जो इस वक्त राज्य सरकार में किया जा रहा है। जहां तक कल्याण बनर्जी की बात है वह मेरे मित्र हैं। मुझसे आमने-सामने कुछ और कहते हैं और पब्लिक में कुछ और बात कहते हैं।
क्या आपको लगता है कि पश्चिम बंगाल सरकार आपके साथ सहयोग नहीं कर रही है? आखिर राज्य सरकार को केंद्र और राज्यपाल से किन बातों को लेकर समस्या आ रही है?
ममता बनर्जी बड़ी नेता रही हैं। उन्होंने सांसद और रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है। मैं उनका आदर करता हूं लेकिन पिछले 9-10 महीनों में मुझसे मुलाकात नहीं हुई। मैंने एक-दो मौकों पर पूछा भी कि कांस्टीट्यूशनल डिस्टेंसिंग आपने क्यों बना रखी है? दरअसल ममता बनर्जी की स्क्रिप्ट भी कोई और लिख रहा है। अब यह खुला रहस्य है कि सरकार को बाहर के लोग संचालित कर रहे हैं। मंत्री आपस में लड़ रहे हैं। हालात यह हैं कि मैं उसका सही-सही चितण्रभी यहां नहीं कर सकता। मैं मीडिया से गुजारिश करता हूं कि वह यहां पर आए और खुद हालात को देखकर समझे। यहां तक कि मेरे विधानसभा में दिए गए भाषण को भी ब्लैक कर दिया गया। मीडिया में इसकी कहीं कोई रिपोर्ट तक नहीं आई।
कोलकाता का मीडिया दबाव में हो सकता है लेकिन पूरे देश का मीडिया नहीं। वहां भी यह बात क्यों नहीं आई?
यहां बात सिर्फ मेरी नहीं है। मीडिया को भी जंजीरों में जकड़ रखा है। पत्रकारों को नोटिस दिए जा रहे हैं। एडिटर के खिलाफ कार्रवाई होती है और उस तक की खबर नहीं छपती है। किसी की हिम्मत नहीं है जो राज्य सरकार से कोई सवाल पूछ सके। मुझे भी सवाल पूछने के लिए सार्वजनिक रूप से बात करनी पड़ती है। मैंने सार्वजनिक रूप से अधिकारियों से सवाल किया कि 40 हजार टेस्ट कोविड-19 के हो चुके हैं लेकिन इनकी रिपोर्ट क्यों नहीं आ रही है? हम संविधान का गला घोट रहे हैं और यह बहुत ही घातक है।
केंद्रीय सर्वेक्षण टीम भी इसीलिए भेजी गई थी, उसे भी रोका गया। क्या राज्य सरकार कोविड-19 के मामलों को दबाना या छुपाना चाहती है?
केंद्रीय सर्वेक्षण टीम सिर्फ पश्चिम बंगाल में नहीं आई बल्कि पूरे देश में गई है। लेकिन पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य रहा जहां पर इस टीम के लिए कांटे बोए गए। केंद्रीय दल ने बहुत ही सराहनीय काम किया। विशेषज्ञों की टीम ने यहां पर बहुत अच्छा काम किया जिसके बाद हालात में कुछ सुधार आया है।
हाल ही में कोलकाता नगर निगम में प्रशासक नियुक्त करने को लेकर जारी अधिसूचना के बारे में आपको मीडिया से पता लगा। आपके नाम से ही कार्रवाई की गई और आपको ही नहीं बताया गया। फिर आपने मुख्य सचिव से जवाब-तलब किया। इस बारे में क्या कहेंगे आप?
राज्यपाल से जंग में राज्य सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ रही है। यहां संविधान की जमकर अवहेलना की जा रही है लेकिन मैंने लगातार संयम दिखाया है और मैं आगे के लिए भी सकारात्मक सोच रखता हूं। अधिकारियों को बैक डोर से गैर कानूनी तरीके से अलग-अलग जगह पर बैठाया जाता है जिसका मैंने विरोध किया है। अलग-अलग विभागों के सचिवों को रातोंरात बदल दिया जाता है। कमिश्नर बदल दिए जाते हैं। सभी के मनोबल को गिराने का काम राज्य सरकार करती है। सबसे दुखद यह है कि राज्य में पुलिस और अधिकारी पार्टी कार्यकर्ताओं की तरह काम करते हैं। जो लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है। यह अधिकारी भी बहुत बुरा काम कर रहे हैं। मैं पूरे देश के मीडिया से कहूंगा कि जब आप यहां पर आएंगे तो आपको लगेगा कि मैं जो कुछ कह रहा हूं वह कम ही है। हालात इससे ज्यादा खराब हैं।
आपको क्या लगता है, आखिर राज्य सरकार के कौन-कौन से फैसले हैं जिन्हें आप तुगलकी फरमान की श्रेणी में रखते हैं?
इस शब्द का तो मैं इस्तेमाल नहीं करूंगा लेकिन उदाहरण के लिए मैंने दो वाइस चांसलरों की नियुक्ति की थी। राज्यपाल का अधिकार होता है वाइस चांसलर को नियुक्त करना लेकिन इन दोनों नियुक्तियों को राज्य सरकार ने खारिज कर दिया। जबकि कानूनी तौर पर वह ऐसा नहीं कर सकते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य सरकार की कानून से बड़ी लड़ाई है। हम अपने शैक्षणिक संस्थानों को गलत दिशा में धकेल रहे हैं। वाइस चांसलर, मंत्री के साथ सड़क पर बैठकर धरना दे रहे हैं। सरकार को यह समझना चाहिए कि वह जनता और संविधान के लिए उत्तरदायी है। हमारे ग्रामीण इलाकों के हालात भी बद से बदतर होते जा रहे हैं। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी मुझसे कहा कि राज्य में क्या होता जा रहा है? हालात बद से बदतर हो रहे हैं। सभी राजनीतिक दल एक सुर में यही गुहार लगा रहे हैं कि सरकार असली काम पर ध्यान नहीं दे रही है और राजनीति ही कर रही है।
पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन के दौरान सख्ती न बरते जाने के काफी आरोप लगे हैं। क्या आप इससे सहमत हैं, क्या वजह है कि लॉकडाउन का पालन बेहतर ढंग से नहीं हो पाया?
पूर्ण लॉकडाउन का अनुपालन एक बड़ी चुनौती है और पश्चिम बंगाल में तो यह चुनौती बहुत ही ज्यादा गंभीर हो जाती है क्योंकि यहां हर काम राजनीतिक दृष्टि से किया जाता है। धार्मिंक स्थानों पर पुलिस की नाक के नीचे गैरकानूनी तरीके से काम होते रहे। केंद्र की चिट्ठी को भी नजरअंदाज करते हुए राज्य सरकार ने कोविड-19 की गंभीरता को नहीं समझा। अभी भी पश्चिम बंगाल में हालात को लेकर हम सतर्क नहीं हुए तो हालात बहुत बुरे हो जाएंगे।
एक मुद्दा जरूरतमंदों को सरकारी राशन न मिलने का भी है। इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में जमकर सियासत भी हुई है। राज्य में जमीनी हकीकत क्या है?
गत 23 मार्च को केंद्र सरकार ने तीन महीने के लिए गरीबों को राशन देने की शुरुआत की। पश्चिम बंगाल में जब यह राशन नहीं पहुंचा तो मैंने केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान जी को फोन लगाया और उनसे पूछा कि आखिर हमारे राज्य में राशन क्यों नहीं आ रहा है? दस मिनट के भीतर ही उन्होंने मुझे वह सारी चिट्ठियां भेजीं जो राज्य सरकार और उनके बीच चल रहे संवाद को बताती थीं। किस तरीके से राज्य सरकार का असहयोग इस पूरे मामले में रहा, वह इससे स्पष्ट हो गया। जो काम एक अप्रैल से शुरू होना था वह 20 अप्रैल से शुरू हो पाया। इसके बाद मैंने खुद इस पूरी प्रक्रिया को मॉनिटर किया। कितना चावल आ रहा है, इसके बारे में मैंने जानकारी ट्विटर पर साझा की। एफसीआई के हवाले से मैंने बताया कि छह लाख टन चावल और दाल पश्चिम बंगाल में आया है। इसके बाद खाद्य मंत्री ने झूठ बोलने का आरोप तक लगा दिया। आप अंदाजा लगा सकते हैं संविधान की कितनी अवहेलना यहां पर हो रही है।
तब्लीगी जमात के मुद्दे को लेकर भी ममता सरकार पर सवाल उठे हैं। सरकार पर तुष्टीकरण के आरोप लगे हैं। क्या कहेंगे आप?
मरकज और निजामुद्दीन में जो कुछ हुआ उसने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में पूरे गणित को बिगाड़ दिया। जहां-जहां ये लोग गए वहां-वहां संक्रमण बहुत ज्यादा फैल गया। पश्चिम बंगाल में भी यह मुद्दा उठा। इस पर एक पत्रकार ने हिम्मत करके ममता बनर्जी जी से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं सांप्रदायिक सवालों का जवाब नहीं देती। सवाल यह उठता है कि यह सांप्रदायिक मामला कैसे हो सकता है? यह राज्य की सुरक्षा का मामला है, बेहद गंभीर मामला है और मैंने खुद भी कहा कि इस पूरे मामले में तब्लीगी जमात से आए लोगों की संख्या को उजागर किया जाना चाहिए। हाल ही में मुझे राज्य के गृह सचिव ने पुख्ता जानकारियां दी। मैंने उसे ट्विटर पर साझा भी किया है कि 84 ऐसे लोग हैं जो इंडोनेशिया मलयेशिया बांग्लादेश आदि देशों से यहां पर आए थे।
आप राज्यपाल होने के साथ-साथ एक कानूनविद् भी हैं। कई बार यह भी आरोप राज्य सरकार की तरफ से लग रहे हैं कि आप कानून के दायरे से बाहर जाकर काम कर रहे हैं। इन आरोपों पर क्या कहेंगे?
मेरा मानना है कि हर व्यक्ति को अपने दायरे में काम करना चाहिए। ममता बनर्जी अगर इस तरह के आरोप लगा रही हैं तो वह मुझे बताएं कि मैंने कौनसा ऐसा काम किया है जो कानून के दायरे के बाहर है? मेरे किसी एक काम को लिखित में बता दिया जाए। यदि ऐसा कोई काम होगा तो मैं उसमें सुधार लाऊंगा। लेकिन अभी तक किसी ने मुझे लिखित में इस बारे में कुछ भी नहीं कहा। वह हमेशा केंद्र द्वारा धन दिए जाने की बात कहती रहती हैं। अभी 1000 करोड़ रु पए की राहत राशि दी गई है। इसका सही वितरण हो यह बहुत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2009 में आईला तूफान के वक्त सुंदरवन के लिए भी केंद्र ने काफी मदद की थी लेकिन यह सारा धन जरूरतमंदों तक पहुंचने के बजाय ममता जी तक ही पहुंच कर रह गया। राजनीतिक दलों ने बकायदा इसके बारे में एक शिकायत लिख कर दी थी। इसीलिए मेरा मानना है कि राशि सीधे जरूरतमंदों तक पहुंचने चाहिए। इसमें पारदर्शिता आनी चाहिए।
महामारी के बीच भी लोगों को भोजन बांटने में सियासत हो रही है। सरकार पर आरोप लगा है कि बीजेपी के सांसदों को बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जा रही है। यह कितना सही है?
प्रतिपक्ष का कोई भी व्यक्ति नहीं बचा है। चाहे वह कम्युनिस्ट हो, कांग्रेस हो या बीजेपी के लोग हों। पुलिस पश्चिम बंगाल में इंतजार करती रहती है कि उसे शिकायत मिलें और वह इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें। कोविड-19 एक ऐसा समय है जब सबको साथ में खड़ा होना चाहिए। ऐसे समय में ममता बनर्जी बयान देती हैं कि प्रतिपक्ष गिद्ध है और शवों का इंतजार कर रहा है। मैंने उनसे कहा कि इस तरह के बयान को वापस ले लेकिन वह अपने बयान पर अड़ी रहीं।
बड़ी संख्या में पूर्वोत्तर राज्यों की नर्से नौकरी छोड़कर जा रही हैं। आपके पास क्या जानकारी है, इसके पीछे क्या वजह हो सकती है?
अखबार के माध्यम से मुझे भी इस बारे में जानकारी मिली है। बहुत मुमकिन है कि यह तमाम नर्से अपने परिजनों से मिलने के लिए जा रही हों। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हेल्थ सेक्टर और कोरोना वारियर्स बहुत तनाव में भी हैं। जरूरी किट नहीं मिलने का दबाव है, आंकड़ों को दबाने का दबाव है। सोशल मीडिया भी इतना एक्टिव हो गया कि कोई बात छुप नहीं पाती है। फिर भी मेरा मानना है कि यह लोग ऐसे वक्त पर नहीं जाते तो ठीक होता।
शिक्षा को लेकर आगे किस तरह की प्लानिंग है। जो नुकसान हुआ है, उसकी कैसे भरपाई करेंगे?
शिक्षण संस्थान पूरी तरह सरकार के शिकंजे में आ गए हैं। वाइस चांसलर मंत्रियों के साथ धरने पर बैठ रहे हैं। इन संस्थानों का राजनीतिकरण हो रहा है। यह सारी चीजें बहुत खतरनाक हैं। मैंने कई बार इसके लिए आगाह किया है कि शिक्षण संस्थानों के साथ खिलवाड़ न किया जाए। किसी भी देश को तोड़ने के लिए उसकी शिक्षा पद्धति को बर्बाद करना एक बहुत बड़ी साजिश होती है। पश्चिम बंगाल में बहुत अच्छे शिक्षण संस्थान हैं, यूनिर्वसटिीज बहुत अच्छा काम कर रही हैं। आईआईटी खड़गपुर या आईएएम कोलकाता भी अच्छी श्रेणी के संस्थानों में गिने जाते हैं। मेरा मानना है कि इन संस्थानों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। राज्यपाल का अधिकार होता है कि वह वाइस चांसलर्स की नियुक्ति करे। आज तक आपने देश में कहीं नहीं सुना होगा कि राज्यपाल की सहमति के बिना वाइस चांसलर की नियुक्ति की गई हो लेकिन यहां पर मैं पिछले कुछ दिनों में ही इस तरह की घटनाएं देख चुका हूं।
आप राज्य सरकार को क्या सलाह देना चाहेंगे और कैसे केंद्र और राज्य के बीच में बेहतर संवाद और समन्वय स्थापित हो सकता है?
रक्षाबंधन पर जब ममता बनर्जी आई थीं तब मैंने उन्हें कहा था आप मेरी छोटी बहन की तरह हैं। रस्सी को सांप मत समझिए। मैं कभी भी लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करूंगा लेकिन उन्होंने विश्वास नहीं किया। वह महत्वपूर्ण कामों को आउटसोर्स करवा रही हैं। बड़े सांसदों के ट्विटर हैंडल कोई और इस्तेमाल कर रहा है और अमर्यादित टिप्पणियां की जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस सबको कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। लोकतंत्र को बचाना है तो यह सब रोकना होगा। पुलिस का राजनीतिकरण हो रहा है। इसे भी रोकने की जरूरत है। लोगों में विश्वास बहाली करना बहुत आवश्यक है।
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