लोगों को नहीं पता, भारत में ही कितनी खूबसूरत जगहें : पटेल

Last Updated 27 May 2020 02:33:47 AM IST

संस्कृति किसी राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक होती है। यही नहीं, इसके आधार पर विकसित होने वाले पर्यटन उद्योग का अर्थव्यवस्था के विकास में अहम योगदान होता है। अब जबकि देश कोरोना संकट से जूझ रहा है, इस क्षेत्र में सरकार के कार्यक्रमों और नीतियों के बारे में केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद पटेल से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। पेश है विस्तृत बातचीत :


केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद पटेल के साथ सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय।

आपको एक बेहद महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। हमारी संस्कृति और स्मारक हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन धरोहरों और स्मारकों को संरक्षित करने और वर्तमान समय में ज्यादा प्रासंगिक बनाने की जरूरत है। इन्हें वि पटल पर रखने के लिए किस तरह की योजनाओं पर आप काम कर रहे हैं?
पर्यटन के लिहाज से देखा जाए तो पूरी दुनिया के लोग भारतीय संस्कृति को देखने के लिए ही यहां पर आते हैं। पहले भारतीय धरोहरों को लगातार नकारा गया हालांकि इस बात को कोई अस्वीकार नहीं करता कि दुनिया भर में जहां-जहां भी चुरा कर चीजें ले जाई गई हैं, वह भी भारत की संस्कृति का ही अहम हिस्सा रही हैं। इसी तरह संरचनात्मक निर्माण के क्षेत्र में भी दुनियाभर के दावे धौलागिरा एग्जीबिशन के बाद खारिज हो गए हैं। यह साफ हो गया है कि जितने भी निर्माण हुए वह पहले भारत में हुए थे और उसके बाद दुनिया में भवन निर्माण या संरचनात्मक ढांचे को खड़े करने का काम शुरू हुआ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास 3671 धरोहरों की सूची है लेकिन हमारे ऐतिहासिक स्मारक महज़ इस सूची तक सीमित नहीं है। राज्यों के पास भी इसी तरह की धरोहरों की अपनी सूची है और इन सूचियों के बाहर भी हमारे पास कई स्मारक हैं। उदाहरण के लिए मंत्री बनने के बाद मैंने लेह लद्दाख की यात्रा की। करगिल की पहाड़ियों में बुद्ध की सबसे ऊंची ऊंची प्रतिमाएं मौजूद है। राजस्थान में भी कुछ इसी तरह के निर्माण और धरोहर मिलती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हमसे कई चूकें हुई हैं। हम सोचते हैं कि एएसआई ने अपना काम पूरा कर लिया है लेकिन ऐसा नहीं है हमारा देश इतना विविधताओं से भरा हुआ है कि इसकी सांस्कृतिक स्कैनिंग या मैपिंग करने के लिए हमें काफी काम करना पड़ेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर सबसे महत्वपूर्ण काम करना शुरू किया उन्होंने कल्चरल स्कैनिंग को बहुत महत्व दिया है। 100 वर्षो से पुराने जितने भी लोकनृत्य लोकगीत स्मारक आदि हैं उन्हें हम सूचीबद्ध करने के प्रयास में लगे हुए हैं। इसी तरह पांडुलिपियों को संरक्षित करने का महत्वपूर्ण काम भी हम कर रहे हैं। अभी तक 3 लाख 15 हजार पांडुलिपियों को डिजिटाइज किया गया है।  इसके अलावा 43 लाख 33 हजार ऐसी पांडुलिपियां भी हैं जिनका डॉक्यूमेंटेशन किया गया हैं।

मोदी सरकार का एक बड़ा लक्ष्य रहा है पर्यटन के जरिए रोजगार की संभावनाओं को भी सामने रखना। उन्होंने इसी के लिए अभी तक जिन जगहों को पर्यटन के लिहाज से अन्वेषित नहीं किया गया है उन्हें भी महत्व देने का प्रयास किया। उनकी पूर्वोत्तर की यात्राएं इसी बात को दशर्ती हैं। किस तरह के प्रयास ऐसी जगहों को सामने रखने के लिए किए जा रहे हैं जो पर्यटन के नक्शे पर अभी आई ही नहीं है?
इसीलिए हमने लुक ईस्ट नहीं बल्कि एक्ट ईस्ट की पॉलिसी को रखा है और उसपर लगातार मोदी सरकार काम कर रही है। इस पर बहुत अच्छा काम हुआ है और सबसे महत्वपूर्ण काम है वहां पर बने असुरक्षा के माहौल को खत्म करना। जिस तरह वहां के अंग वस्त्र को लेकर एक छोटा सा प्रयोग किया गया और वह सफल भी रहा। ऐसे छोटे-छोटे प्रयोग जागरूकता लाने में बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे देश से 2.6 मिलियन लोग विदेशों में भ्रमण करने के लिए जाते हैं। देश देखो की नीति के तहत अपने ही देश में पर्यटन को बढ़ावा देने का एक प्रयास किया गया है क्योंकि यह बात सही है कि अभी दुनिया भर में जाने वाले लोगों को पता ही नहीं है कि भारत में ही कितनी खूबसूरत जगह है। घरेलू पर्यटन को बढ़ाना हमारी प्राथमिकता है।

वर्ल्ड ट्रेवल एजेंसी के मुताबिक पूरी दुनिया में 33 करोड़ लोगों को पर्यटन इंडस्ट्री रोजगार देती है। हमारे यहां रोजगार के अवसर कैसे बढ़ाए जा सकते हैं?
हमें पर्यटन इंडस्ट्री की रूपरेखा को समझना होगा। हम पर्यटन मंत्रालय जरूर चलाते हैं लेकिन वह इस बड़ी इंडस्ट्री का एक साझेदार मात्र है। इसके अलावा राज्य सरकारें इसकी साझेदार होती हैं, होटल्स इसके साझेदार होते हैं, गाइड और लोकल लोग भी इसके साझेदार होते हैं। इसमें सीधे-सीधे कोई योजना नहीं बनाई जा सकती है। स्वदेश दर्शन योजना का मकसद यही है कि इस इंडस्ट्री के जरिए पर्यटन को विकसित किया जाए। उदाहरण के लिए कई राज्यों में ऐसी धरोहर हैं जिनके बारे में लोग जानते ही नहीं हैं क्योंकि उनकी कनेक्टिविटी अच्छी नहीं है। किसी भी मुख्य सड़क को छोटा सा कर्व देकर यदि इन मान्यूमेंट के साथ कनेक्ट कर दिया जाए तो यह अपने आप में एक बड़ा काम है। हम यही प्रयास कर रहे हैं। इसी तरह सांस्कृतिक धार्मिंक और पर्यटन स्थलों पर जन सुविधाओं की कमी की वजह से भी लोग यहां पर नहीं आते थे। कुंभ ने इस बार इस दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया है। सिर्फ  मंदिर ही नहीं बल्कि चर्च आदि अन्य धार्मिंक स्थलों पर भी हमने इसी तरह की व्यवस्थाएं प्रासाद योजना के अंतर्गत की हैं।

जम्मू कश्मीर को दुनिया का स्वर्ग कहा जाता है। धारा 370 हटने के बाद यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। कहा यह भी जाता है कि यहां कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर और पर्यटन स्थल हैं जिनको देश के ही लोगों ने अभी तक नहीं देखा है। इस क्षेत्र के लिए अलग से क्या नीति बनाई जा रही है?
370 हटने के बाद मेरा पहला कार्यक्रम ही जम्मू-कश्मीर में हुआ था। सुरक्षा की दृष्टि से हालात को बेहतर किया जा रहा है और सबसे महत्वपूर्ण है लोगों का भरोसा बढ़ाना। यदि लोगों में भय रहेगा तो वह पैसा खर्च करके जाना तो दूर अगर उन्हें पैसा दिया जाए तो भी वहां नहीं जाएंगे। यही मकसद रहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सभी मंत्रियों को एक-एक रात यहीं पर गुजारने के लिए कहा। मैं खुद भी रामनगर में गया था। वहां जाकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि रामनगर गुलमर्ग से भी ज्यादा बेहतरीन पर्यटन क्षेत्र है। यहां कई ऐतिहासिक जगह है। साथ ही एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए भी ये अद्वितीय जगह है। जिस तरह का लौह स्तंभ कुतुब मीनार के पास है ठीक वैसा ही स्तंभ यहां पहाड़ों पर लगा हुआ है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितनी ऐसी जगह हैं जहां लोग पहुंच ही नहीं पाए हैं। उपेक्षा कैसे होती है इसका उदाहरण भी रामनगर में देखने को मिलता है। प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत यहां पहले फेज में ही सड़क का निर्माण शुरू होना था, जो आज तक पूरा नहीं हो पाया है। ऐसी कई रिक्तताएं हैं जिन्हें भरने का मौका आ गया है और मोदी सरकार इसी काम में जुटी हुई है।

पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में पर्यटन 10.5 फ़ीसद का योगदान देता है जो कोई अन्य व्यवसाय नहीं दे सकता। 33 करोड़ लोग इससे रोजगार पाते हैं। भारत सरकार का एक लक्ष्य था कि 2028 तक हम एक करोड़ लोगों के लिए रोजगार की संभावनाओं को इस क्षेत्र से पैदा करेंगे। कोरोना वायरस काल में इस इंडस्ट्री पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है क्या आपको लगता है कि अब पर्यटन होटल इंडस्ट्री इन सब को 2028 से पहले इस लायक बना लिया जाएगा कि हम एक करोड़ लोगों के लिए रोजगार पैदा कर पाएं।
मैं दुनिया की किसी सर्वे संस्था के हिसाब से नहीं चलता। हमारा लक्ष्य है प्रधानमंत्री मोदी के विजन को पूरा करना और उन्होंने कहा था कि 2024 तक क्या हम अपने लक्ष्य पर्यटकों की संख्या को दोगुना कर सकते हैं। हमारी इंडस्ट्री सबसे पहले बंद हुई और कोरोना संकटकाल के खत्म होने के बाद सबसे अंत में शुरू होगी लेकिन इसके बावजूद हम बहुत तेजी से अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आएंगे। इस काल ने कई चीजों को बदला है। सबसे महत्वपूर्ण है प्रधानमंत्री और जनता के बीच का संबंध। जनता ने प्रधानमंत्री पर भरोसा दिखाया है। इसके अलावा चार महत्वपूर्ण बातें हैं, जिन्होंने भारत की साख को पूरी दुनिया में मजबूत किया है। पहली बात है जीवन शैली, जिसके बारे में पहले भी बात की जाती थी लेकिन कोरोना वायरस ने बता दिया है कि भारतीय जीवनशैली सबसे बढ़िया है। वहीं हमारी परंपरागत चिकित्सा व्यवस्था भी काफी महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि हम बीमारी के इलाज से ज्यादा रोग उत्पन्न न हो पर जोर देते हैं। निश्चित तौर पर वैलनेस टूरिज्म को इस नई सोच से भारत में काफी बढ़ावा मिलने वाला है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जरूरतमंद देश होने के बावजूद हमने अमेरिका और ब्राजील जैसे ताकतवर देशों की इस संकटकाल में मदद की है। पूरी दुनिया इसे देख रही है और निश्चित तौर पर इस संकटकाल से उबरने के बाद यह लोग हमारे देश में आकर यहां की संस्कृति को देखना और समझना चाहेंगे।

पिछली सरकार ने भी इंक्रेडिबल इंडिया के जरिए पर्यटन उद्योग को मजबूत करने के कदम उठाए थे, प्रधानमंत्री मोदी इस योजना को कितना आगे बढ़ा पाए?
हमारे ब्रांड सिर्फ  प्रधानमंत्री मोदी हैं। वह केदारनाथ की गुफा में जब जाकर तपस्या करते हैं तो उसके बाद एक साल के लिए वह गुफा बुक हो जाती है। महाबलीपुरम में जब उन्होंने यात्रा की तो उसके बाद टिकट की बिक्री 43 फीसदी बढ़ गई और हमें टिकट काउंटर बंद करने पड़े। बात सिर्फ  विज्ञापनों से नहीं बनेगी। अब हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ अपने पर्यटन को और बेहतर करना होगा। सरकारी और गैर सरकारी तमाम पर्यटन स्थलों के बारे में विस्तृत और सही जानकारियों को चिन्हित करना होगा। आने वाले समय में टूरिज्म इंडस्ट्री को पारदर्शिता से चलाने की आवश्यकता है।

हमारे देश की कई ऐसी धरोहरें हैं जो चोरी होकर विदेशों में चंद सिक्कों के लिए बेच दी जाती हैं। पूरी दुनिया से लोग इन धरोहरों को देखने के लिए आते हैं। इन्हें लोग देख तो पाएं लेकिन छू न पाएं इसको भी सुनिश्चित करना होगा। इनकी सुरक्षा को लेकर किस तरह के उपाय किए जा रहे हैं?
जैसा मैंने आपको बताया कल्चरल मैपिंग की सख्त जरूरत है।  हमें तो यह भी नहीं पता है कि कितने राज्यों में 2000 साल या इससे भी पुरानी मूर्तियां जहां तहां पड़ी हुई हैं। सबसे पहले इन्हें चिन्हित करना और सूचीबद्ध करना बहुत जरूरी है। मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि पिछले 45-50 सालों में हमारी जो धरोहर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से वापस नहीं आई थी, वह पिछले 5 सालों में आई है। मैंने भी हाल में ब्राजील की यात्रा की तो एक गैलरी देखकर दंग रह गया, जिसका नाम इंडिया गैलरी ही रखा गया है। 70 के दशक में एक राजदूत यहां से कुछ मूर्तियों को ले गए थे जिन्हें यहां रखा गया है। अब मैं यह तो नहीं कहूंगा कि यह चोरी करके ले जाई गई चीजें हैं क्योंकि उस वक्त इस तरह की कोई पॉलिसी नहीं थी। यह जरूर है कि इन चीजों का ध्यान पहले नहीं रखा गया। हाल ही में भगवान महावीर की मूर्ति 7-8 बार बिकने के बाद हम वापस लाने में कामयाब रहे। इसी तरह गिलगिट की पांडुलिपि हो या नर्मदा मानव की खोपड़ी हो, जो 8000 साल से भी पुरानी है, उसकी भी वापसी जरूरी है। नर्मदा मानव की खोपड़ी जांच के नाम पर भेजी गई थी और आज तक वापस नहीं आई है। यह इस बात का सबूत है कि हम सबसे पुरानी सभ्यता हैं। हमारी समस्या यह है कि हमारे यहां अलग-अलग विभाग जैसे जीएसआई और एएसआई अलग-अलग काम करते हैं और इसकी वजह से एक सामांजस्य नहीं बन पाता है। अब इन सारी धरोहरों को वापस लाने के प्रयास बहुत तेजी से चल रहे हैं।

कोरोना संकटकाल में टूर एंड ट्रैवल इंडस्ट्री के साथ-साथ होटल इंडस्ट्री को भी जबरदस्त झटका लगा है। इससे उबरने के लिए 50 हजार करोड़ के पैकेज की मांग बूस्टर के तौर पर की जा रही है। इस तरह के स्पेशल पैकेज के बारे में आप क्या विचार कर रहे हैं?
पैकेज किसी भी इंडस्ट्री को उबारने का आधार नहीं होता है। धन से ज्यादा धारणा की जरूरत होती है और धारणा बदलने में हम बहुत हद तक कामयाब हुए हैं। कुछ नियमों में बदलाव की जरूरत है जिस पर हम काम कर रहे हैं। होटल एक अलग इंडस्ट्री है लेकिन जैसा मैंने कहा कि वह भी पर्यटन के एक साझेदार हैं। मेरी उनसे लगातार मुलाकात हो रही है और बातचीत हो रही है। वह अपना पक्ष रखते हैं और सरकार उनकी बात को सुनती है। उन्होंने सैलरी के लिए भी लोन दिए जाने की बात की है। नीति आयोग को ही इस पर अपना फैसला लेना है। वह ठीक फोरम में जाकर अपनी बात रख रहे हैं।

किस तरह की गाइडलाइन अब होटल्स के लिए दी जाएंगी क्योंकि अभी होटल सिर्फ  क्वॉरेंटाइन के इस्तेमाल के लिए ही हैं?
इस पर राज्यों से लगातार हमारी चर्चा हुई है और बकायदा एक गाइडलाइन राज्यों को भेजी जा चुकी है, जिसे जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा। उससे पहले हम इसे जितने भी साझेदार हैं उन्हें भेज रहे हैं। बहुत छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर इन गाइडलाइंस को तैयार किया गया है।

एविएशन इंडस्ट्री को छूट मिलने के बाद अब उड़ानें शुरू हो चुकी हैं लेकिन होटल इंडस्ट्री इन उड़ानों से जुड़ी हुई है। हमने देखा कि ब्रिटेन और अन्य देशों में पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को बिल्कुल भी नहीं रोका गया था। हमारे यहां पर हालात कब तक सामान्य होंगे? क्योंकि कोरोना वायरस से मरने से ज्यादा बुरा है भूख से मारना।
किसी अन्य देश का मॉडल भारत पर लागू नहीं होता है। उन्होंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बंद नहीं किया था तो उनके यहां पर मृत्यु दर भी बहुत ज्यादा रही है। हमारे यहां होटल्स का इस्तेमाल डॉक्टर और लोगों को क्वारेंटाइन करने के लिए किया गया है। वर्तमान गाइडलाइंस में भी कमोबेश इन बातों का ध्यान रखा जाएगा। मध्यम वर्गीय लोगों को छोटे-छोटे होटल्स की जरूरत होती है, जिनकी उपलब्धता रहेगी। लेकिन हम चाहते हैं कि 25 फीसद कमरे ऐसे रहें जहां पर आवश्यकता पड़ने पर किसी को क्वॉरेंटाइन किया जा सके। सावधानी बहुत जरूरी है। आईटीडीसी के अशोका होटल में एक पूरा फ्लोर आज भी चाहिए तो मौजूद है। हमारी सूची में ऐसे 1400 होटल हैं। आईसीएमआर की गाइडलाइंस हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है। आज इस इंडस्ट्री के लिए सबसे ज्यादा जरूरी लोग हैं तो वह सुरक्षाकर्मी और ड्राइवर। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है इनको वर्तमान हालात में सही ट्रेनिंग दिया जाना।

पूरी दुनिया में 60 से 70 फीसद मुख्य व्यवसाय टूरिज्म ही है। यही वजह है कि कई देशों ने इन होटल्स को मुसीबत से निकालने के लिए कैश पैकेज भी दिया है। प्रधानमंत्री ने भी आत्मनिर्भरता की बात करते हुए 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया है। जिसमें सभी को कुछ न कुछ मिलेगा।
हमसे जब-जब जो मांगे इंडस्ट्री की तरफ से रखी गई हैं, उन्हें हमने माना है। पहले 3 महीने का एक्सटेंशन, उसके बाद में 6 महीने के एक्सटेंशन की बात कही गई थी, वह हमने लोन और ईएमआई को लेकर दी हैं। नई मांग में वर्किंग कैपिटल की मांग की जा रही है जिसके बारे में नीति आयोग को फैसला लेना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इतने बड़े संकटकाल में भी हमारी होटल इंडस्ट्री उद्वेलित नहीं हुई है। जहां तक दुनिया के अन्य देशों से तुलना किए जाने की बात है तो हमारे यहां के मौसम और उनके यहां के मौसम में बड़ा फर्क है। वहां पर गर्मी कुछ समय के लिए होती है लेकिन हमारे यहां गर्मी भी है तो नॉर्थ ईस्ट में बरसात या हिमालयन रीजन में ठंड जैसी अलग-अलग ऋतुएं देखने को मिलती है। हमें अपनी जलवायु का भी फायदा मिलेगा।

प्रधानमंत्री ने एक दो महीने धैर्य रखने के लिए कहा, जिसका अनुपालन पूरे देश ने किया। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है व्यवसाय की स्थिति गड़बड़ा रही है। रोजगार के लिए भी पैसे की जरूरत होती है। होटल और पर्यटन जैसे उद्योग भी अब टूट रहे हैं क्योंकि पैसा आएगा नहीं तो कर्मचारियों को पैसा दिया कैसे जाएगा?
मैं असंगठित क्षेत्र में ही काम करता हूं। मैं इस बात को बिल्कुल नहीं मानता कि मजदूर टूट जाता है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में होशंगाबाद एक ऐसी जगह है जहां पर सबसे ज्यादा गेहूं का प्रोक्योरमेंट किया जाता है।  हम इसके लिए 7000 के आस-पास मजदूरों को बिहार से बुलाते हैं। इस बार जो मजदूर वापस यहां पर आए उन्हें काम में लगाया गया। मुझे यह बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है कि 99 फीसदी प्रोक्योरमेंट यानी लगभग 10 लाख मीट्रिक टन गेहूं को प्रोक्योर कर लिया गया है। मजदूर कहीं भूखा नहीं मरता। बात सिर्फ इस संकटकाल की नहीं है जो लोग किसी एक फैक्टरी में काम कर रहे हैं किसी वजह से यदि अपने घर में जाते हैं तो वह कोई दूसरा काम करते हैं। उनके काम करने का तरीका होता है लेकिन कोई भूख से मरा यह कहना बिल्कुल गलत होगा। मैंने बिल्कुल नहीं सुना कि किसी को रोटी नहीं मिली हो। देश में इस दौर में जो जागरूकता देखने को मिली है वह काबिले तारीफ है। तमाम संस्थाओं ने या आम लोगों ने भी मजदूरों की जमकर मदद की है। कोई पैदल चल रहे हैं तो उन्हें चप्पलें दी हैं। खाने को रोटी दी है। जहां तक लोगों के पैदल चलने की तस्वीरों का सवाल है इसके लिए प्रधानमंत्री की बात को माना जाना चाहिए था। मेरे अपने संसदीय क्षेत्र के मजदूर 18 राज्यों में है। उनमें से कोई भी भूखा नहीं रहा। मैंने अलग-अलग राज्यों में बात की और उनके लिए तमाम व्यवस्था हो गई थी। आप किसी के मुंह से यह नहीं सुन सकते कि किसी को तीन-चार दिन रोटी न मिली।

आप युवा राजनीति से ही निकल कर आए हैं। हिंदुस्तान दुनिया का सबसे युवा देश है। अब आपको एक ऐसे मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है, जहां पर यदि आप सारे राज्यों से सकारात्मक बातचीत करते हैं तो युवाओं को रोजगार दिलाया जा सकता है। पर्यटन एक ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत कम कौशल के साथ भी रोजगार के अवसर मुहैया हो सकते हैं।
इसके लिए लगातार हमारे प्रयास चल रहे हैं। हम ऑनलाइन कोर्स पर ध्यान दे रहे हैं। हम लगातार इस बात को कहते हैं कि हुनर चाहिए डिग्री नहीं। यही वजह है कि 10वीं और 12वीं पास लोगों के लिए भी हमारे ऑनलाइन कोर्सेस हैं। जिनकी उम्र 40 साल से कम है उन्हें 12वीं का र्सटििफकेट चाहिए होगा। 40 साल से ऊपर वालों के लिए हमने 10वीं को अर्हता के तौर पर रखा है। सितम्बर में हमारा पहला बैच निकल भी जाएगा। यह गाइड अपग्रेडेशन का काम है। जहां फुटफॉल है वहां तो काफी काम मिल जाता है लेकिन जहां पर्यटक कम तादाद में आते हैं वहां लोकल गाइड किंवदंतियों के आधार पर गलत जानकारियां दे देते हैं। एएसआई के 3671 रजिस्र्टड मॉन्यूमेंट हैं। 12 से 15000 ऐसे मॉन्यूमेंट्स हैं जो हमारी सूची में है ही नहीं। यह ऑनलाइन कोर्स और र्सटििफकेट युवाओं को एक बड़ा मौका होता है। हमें यह भी समझना होगा कि पर्यटन स्थाई रोजगार नहीं दे सकता है। इसके लिए जब पर्यटन का समय होता है तब लोगों को मौका मिलता है। हमारी ओर से सभी भाषाओं में यह कोर्स उपलब्ध है।

कुछ इसी तरह से रेलवे मंत्रालय ने भी कौशल विकास मंत्रालय का सहयोग लेते हुए युवाओं के रोजगार की व्यवस्था की मुहिम चलाई थी क्या आप भी कौशल विकास मंत्रालय से सहयोग ले रहे हैं?
हम सिर्फ  गाइड नहीं तैयार कर रहे हैं बल्कि हम इन्हें फैसिलिटेटर कह रहे हैं। इसके अलावा ड्राइवर हो या अन्य स्टाफ इन के लिए भी ऑनलाइन कोर्सेज चले चलाए जा रहे हैं। होटल मैनेजमेंट के कोर्स पहले से ही चल रहे हैं। वहीं आईआईटीटीएम ग्वालियर के इंस्टीट्यूट भी इस तरह के कोर्स चला रहे हैं जो इस क्षेत्र में सीधे रोजगार देने वाले होंगे। हम युवाओं को अवसर दे सकते हैं, हम किसी संस्था को आदेशित नहीं कर सकते कि वो रोजगार दे ही। ऑनलाइन कोर्सेज के जरिए हम युवाओं की स्किल को बेहतर कर रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि प्रैक्टिकल को भी उसी के साथ साथ चलाया जाए।

प्रधानमंत्री ने भारतीय पासपोर्ट की कीमत पूरी दुनिया में बढ़ा दी है। आप प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। आपके विभाग को लेकर उनकी क्या सोच रही है। साथ ही साथ उनके व्यक्तित्व और कार्यप्रणाली के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
मैंने पहले ही कहा कि प्रधानमंत्री हमारे ब्रांड हैं। उन्होंने ई-वीजा के कंसेप्ट को पहले रखा था। जिसमें 6 से 8 फीसदी की ग्रोथ देखने को मिली है। फिर उन्होंने अपना नारा दिया, ‘देखो अपना देश’। जो एक स्लोगन बन गया। इसी तरह लोकल से वोकल या ऐसी कई बातें उन्होंने कहीं जो हमारे लिए स्लोगन बन गई। दरअसल प्रधानमंत्री उन्हीं बातों को कहते हैं जो उनकी पॉलिसी का हिस्सा होती है। 12-13 बुलेट प्वाइंट्स में यह सारी बातें हमारे सामने हैं। जिन पर हमें अब काम करना है।

नॉर्थ ईस्ट एक ऐसी जगह है जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। वहां के युवा बहुत ही तमीजदार होते हैं। किस तरह से वहां यह संस्कृति देखने को मिलती है और क्या खूबियां हैं?
अपनी जमीन से जुड़े रहना और अपनी संस्कृति की इज्जत करना यह पूर्वोत्तर के लोगों की सबसे बड़ी ताकत है। यदि कोई मणिपुरी व्यक्ति होगा तो किसी भी कार्यक्रम में अपनी वेशभूषा में जरूर दिखाई देगा। उनकी जो भी पूजा पद्धति है वह अपनी सांस्कृतिक धरोहरों के लिए एक साथ खड़े होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है अनुशासन। पूर्वोत्तर के राज्यों में किसे क्या करना है क्या नहीं यह बातें पहले से तय है। समाज के साथ जुड़कर रहना उनकी सबसे बड़ी ताकत है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment