लॉकडाउन लंबा खींचे जाने की हो रही आलोचना
लॉकडाउन के फैसले पर नहीं लेकिन इसको लेकर पहले से तैयारी नहीं किए जाने और इसे लंबा खींचे जाने की काफी आलोचना हो रही है।
लॉकडाउन लंबा खींचे जाने की हो रही आलोचना |
कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जनसामान्य को सोशल डिस्टेंसिंग का पाठ 21 दिन में अच्छे से पढ़ाया जा सकता था। तब न अर्थव्यवस्था बुरी तरह चौपट होती और न रोजगार का विकराल संकट खड़ा होता। रोजगार के संकट की वजह से लगभग 9 करोड़ श्रमिकों ने अपने गांव, कस्बों और छोटे शहरों की ओर पलायन किया है अथवा कर रहे हैं, इससे भारत की दुनिया में अच्छी छवि नहीं बनी है।
पूर्व पुलिस प्रमुख (डीजी) रामनिवास कहते हैं कि लॉकडाउन का प्रयोग इसलिए फेल हो गया क्योंकि हमारे श्रमिकों और आम नागरिकों ने दो महीनों में बहुत ही बुरा वक्त देखा है। उन्होंने कहा कि इससे जाहिर होता है कि लॉकडाउन का फैसला लेने से पहले यह भी नहीं सोचा गया कि लोग खाएंगे क्या और कमाएंगे कैसे? पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा कि पुलिस लगाकर व्यक्तियों को घरों में कैद रखने के प्रयोग को सफल कहने वालों को थोड़े दिनों में पता चल जाएगा जब रोजगार के अभाव में अपराध बढ़ जाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर लॉकडाउन से पहले श्रमिकों को घर भेजने की व्यवस्था की जाती तो श्रमिक स्थिति सामान्य होने पर वापस भी लौटते।
समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने कहा कि देश में चारों तरफ गरीबी और बदहाली नजर आ रही है, क्या ये ही है लॉकडाउन की सफलता ! उन्होंने कहा कि लॉकडाउन का फैसला केंद्र की सरकार का था, इसलिए श्रमिकों के जीवन का प्रश्न उसे पहले हल करना चाहिए था। रघु ठाकुर ने तो यह आरोप भी लगाया कि अगर विदेश से व्यक्तियों के आने पर समय से रोक लगाई जाती तो पूरे देश में लॉकडाउन की जरूरत ही नहीं पड़ती।
महामारी विशेषज्ञ भी कहते हैं कि लॉकडाउन जरूरी था, लेकिन जब वैक्सीन में समय लगने वाला है तो इसे 21 दिन से अधिक दिन जारी रखने का कोई औचित्य नहीं था। उनका यह भी कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कौन कराएगा यह अपने आप में बड़ा उलझा सवाल है। वहीं रोजगार मामलों के धुरंधर कहते हैं कि भारत में ऐसे व्यक्तियों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो कोरोना से कहीं ज्यादा रोजगार को लेकर परेशान हैं। उनकी मानें तो कम से कम 19 करोड़ व्यक्तियों के रोजगार को लॉकडाउन ने प्रभावित किया है।
इन सवालों के जवाब नहीं आए
- लंबे लॉकडाउन का आधार क्या है?
- अगर मास्क जैसे उपायों के साथ कार्यस्थल अब खोले जा सकते हैं तो इनके साथ पहले क्यों नहीं खोले गए?
- अर्थव्यवस्था के वाहक और अधिक स्वास्थ्य सुविधा वाले दिल्ली, मुबंई, पुणो,अहमदाबाद, इंदौर जैसे बड़े शहरों में कोरोना क्यों फैला?
- रेड और ग्रीन जोन बनाने का अधिकार पहले ही राज्यों को क्यों नहीं दिया?
- जब टैक्सी और कैब को अनुमति दी तब ऑटो और रिक्शा में क्या समस्या थी?
- सीमित संख्या और स्क्रीनिंग के साथ सार्वजनिक परिवहन को जारी क्यों नहीं रखा गया?
- सोशल डिस्टेंसिंग के लिए जब बस में यात्री सीमित किए गए तो ट्रेन और विमान में क्यों नहीं?
- जैसा ध्यान डेडीकेटेड अस्पतालों पर दिया गया वैसा क्वारंटीन सेंटर पर क्यों नहीं?
- कोरोना रोगी की पहचान जाहिर नहीं करने जैसा जरूरी फैसला देरी से क्यों लिया गया?
- इलाज के अच्छे इंतजाम के बाद भी रोगी का भरोसा जीतने में सफलता क्यों नहीं मिली?
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