मजदूरों के मुद्दे पर सियासत कर रही कांग्रेस : वीके सिंह

Last Updated 22 May 2020 12:07:09 AM IST

लॉकडाउन के दौरान बेबस मजदूरों के पलायन की पीड़ादायक तस्वीरें आम जनमानस के हृदय को झकझोर दे रही हैं। अपार संसाधनों के बावजूद केंद्र सरकार उन्हें उनके घर तक क्यों नहीं पहुंचा पा रही है, इस मुद्दे पर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल (रि.) वीके सिंह से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने विशेष बातचीत की। यहां पेश है विस्तृत बातचीत :


सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल (रि.) वीके सिंह

कोरोना वायरस के संकटकाल में लोगों को बाहर निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि आप अभी विदेश मंत्रालय में नहीं हैं लेकिन इससे पहले कई खतरनाक मिशंस में आपको लोगों के बचाव कार्य की जिम्मेदारी दी गई थी। अब वंदे भारत जैसा मिशन भी चलाया जा रहा है। हमारे देश में ही जो मजदूर हैं उन्हें घर भेजने की दर्दनाक तस्वीरें आ रही हैं। उत्तर प्रदेश में मजदूरों को लेकर सियासत क्यों चल रही है ?

उत्तर प्रदेश में कोई राजनीति नहीं है। उत्तर प्रदेश में प्रियंका वाड्रा की तरफ से राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने 1000 बस देने की बात कही। जहां कांग्रेस का वर्चस्व है, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब ऐसे राज्यों पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? राजस्थान से बस लेने के बजाय उनसे कहा जाता कि वहां से मजदूरों को बसों में भेजा जाए लेकिन इन लोगों को राजनीतिक रोटियां सेंकनी हैं। इसीलिए उन्होंने 1000 बस देने का जुमला फेंका। उन्हें लगा कि उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार तो किया नहीं जाएगा लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें बेनकाब करने के लिए इस बात को स्वीकार किया। योगी सरकार अपने बलबूते पर मजदूरों को घरों तक पहुंचा सकती है। फिर भी इनके बसें देने के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया क्योंकि हम पहले से जानते थे यह बसें दे नहीं सकते।

हाईवे ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री के अंतर्गत 20 लाख सरकारी, गैर सरकारी या रजिस्र्टड बसें हैं। इनसे 7 करोड़ लोग यात्रा कर सकते हैं। वहीं हमारे पास 19 से 20 हजार ट्रेनें हैं जिनमें करीब दो करोड़ से ज्यादा लोग यात्रा कर सकते हैं। यानी कुल मिलाकर नौ करोड़ लोगों को हम ढो सकते हैं। प्रधानमंत्री की ओर से राज्यों को इस तरह का प्रस्ताव क्यों नहीं दिया गया कि हम मजदूरों को एक साथ घर भेजने की व्यवस्था करेंगे?
प्रधानमंत्री ने साफ कहा था कि राज्य श्रमिकों को वेतन की व्यवस्था करें। वहीं इन श्रमिकों से न तो किराया मांगा जाए और न ही इन्हें भूखे रहने दिया जाए। यह प्रदेशों का काम था कि वह मजदूरों को सुरक्षित करते लेकिन अचानक से पलायन शुरू हो गया। जितनी बसों के बारे में आप बता रहे हैं वह सब इन्हीं प्रदेशों के अंतर्गत आती हैं। मीडिया मजदूरों की सड़क पर चलते हुए तस्वीरें तो दे रहा है लेकिन इन प्रदेश सरकारों से प्रश्न भी पूछा जाना चाहिए कि यह पलायन क्यों होने दे रहे हैं?

सहारा नेटवर्क ने श्रमिकों के मुद्दे को सबसे ज्यादा उठाया है। हमने महाराष्ट्र जैसे राज्यों के सभी मंत्रियों से बात की। सिर्फ  मुख्यमंत्री से बात नहीं हुई और उनके ही एक मंत्री ने बताया कि वह हार्ट के मरीज हैं इसीलिए उन्हें घर में रहने की सलाह दी गई है। कांग्रेस शासित राज्यों के लिए भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। क्या कोई नई गाइडलाइंस आएंगी?
गाइडलाइंस बहुत स्पष्ट हैं। संक्रमण अभी गया नहीं है। हमने पहले से ही विचार कर रखा है कि हर चीज को कदम वार तरीके से रखा जाएगा। थोड़ा रु कने के लिए पहले ही कहा गया था। थोड़ी देर में हम लॉकडाउन को खोलते और मजदूरों को उनके घर पहुंचा देते। आपने लोगों को ट्रेन और बस से भेजने की बात कही। ट्रेन में सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए यदि लोगों को भेजा जाता है तो एक बार में एक ट्रेन में 1500 लोग ही जा पाएंगे। इसी तरह बस में भी हमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है। धीरे-धीरे मजदूरों को उनके घर भेजा जा सकता है। राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब यहीं से सबसे ज्यादा पलायन हो रहा है। इन राज्यों से यह प्रश्न पूछना चाहिए कि लोग पैदल क्यों चल रहे हैं ? आखिर पलायन क्यों हुआ ? ऐसी स्थिति क्यों पैदा की गई ? गाजियाबाद में इस तरह की कोई स्थिति नहीं बनी। यहां बसे मजदूरों को हम उन्हें खाना देते हैं, पानी देते हैं ताकि उनमें कोई भय न रहे और वह यहां से पलायन न करें।

हाल के दिनों में गाजियाबाद में जबरदस्त भीड़ देखने को मिली थी। यह भीड़ कहां से आई थी?
यह सारी भीड़ बाहर से आई थी। दिल्ली में अफवाह फैलाई गई कि गाजियाबाद जाओ। बकायदा अनाउंसमेंट करवाया गया। अब यह सरकार के लोग थे या पार्टी के कार्यकर्ता थे, यह मैं नहीं जानता लेकिन डीटीसी की बसों से मजदूरों को आनंद विहार छोड़ दिया और वहां से पैदल जाने के लिए कह दिया गया। हम भी यहां पहुंचे मजदूरों को 15 हजार, 14 हजार, 10 हजार इस तरीके से अलग-अलग टुकड़ों में रवाना कर रहे हैं। उन्हें खाना पानी दिया जा रहा है। वहीं बीजेपी और सेवा भारती के सदस्य मजदूरों के लिए चप्पलों की व्यवस्था भी कर रहे हैं।

आखिर पलायन हो क्यों रहा है?
अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग स्थिति है। महाराष्ट्र में भूमाफिया एक्टिव हो गया है। मजदूरों के बीच अफवाह फैलाई जा रही है क्योंकि वह इनके जाने के बाद जगह को कब्जाना चाहते हैं। वही मजदूरों में भय का माहौल पैदा किया जा रहा है। उन्हें कहा जा रहा है कि हालात और बिगड़ जाएंगे। खाने को नहीं मिलेगा। वह घबराकर अपने घरों की तरफ भाग रहे हैं। पलायन एक सोची-समझी साजिश के तहत करवाया जा रहा है।

आप गरीबों के दुख दर्द को समझते हैं। चुनावी रैलियों में हम देखते हैं, बसों में भर-भर कर लोगों को लाया जाता है। राजनीतिक रैलियों में लोगों की इतनी भीड़ होती है कि पैर रखने की जगह नहीं होती है। चाहे गुजरात हो महाराष्ट्र हर जगह मजदूरों की बदहाली देखने को मिल रही है। मजदूर जब वोटर होता है तब उसके लिए बसें आ जाती हैं लेकिन जब उसे जरूरत है कोई उसका हाथ नहीं पकड़ रहा। ऐसी दुखद स्थिति क्यों बनी है ?
मजदूरों के लिए कोशिशें हो रही हैं। जनप्रतिनिधि लगातार उनके बीच जाकर काम कर रहे हैं लेकिन यह बात भी सही है कि कई राज्यों में मजदूरों को भगाने की निष्ठुरता भी देखने को मिल रही है। उनसे कहा जा रहा है यहां मत रहो। एक चाल चली जा रही है उन्हें डराया जा रहा है कि यहां सब कुछ बहुत गड़बड़ है और वह उतावले हो जाते हैं। प्रदेश सरकारों को सचमुच इस विषय पर काम करने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश ने एक आदर्श के तौर पर काम किया है। जिस तरह से मजदूरों को उनके घर पहुंचाया जा रहा है वह बताता है कि टीम का कप्तान यदि खुद मोर्चा संभाले तो काम अच्छे से होता है।

आप पूर्वोत्तर के प्रभारी के तौर पर वहां का जीवन देख चुके हैं। वहां इस महामारी का प्रकोप उतना नहीं है जितना देश में दूसरी जगह पर। इसकी क्या वजह है ?
संक्रमण फैलने की मुख्य वजह है बाहर से लोगों का आना। जितनी भी जगह पर संक्रमण फैला वहां लोग बाहर से आए। फिर मॉल और अन्य सार्वजनिक जगहों पर जाकर उन्होंने इस संक्रमण को फैला दिया। इसी तरह असम और अन्य पूर्वोत्तर की जगह पर भी शुरु आती कुछ मामले आए थे। देश के दूसरे हिस्सों में इन मामलों के बढ़ने की घटना तब हुई जब तब्लीगी जमात के लोगों ने अलग-अलग जगह जाकर इस संक्रमण को फैला दिया। उत्तर पूर्व में तब्लीगी जमात के लोग उस तादाद में नहीं गए। दूसरा, पूर्वोत्तर के राज्यों में ग्रामीण इलाके ज्यादा हैं इसीलिए भी यहां संक्रमण नहीं फैला।

पूर्वोत्तर के बच्चे अपने काम और अनुशासन के लिए जाने जाते हैं। उनमें यह अनुशासन कैसे आता है ?
वहां अनुशासन एक संस्कृति है। कबीले में रहते हैं और कबीलों में प्रधान का एक प्रभाव होता है। हमारे यहां तो प्रधान को गोली तक मार देते हैं। संस्कृति से फर्क पड़ता है। यही वजह है कि उनमें सहृदयता ज्यादा होती है और वह हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में काफी अच्छा काम करते हैं।

लेकिन इन्हीं पूर्वोत्तर के बच्चों को रोजगार के लिए अपने घरों से दूर आना पड़ता है। सड़क राज्य परिवहन मंत्रालय की ओर से क्या प्रयास किए जा रहे हैं कि बेहतर कनेक्टिविटी पूर्वोत्तर के राज्यों को मिले क्योंकि रोजगार के लिए इन जगहों को देश के अन्य हिस्सों से बेहतर तरीके से जोड़ने की जरूरत है?
बहुत से हाईवे पर लगातार काम चल रहा है। इंफाल और सिक्किम तक रेल ट्रैक पहुंचा दिया गया है। यहां असीम संभावनाएं हैं क्योंकि आर्गेनिक खेती के लिए यह जगह जानी जाती है। आर्गेनिक खेती यहां बड़ी तादाद में होती है और इसमें संभावनाओं को तलाशा जा सकता है।

राष्ट्रीय राजमार्ग का हमारे पास एक बड़ा नेटवर्क है। लाखों करोड़ों मजदूरों ने इस राष्ट्रीय राजमार्ग को महामारी के दौरान पैदल-पैदल नाप दिया। क्या आपको नहीं लगता है कि एक मैकेनिज्म बनाया जाना चाहिए था जिसमें हर टोल बूथ पर बसों की व्यवस्था की जाती? जो लोग पैदल जा रहे हैं उन्हें खाने को दिया जाता और अपने अपने गंतव्य तक पहुंचाया जाता। सोशल मीडिया पर कई हृदय विदारक वीडियोज देखने को मिले जहां मां रोते हुए कह रही है कि दो दिन से खाना नहीं मिलने की वजह से बच्चे ने दम तोड़ दिया। हमारा इतना बड़ा नेटवर्क है लेकिन हम इन मजदूरों को मदद क्यों नहीं पहुंचा पाए?
जब इन मजदूरों ने भ्रम के चलते पैदल ही पलायन शुरू किया तो यह टोल प्लाजा से छिपते हुए जा रहे थे। इन्हें पता था कि लॉकडाउन चल रहा है और इसीलिए उन्होंने सड़क का रास्ता पकड़ने के बजाय ट्रेन की पटरियों का रास्ता पकड़ा ताकि इन्हें कोई रोके न। यह गांव के रास्ते से घुस-घुस कर गए। हमने सारे टोल प्लाजा को पहले ही निर्देश दे दिए थे कि जिन लोगों को खाने की आवश्यकता हो उन्हें खाना दिया जाए। वहीं जिन-जिन गांव से होकर यह मजदूर गुजरे उन गांवों के लोगों ने भी मदद की। समस्या यह है कि भ्रमवश बिना सोचे समझे यह सभी लोग चल पड़े। कोई साइकिल से, कोई पैदल और कोई रिक्शा से अपने-अपने घरों के लिए निकल गया। प्रदेश सरकारों ने एक भ्रम पैदा कर दिया था कि हालात और खराब होंगे और हड़बड़ाहट में यह लोग पैदल पैदल ही निकल पड़े।

एक सवाल यह भी लोगों के जेहन में आ रहा है कि लॉकडाउन के इस दौर में कितने ट्रकों के जरिए जरूरी सामानों की आवाजाही होती रही और कितने ट्रक खड़े रहे?
मैं आपको अंदाजे के जरिए बता सकता हूं कि 35 फीसद ट्रकों के जरिए जरूरी सामानों की आवाजाही होती रही। इसके बाद दूसरे और तीसरे चरण में हमने गैर आवश्यक चीजों के लिए भी ट्रकों को चलाया। फिर भी 45 फीसद ट्रक ऐसे रहे जो नहीं चल पाए हैं। ट्रकों को चलाने के लिए सामान भी चाहिए। जैसे-जैसे लॉकडाउन के अलग-अलग चरणों में वेयरहाउस और दूसरी चीजों को छूट मिलती गई तभी ट्रक चल पाए। इस दौरान ट्रक मालिकों को हिदायत दी गई। ट्रांसपोर्ट यूनियंस के साथ हम लगातार संपर्क में रहे। अलग-अलग प्रदेश सरकारों के साथ भी हमने बातचीत जारी रखी। किस तरह ट्रकों को सेनिटाइज किए जाएगा ? कितने ढाबे रास्तों में खोले जाएंगे ? जैसे तमाम मसलों पर हम काम करते रहे हैं।

हजार बसों की जो राजनीति उत्तर प्रदेश में हुई है उसमें आप लोगों ने फटाफट देख कर बता दिया कि 69 बसों के परमिट ऑटो या बाइक के हैं। गाड़ी रजिस्ट्रेशन को लेकर एक ग्रेड तैयार किए जाने की बात चल रही है जिसमें गाड़ियों की वैधता को पुख्ता किया जा सके। यह काम कहां तक पहुंचा है?
हमारे मंत्रालय का ऐप है। आप भी डाउनलोड कर सकते हैं जिस पर सारी जानकारियां मिल जाती हैं। गाड़ी रजिस्ट्रेशन के समय अब सभी जानकारियां पुख्ता तरीके से ली जा रही हैं। सिस्टम को बहुत मजबूत किया जा रहा है। मैं यह बता सकता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटाइजेशन को लेकर जैसा काम किया है वैसा आज तक किसी ने नहीं किया।

हाल में नितिन गडकरी जी ने भी यह मुद्दा उठाया था कि उत्तर प्रदेश का व्यक्ति केरल में लाइसेंस बनवा लेता है या केरल का व्यक्ति राजस्थान में लाइसेंस बनवा लेता है। एक ही व्यक्ति के पास कई लाइसेंस भी पाए गए हैं। लाइसेंस रजिस्ट्रेशन को लेकर भी एक ग्रिड बनाने पर काम की बात हुई थी। यह काम कहां तक पहुंचा?
इस पर बहुत तेजी से काम चल रहा है और मैं आपको बता सकता हूं कि साल के अंत तक हम डाटा को बहुत हद तक व्यवस्थित करने की स्थिति में होंगे। अभी भी ड्राइविंग लाइसेंस को लेकर सारी जानकारियां हमारे डाटा में उपलब्ध है।

जैसे-जैसे लॉकडाउन हटेगा आगे की रणनीति भी तमाम मंत्रालय बना रहे हैं। सड़क परिवहन मंत्रालय की क्या गाइडलाइंस होंगी, किस तरह से परिवहन को खोला जाएगा ?
इसका निर्णय कोई एक मंत्रालय नहीं लेता है। सब मिल-बैठकर इस पर बातचीत करते हैं। लॉजिस्टिक डिपार्टमेंट भी इस पर अपनी बात रखेगा। इसके लिए अलग-अलग समूह बनाए गए हैं। जो सभी चीजों की विवेचना करने के बाद अपने सुझाव रखते हैं और गृह मंत्रालय इन सुझावों के बाद किसी निर्णय पर पहुंचता है और उसे लागू करता है।

वाहनों के फर्जी रजिस्ट्रेशन भी एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए किस तरह का काम किया जा रहा है ?
हमारा वाहन ऐप इसीलिए है ताकि आप पता कर सकें कि कोई बस का नंबर दरअसल बस का नहीं बल्कि छोटे ट्रक का या ऑटो का नंबर है। इस साल के अंत तक हम पूरी तरह से डिजिटाइजेशन को लागू करने की स्थिति में होंगे। इस पर बहुत तेजी से काम चल रहा है।

आपके अभिनय का शौक प्रहार फिल्म में देखने को मिला था। जहां आपने नाना पाटेकर के साथ एक गेस्ट अपीरियंस भी दिया था। अपने इस शौक को अब कैसे पूरा कर पाते हैं ?
जिंदगी में अलग-अलग दौर आते हैं। अब मैं एक जनप्रतिनिधि हूं और जन प्रतिनिधि के तौर पर काम करना मेरी प्राथमिकता है। यही मेरा जीवन है।

प्रहार फिल्म में नाना पाटेकर साहब का एक डायलाग था कि हमें आजादी सस्ते में मिल गई है इसलिए हम उसकी कद्र नहीं करते हैं। सभी को सेना में कुछ समय देना चाहिए। इस्रयल में यह जरूरी है कि आप सेना में कुछ समय दें। क्या आपको लगता है कि इससे राष्ट्रभाव का जागरण होता है ?
हर नागरिक को कर्तव्य बोध का ज्ञान हो जाए तो ही बात बन जाएगी। हमेशा मांगते रहने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए। हमें अपने देश के लिए क्या करना है इस पर भी विचार करना चाहिए। हर अच्छा नागरिक अपने देश की जरूरत को समझता है और उसके लिए काम करता है।

अपनी आत्मकथा करेज एंड कनिवक्शन में आपने लिखा है कि तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम को नक्सलवादी इलाकों में सेना की तैनाती रास नहीं आई थी। वर्तमान में आप की सरकार है अब नक्सलवाद की समस्या के बारे में आपकी क्या राय है?
इस मसले पर गृह मंत्रालय एक कूटनीति पर लगातार काम कर रहा है। पिछले छह साल में इसका काफी असर भी देखने को मिला और बहुत फर्क भी आया है। 365 दिनों में से एकाध दिन नक्सलवादियों को कुछ करने का मौका मिल भी जाता है लेकिन जिस तरह से नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास का काम चल रहा है, जल्द ही नक्सलवाद खत्म हो जाएगा।

आप पहले ऐसे सेनाध्यक्ष रहे जो कमांडो विंग में भी थे। 42 साल देश की सेवा करने के लिए आप पहले कमांडो थे, फिर जनरल और फिर थल सेना अध्यक्ष के पद पर पहुंचे। अन्ना हजारे के मूवमेंट से जुड़कर आपने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज भी उठाई। पिछले दो बार से बीजेपी सरकार में आप मंत्री भी हैं। इन तमाम भूमिकाओं में सबसे ज्यादा किस भूमिका को पसंद करते हैं?
हर भूमिका का अपना अलग रंग होता है मेरा मानना है जिस भी भूमिका में आप हैं, उसे अच्छे से करें यही आपका कर्तव्य है ?

42 साल सेना को देना उसका अनुशासन और उसकी चुप्पी। क्या सेना की सेवाओं के बाद आपका यह नया दौर उसी चुप्पी की अभिव्यक्ति है ?
अनुशासन हमेशा बना रहता है। आप देश के लिए कुछ भी करते हैं तो भी आप एक अनुशासन में होते हैं। सेना की सेवाओं के बाद मैं समाज के लिए कुछ करना चाहता था और इसीलिए जन प्रतिनिधि के तौर पर समाज की सेवा कर रहा हूं। पिछले छह वर्षो में गाजियाबाद में काफी कुछ बदला है और आप देखेंगे कि आगे भी सकारात्मक बदलाव होते रहेंगे।



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