कद्र न होने से प्रकोप दिखा रही प्रकृति : श्रीश्री

Last Updated 20 May 2020 12:15:09 AM IST

भाग-दौड़ की जिंदगी में हम सब कुछ भूल गए हैं और प्रकृति के महत्व के बारे में सोचना ही बंद कर दिया है।


सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणोता श्रीश्री रविशंकर से विशेष बातचीत।

कोरोना की महामारी के बीच अब लोग बैठकर सोच रहे हैं कि उन्हें जीवन से क्या चाहिए। आज के हालात किसी युद्ध से कम नहीं हैं। मनुष्य और प्रकृति के बीच बिगड़ते रिश्तों पर सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणोता श्रीश्री रविशंकर से विशेष बातचीत की। यहां पेश है विस्तृत बातचीत :

आपने आतंकी संगठनों से लेकर तमाम लोगों के चेहरों पर मुस्कान ला दी। मनुष्य और प्रकृति के बिगड़े रिश्तों को आज का दौर दिखाता है। आधुनिक विज्ञान भी कई मौकों पर फेल नजर आ रहा है। जब विज्ञान भी फेल हो जाता है तो अध्यात्म और गुरु की शरण ली जाती है। एक आध्यात्मिक गुरु  होने के नाते आज के इस दौर में जीवन के संतुलन को बनाए रखने के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
भारत में हमेशा से कहा जाता रहा है अंतर्मुखी सदा सुखी। हमारी स्थिति आज के दौर में बहिर्मुखी हो गई थी और हमने प्रकृति का नाजायज फायदा उठाया। उसकी कभी कद्र नहीं की। यही वजह है कि प्रकृति का प्रकोप इंसान को देखना पड़ रहा है। पहले हमने प्रकृति का जमकर भोग किया और अब हम सबको घर में बैठना पड़ रहा है। सबसे मूलभूत सवाल पर अब मनुष्य चिंतन कर रहा है कि आखिर उसे जीवन में क्या चाहिए ? उसके जीवन का मकसद क्या है ? इस प्रश्न की तरफ कभी ध्यान ही नहीं गया था। लॉकडाउन के इस काल में इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर सभी का ध्यान गया है। दरअसल हमारा जीवन यांत्रिक रूप से चल रहा है जिसमें विचार-विमर्श को कोई स्थान ही नहीं मिलता। भागदौड़ की जिंदगी में हम सब कुछ भूल गए हैं और प्रकृति के महत्व के बारे में सोचना ही बंद कर दिया। अब लोग बैठकर सोच रहे हैं कि उन्हें जीवन से क्या चाहिए। आज के हालात किसी युद्ध से कम नहीं हैं। यह इंसानों का महायुद्ध ही है। कोरोना वायरस की पहुंच सूक्ष्म है लेकिन उसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। ऐसे में हर मनुष्य को अपने शौर्य को याद करना होगा और इन परिस्थितियों के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़नी होगी।

आप कहते हैं मानव को रोना-धोना नहीं चाहिए बल्कि अपने शौर्य को जगाना चाहिए। यह वह दौर है जब लोगों को फुर्सत के कई पल मिले हैं। वही फुर्सत के पल जिनके लिए कभी लोग तरसा करते थे लेकिन अब यह पल उन्हें आनंद देने के बजाय अवसाद दे रहे हैं। उन्हें अपने शौर्य के बारे में पता ही नहीं है। अपने एकाकीपन को आनंदमय बनाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए?
इसके लिए तो ध्यान ही सबसे उत्तम है। योग प्राणायाम और ध्यान लॉकडाउन को भी आनंदमय बना सकता है। इस दौर में कई सृजनात्मक चीजें उभर कर सामने आ रही हैं। हर व्यक्ति में खूब सारी क्रिएटिविटी भरी होती है लेकिन वह पूरी तरह से ढकी हुई है। अज्ञान की मोटी चादर को हटाने के लिए ध्यान करना ही सबसे उत्तम है। ध्यान से आप भीतर जा सकते हैं और अकेलापन और दुख दर्द पूरी तरह से मिट जाता है। इससे सृजनात्मक शक्तियां भी उभर कर सामने आती हैं।

मैं खुद ग्रामीण परिवेश से आता हूं और सृजनात्मक शक्तियों के विषय में मेरा अपना भी अनुभव है। लोगों को अपनी शक्तियों के बारे में जानकारी ही नहीं है कि वह छोटे-छोटे कामों में भी सृजनात्मक हो सकते हैं। इस दौर में किस तरह से अपनी सृजनात्मक शक्ति का विकास करें, इस पर मार्गदशर्न कीजिए?
बहुत से ऐसे काम हैं जिनसे हम अपनी सृजनात्मकता को सामने रख सकते हैं। लॉकडाउन के इस दौर में कई लोग जिन्होंने कभी कहानी या कविताओं की तरह कोई रचनात्मक कार्य नहीं किया था उनकी सृजनात्मकता भी सामने आई। इसी तरह वह पुरुष जिन्होंने कभी बेलन या करछी का इस्तेमाल नहीं किया था वह भी अब खाना बनाने की अपनी सृजनात्मकता का विकास कर रहे हैं। जब व्यक्ति तनाव मुक्त होता है तो उसके भीतर विचार आते हैं और इसी से उसकी सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है।

आपने सुदर्शन क्रिया को पूरी दुनिया में प्रसारित किया है। कोरोना से निपटने के लिए इस क्रिया की क्या भूमिका हो सकती है?
कोरोना वायरस के खिलाफ यदि लड़ाई को जीतना है तो रोग निरोधक शक्ति को बढ़ाना ही एकमात्र उपाय है। सुदर्शन क्रिया और योग प्राणायाम ये सभी चीजें आपकी रोग निरोधक क्षमता को पांच गुना बढ़ा देती हैं। हम यह भी जानते हैं कि जिस तरह एक चम्मच शक्कर लेने से पांच घंटे के लिए आपकी रोग निरोधक शक्ति क्षीण हो जाती है, उसी तरह प्राणायाम या सुदर्शन किया के जरिए आप अपनी रोग निरोधक क्षमता (इम्युनिटी) को बढ़ा सकते हैं। डॉक्टरों ने भी हाल के दिनों में तनाव और चिंता को अनुभव किया है। उन्होंने भी इस बीमारी को पहले कभी नहीं देखा था। चिंता और भय की वजह से भी मनुष्य का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। योग प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के जरिए अंदरूनी शक्तियों को या आत्म शक्तियों को जगाया जा सकता है और जब आपकी आत्म शक्ति जागृत होती है तो आप कुछ भी कर सकते हैं।

21 जून को विश्व योग दिवस की घोषणा की गई और 150 देशों ने इसे स्वीकार कर लिया, तब आपने कैसा महसूस किया था?
हम इस तरह की मांग बहुत पहले से उठाते रहे थे। हमारे आश्रम में 2011 में देश भर के प्रतिष्ठित योग गुरु  इकट्ठा हुए थे और हम लोगों ने एक निवेदन पत्र संयुक्त राष्ट्र को उस वक्त भी सौंपा था। इस मांग को मजबूती मिली जब भारत सरकार ने भी इसका समर्थन किया। प्रधानमंत्री ने स्वयं पहल करके इस मुहिम को आगे बढ़ाया। योग को वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाना पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इसमें विशेष योगदान रहा है लेकिन इस पर पहले से भी सभी योग गुरु  विचार करते रहे थे। यह बहुत अच्छा है कि अब पूरी दुनिया में योग की विद्या पहुंच रही है। हालांकि जो जिज्ञासु होते थे वह इसे खोजते हुए वैसे भी पहुंच जाते थे लेकिन योग दिवस घोषित होने के बाद अब ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसकी पहुंच बन रही है। आप इसी बात से इसके महत्व का अंदाजा लगाइए कि इस धरती की एक तिहाई जनता अब योग कर रही है।

आप 2015 के पहले भी पूरी दुनिया भर में भ्रमण करते रहे हैं। विश्व योग दिवस की घोषणा के बाद किस तरह का परिवर्तन दुनिया के अलग-अलग देशों में आप पाते हैं?
पहले अलग-अलग देशों की सरकारें योग में रुचि नहीं लेती थीं या उनकी योग में रुचि बहुत सीमित थी। विश्व योग दिवस की घोषणा के बाद स्थानीय सरकारों का सहयोग मिलना शुरू हो गया और उनकी रु चि भी इसमें बढ़ी है। निश्चित तौर पर अब पूरी दुनिया में योग प्राणायाम को को लेकर जागरूकता बढ़ रही है।

केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए का राहत पैकेज घोषित किया है जो पूरी दुनिया के विकासशील देशों में दिया गया सबसे बड़ा पैकेज बताया जा रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी विस्तृत तौर पर व्याख्या भी की है। आपकी दृष्टि में देश की अर्थव्यवस्था रोजगार, छोटे उद्योग, मजदूरों किसानों आदि को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह पैकेज कितना महत्वपूर्ण है ?
किसानों के लिए जो पैकेज दिया गया है उसे मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूं। किसानों के लिए इस तरह के पैकेज का इंतजार किया जा रहा था। यह छोटे-छोटे पैकेज बड़ी राहत देने वाले हैं। इसके अलावा छोटे व्यापारियों को राहत देने में भी यह पैकेज बहुत महत्वपूर्ण है। एक दर्जी यदि कर्जा लेता है तो वह अपनी मशीन खरीदता है, काम करता है और उस कर्ज को चुका देता है। ऐसे में छोटे उद्यमियों के लिए इस तरह के राहत पैकेज आत्मबल बढ़ाने वाले रहेंगे। योजना तो अच्छी है लेकिन हम क्रियान्वयन में चूक जाते हैं। हमें इसके क्रियान्वयन पर भी ध्यान देना चाहिए। सिर्फ सरकार पर ही इसकी जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए, आम जनता को भी क्रियात्मक होकर सहयोग करना चाहिए।

हाल के दिनों में साधु-संतों के साथ हुए अपराध पर आप क्या कहना चाहेंगे? खासतौर पर पालघर की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हमने देखी है। ऐसे लोगों के मनोविज्ञान के बारे में क्या कहेंगे जो छोटी-छोटी बातों पर मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दे देते हैं ? क्या यह संस्कृति का ह्रास है या हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति में बांटने के लिए उकसाने का नतीजा ?
यह बहुत ही शर्मनाक घटना है। इसकी जितने भी कड़े शब्दों में निंदा की जाए वह कम है। साधु और संत अपना पूरा जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर देते हैं। फिर पुलिस के सामने यदि इस तरह की घटना को अंजाम दिया जाता है तो यह और भी शर्मनाक है। किसी भी धर्म, मजहब या किसी भी मनुष्य के साथ इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए। खासतौर पर जहां रक्षक खड़े हैं वहां इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं और शर्मिंंदा करती हैं। विचारधाराएं अलग-अलग हो सकती हैं लेकिन भारत की भूमि ने सभी विचारधाराओं को पनपने का स्थान दिया है। हिंसा का यहां कोई स्थान नहीं है और भारत की विचारधारा भी हिंसा की नहीं रही है। ऐसे लोग होश में नहीं है। वह बेहोशी में इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जब तनाव और बेहोशी का आलम छाता है तो इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं। हमें लोगों को जोड़ने का काम करना पड़ेगा क्योंकि कुछ तत्व हमेशा समाज में रहते हैं जो तोड़ने का काम करते हैं।

आध्यात्मिक गुरु  हमेशा कहते हैं कि होश में रहना चाहिए लेकिन हम यंत्रवत हो चुके हैं और बेहोशी हम पर छा चुकी है। भारत बुद्ध की होश की कथाओं को जानता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चर्चिल द्वारा अपने देश की जनता से फ्रीज में सुरक्षित रखे भोजन को सैनिकों, महिलाओं और बच्चों के लिए देने की बात हो या द्वितीय विश्व युद्ध के ही बाद जापान के सम्राट द्वारा हथियार डालने और औजार उठाने की बात हो। इनके बहुत ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। जापान ने युद्ध में टूटने के बाद महज 18 साल में वापसी करते हुए ओलंपिक जैसे बड़े आयोजन को अपने यहां रखा। हमारे यहां भी द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने खाद्यान्न संकट के समय एक समय का भोजन कर जीवन व्यतीत करने का आह्वान किया था और सबसे पहले इस पर खुद काम किया था। क्या ब्रिटेन और जापान की तरह हमारे यहां राष्ट्र भावना की कमी दिखाई पड़ती है, क्या यही वजह है कि हम ओलंपिक जैसे बड़े आयोजनों की मेजबानी आज तक नहीं कर पाए ?
यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि हमारे यहां राष्ट्र भावना की कमी है। दरअसल भारत में राष्ट्र भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। गत 22 मार्च को जब जनता कर्फ्यू का आह्वान किया गया था तो पूरे देश ने एक साथ इस आह्वान का समर्थन किया। करगिल में जिस वक्त हमारे सैनिक संघर्ष कर रहे थे, पूरे देश की जनता उनके साथ खड़ी थी। आज भी सैनिकों पर आक्रमण होने के बाद देश की जनता बहुत भावुक हो जाती है। दरअसल भारतीय जनता हमेशा से भावुक रही है। जहां तक ओलंपिक का सवाल है तो हमने खेलों को कभी उतना महत्व नहीं दिया। हरियाणा या नॉर्थ ईस्ट जैसे दो तीन राज्यों को छोड़ दिया जाए तो खेलकूद को हमारे देश में वह स्थान प्राप्त नहीं है। यहां नौकरी, कमाने-खाने जैसी चीजों पर ही जोर रहता है और खेलो को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता। लेकिन दूसरी तरफ विज्ञान के क्षेत्र में हम देख सकते हैं कि नासा जैसे बड़े संस्थानों में 34 फीसद भारतीय वैज्ञानिक ही काम कर रहे हैं। वही दुनिया की तमाम बड़ी संस्थाओं में भारतीय वैज्ञानिकों का वर्चस्व है। मैं इस बात को मानता हूं कि अब समय खेलकूद को भी उतना ही स्थान दिए जाने का है जितना हमने कला और विज्ञान को दिया है।

बड़े-बड़े वैज्ञानिक देश को छोड़ कर चले जाते हैं। इस विषय पर आप क्या कहेंगे?
वैज्ञानिकों के लिए कोई एक देश नहीं होता वह तो पूरी दुनिया के लिए होते हैं। वैसे दुनियाभर के देश हमारे लोगों को उठाकर ले जाते हैं। दरअसल घर की मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत हमारे यहां लागू होती है। हम अपनी चीजों को उतना भाव नहीं दे पाते जितनी दुनिया के दूसरे लोग दे रहे हैं। इसके अलावा लालफीताशाही, आरक्षण जैसे बहुत से मसले हैं जिनकी वजह से हमारे देश की प्रतिभाओं को उचित स्थान नहीं मिल पाता है। यहां युवा अपना स्थान बनाने के लिए बहुत जूझते हैं और जब मौका नहीं मिलता तो अवसर की तलाश में बाहर जाना ही एक विकल्प रह जाता है। मुझे लगता है हाल के दिनों में हमने अपने टैलेंट को पहचाना है। खासतौर पर वैज्ञानिकों को वर्तमान दौर में काफी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। यही वजह है कि हम मंगलयान जैसा काम भी कर पाए हैं।

संकट की अभूतपूर्व घड़ी में आप देश की जनता को क्या संदेश देना चाहेंगे?
संदेश बहुत स्पष्ट है। संकट की घड़ी में आपके सामने दो विकल्प हैं। पहला आप रोते हुए तनाव में दुखी और भयभीत होकर इस समय को काट। दूसरा मुस्कुरा कर अपने शौर्य और साहस को जगाएं। शौर्य और साहस को जगाने के लिए ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास करना बहुत जरूरी है जिससे आपका आत्मबल बढ़ता है। साधना के महत्व को समझना होगा। ईश्वर पर विश्वास करते हुए इस संकट का सामना करना होगा और आप देखिएगा कि हम मुस्कुराते हुए इस संकट से उबर जाएंगे।

आर्ट ऑफ लिविंग ने इस संकट काल में क्या-क्या काम किए हैं, इस पर भी आपसे एक टिप्पणी चाहेंगे?
आर्ट ऑफ लिविंग ने कई काम किए हैं जिनमें मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था करना प्रमुख है। खासतौर पर ऐसे मजदूर जो रोज कमाते और खाते हैं। वहीं राशन के पैकेट हमने 22 मार्च से ही बांटने शुरू कर दिए थे। अभी तक सात करोड़ पैकेट्स पूरे देश भर में आर्ट ऑफ लिविंग की टीम की तरफ से बांटे गए हैं। दो-दो महीने का राशन भी ऐसे परिवारों को दिया गया है जिन्हें इसकी आवश्यकता थी। हमने इंटरनेट के जरिए जो ध्यान के शिविर लगाए उसमें पूरी दुनिया से करोड़ों लोगों ने हिस्सा लिया। यूट्यूब के माध्यम से दुनिया भर के लोगों के साथ हम जुड़े हैं। कोरोना वायरस काल में काम करने वाले डाक्टरों नर्स और दूसरे मेडिकल स्टाफ के लिए भी हमने ध्यान और योग शिविर का आयोजन किया। तनाव और भय से मुक्ति इस वायरस के खिलाफ लड़ाई में बहुत अहम है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment