तबलीगी जमात में फूट पड़ने से बची काफी लोगों की जान

Last Updated 08 Apr 2020 06:09:42 PM IST

कुछ साल पहले तबलीगी जमात में फूट पड़ने से शायद काफी लोगों की जान बच गई होगी। क्योंकि फूट पड़ने के बाद काफी लोगों ने संगठन के दिल्ली मुख्यालय से नाता तोड़ दिया, जो देश का सबसे बड़ा कोरोनावायरस हॉटस्पाट बनकर उभरा है।


काफी लोग संगठन के मौजूदा प्रमुख मौलाना मुहम्मद साद कांधलवी की नीतियों के विरोधी रहे हैं। यही कारण है कि 94 साल पहले अस्तित्व में आए संगठन को विश्व स्तर पर एक बड़े विभाजन का सामना करना पड़ा।

जमात के एक सदस्य ने आईएएनएस को बताया कि अगर कोई विभाजन नहीं होता तो संगठन के मुख्यालय निजामुद्दीन मरकज में आगंतुकों की संख्या बहुत अधिक होती। जमात से जुड़े सदस्य ने कहा, "यह पूरी तरह से खचाखच भरा होता। तब हजारों लोग मरकज का दौरा कर चुके होते, जिससे हताहत होने वाले या पॉजिटिव और भी अधिक हो सकते थे।"

देश में अभी तक सामने आए 5,000 से अधिक कोविड-19 मामलों में से लगभग एक तिहाई 13 से 15 मार्च को निजामुद्दीन मरकज में हुए कार्यक्रम से जुड़े हैं।

मौलाना साद अधिकारियों की अनुमति के बिना बैठक आयोजित करने के लिए विवादों में घिरे हुए हैं। मरकज के इस आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से जमात के सैकड़ों सदस्य और बड़ी संख्या में विदेशी भी शामिल हुए थे।

तबलीगी जमात में मतभेद दो साल पहले तब बढ़ गए थे, जब मौलाना साद ने सर्वोच्च निर्णय लेने वाली परिषद 'शूरा' को भंग कर दिया था। एक परामर्श तंत्र के रूप में काम करने वाला यह निकाय 1926 में जमात के गठन के बाद से ही अस्तित्व में था।

जमात के संस्थापक मौलाना मुहम्मद इलियास कांधलवी के परपोते मौलाना साद ने 'शूरा' को दरकिनार कर दिया, जिसके कई सदस्य बूढ़े हो गए थे।

जमात के सदस्य ने कहा, "तब तक जमात ने 'मशवरे' (परामर्श) के साथ सभी बड़े फैसले ले लिए। जैसे ही मौलाना साद ने अनियंत्रित तरीके से फैसले लेने शुरू कर दिए तो वरिष्ठों में नाराजगी पैदा हो गई और कई सदस्यों ने एक और गुट का गठन किया, जिसका नाम शूरा रखा गया।"

जमात के सदस्यों का कहना है कि अधिकांश कैडर अब शूरा के साथ हैं, जिसका नेतृत्व वरिष्ठ सदस्यों के एक समूह द्वारा किया जाता है।

इसके बाद निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद (मरकज) और जमात के कई मौजूदा क्षेत्रीय प्रमुख कार्यालय मौलाना साद के समूह के साथ बने रहे, जबकि विद्रोही समूह ने नए केंद्र स्थापित किए।

उदाहरण के लिए हैदराबाद में मौलाना साद के समूह ने मल्लेपल्ली मस्जिद से काम करना जारी रखा जबकि प्रतिद्वंद्वी समूह ने नामपल्ली इलाके में एक मस्जिद से काम करना शुरू कर दिया।

निजामुद्दीन की तरह ही यहां की मल्लेपल्ली मस्जिद भी भारत और विदेशों में रहने वाले मरकज के समर्थकों व इससे जुड़े समूहों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

मार्च के मध्य में निजामुद्दीन का दौरा करने के बाद 10 इंडोनेशियाई तेलंगाना के करीमनगर शहर पहुंचे थे, जो कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। वहीं इंडोनेशिया और किर्गिस्तान के दो समूह मल्लेपल्ली मस्जिद में पाए गए, जिन्हें एकांतवास में भेजा गया है।

तबलीगी जमात की स्थापना हरियाणा के मेवात में मौलाना मुहम्मद इलियास द्वारा 1926 में की गई थी। तबलीगी जमात केवल मुसलमानों के बीच काम करती है और राजनीति व विवादों से दूर ही रहती है।
  

आईएएनएस
नई दिल्ली


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