सीएए में ऐसा कुछ नहीं, जिस पर हंगामा बरपे : नकवी

Last Updated 21 Mar 2020 10:40:47 AM IST

विपक्ष भ्रम पैदा करके भाजपा से समाज के एक बड़े वर्ग को अलग रखना चाहता है और सीएए के मुद्दे पर लोगों को बरगला और उलझाकर वह अपनी इसी मंशा को पूरा करना चाहता है।


भाजपा धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करती। हमारे लिए हिन्दुस्तान का मतलब है, यहां की 130 करोड़ आबादी। मकसद है हर जरूरतमंद की जिंदगी में खुशहाली लाना। लेकिन विपक्ष भ्रम पैदा करके भाजपा से समाज के एक बड़े वर्ग को अलग रखना चाहता है और सीएए के मुद्दे पर लोगों को बरगला और उलझाकर वह अपनी इसी मंशा को पूरा करना चाहता है। जबकि इस कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिस पर हंगामा बरपाया जाए। जो दंगों की कालिख से पूरी तरह दागदार हैं, ऐसे लोगों ने दंगों का माहौल पैदा किया। दंगों में इंसान नहीं मरता, बल्कि इंसानियत लहूलुहान हो जाती है। दिल्ली में इंसानियत का खून हुआ। यह कहना है केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का। नकवी से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने कई मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत का बातचीत के प्रमुख अंश-

आपकी पार्टी पर विपक्ष का आरोप रहता है कि आप सांप्रदायिकता की राजनीति करते हैं और संविधान की मूल भावना धर्म निरपेक्षता को कमजोर करते हैं। आप दावा समावेशी विकास का माहौल बनाने का करते हैं। विपक्ष को इस तरह के आरोप लगाने का मौका क्यों मिलता है?
आरोप लगाने वालों का मकसद भाजपा से समाज के एक बड़े वर्ग को अलग रखना है। किसी भी राजनैतिक दल के मूल में संविधान का सम्मान और पंथ निरपेक्षता होनी चाहिए। भाजपा हमेशा से इसमें विश्वास रखने वाली पार्टी रही है। संवैधानिक मूल्यों के सम्मान की ही वजह से इस पार्टी ने देश के 80 फीसद राज्यों में सरकार चलाई है। केंद्र में भी हम मोदी जी के नेतृत्व में सरकार चला रहे हैं और पहले भी अटल जी के नेतृत्व मे चला चुके हैं। हम जब कहते हैं कि हर जरूरतमंद की आंखों में खुशी और उसकी जिंदगी में खुशहाली आनी चाहिए, तो इन जरूरतमंदों को हम धर्म जाति क्षेत्र में नहीं बांटते, हम बात करते हैं 130 करोड़ हिंदुस्तानियों की।

सीएए को लेकर इतना बवाल देश में खड़ा किया गया। मुझे भी अभी तक इस बात का जवाब नहीं मिल पाया है कि मुसलमान भाइयों के हित कैसे प्रभावित हो रहे हैं। पाठकों को आप जरा बताएं कि वास्तविकता में ये सीएए है क्या?
ये नागरिकता अधिनियम है और इसमें कम से कम एक दर्जन बार बदलाव हो चुके हैं। ये बदलाव इंदिरा गांधी जी के समय में भी और राजीव गांधी जी के समय में भी हुए। मोदी जी के नेतृत्व में 2019 में पहली बार इसे लोकसभा में लाया गया, उस वक्त विपक्ष ने कहा कि इसे सिलेक्ट कमेटी या स्टैंडिंग कमेटी को भेजा जाए। हमारे पास उस वक्त पूर्ण बहुमत था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विपक्ष की बात सुनी जाए और इसका सूक्ष्म परीक्षण किया जाए। विपक्ष के सुझावों को भी इसमें शामिल करने की बात प्रधानमंत्री ने कही। इसके बाद एक ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी बनी, जिसमें सभी दलों के राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों को शामिल किया गया और इस एक्ट पर चर्चा की गई।

जब सीएए पास हुआ तो मुझे लगता है कि इसका विरोध संसद में उतना नहीं हुआ, जितना बाद में सड़कों पर देखने को मिला?
पिछले कार्यकाल में पहले लोकसभा में ये पास हुआ और फिर राज्यसभा में रखा गया, लेकिन उस वक्त लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो गया था और लोकसभा भंग हो गई। फिर से चुनाव हुए और हमारी सरकार बनी। दोबारा इस प्रक्रिया को करना पड़ा क्योंकि ऐसी व्यवस्था है कि एक बार बिल लैप्स हो जाने के बाद दोबारा पूरी प्रक्रिया करनी पड़ती है। इस पूरी प्रक्रिया में सभी से सुझाव मांगे गए और बात की गई। उस वक्त तो किसी ने कुछ नहीं कहा और बाद में लोगों को इस मामले पर बरगलाया और उलझाया गया। इसमें ऐसी कोई बात ही नहीं है, जिस पर हंगामा किया जाए।
हम किसी को देश में आने का निमंत्रण नहीं दे रहे हैं। बात बस इतनी है कि जो तीन देशों के पीड़ित और प्रताड़ित लोग हैं, उन्हें यहां आने और बसने का मौका दिया जा रहा है। पिछले पांच सालों में हमने साढ़े पांच से छह हजार लोगों को नागरिकता दी है। इसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश के सबसे ज्यादा लोग हैं। ये वही नागरिकता संशोधन एक्ट है, जो 1955 से बना हुआ है। अब सवाल ये उठाया जाता है कि इसमें मुसलमान क्यों नहीं हैं? मैं ऐसे लोगों से सवाल पूछना चाहता हूं कि आप मुझे पाकिस्तान और बांग्लादेश के उन प्रताड़ित मुसलमानों की सूची दें, जिन्हें आप यहां लाना चाहते हैं।

प्रदर्शन के दो चेहरे हैं एक शाहीन बाग और दूसरा दंगा ग्रस्त इलाके। एक तरफ शांतिपूर्ण तरीके से लोग सड़कों पर बैठे तो दूसरी तरफ नृशंसता की सारी हदें पार हो गई और 48 से ज्यादा लोग मार दिए गए। क्या ये कहना सही नहीं होगा कि दिल्ली में हालात को काबू करने में सरकार विफल रही है?
दंगों में इंसान नहीं मरता, बल्कि इंसानियत लहूलुहान हो जाती है। दिल्ली में इंसानियत का खून हुआ। बीते 5 सालों में मोदी जी के कार्यकाल में कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई। मुजफ्फरपुर जैसी जगहों पर एक-दो छुटपुट हिंसा की घटनाएं हुई थीं। दूसरी तरफ वो लोग हैं जो दंगों के दबंग कहलाते हैं और जिनका इतिहास पांच हजार से ज्यादा सांप्रदायिक दंगों का रहा है। भिवंडी से लेकर भागलपुर तक का इतिहास देख लीजिए, चार-चार महीने तक दंगे हुए हैं, जिनमें हजारों लोग मारे गए। मलयाना से लेकर मालेगांव तक देखिए या हैदराबाद देखिए देश के किसी भी हिस्से को उठाकर देख लीजिए, दंगों का काला इतिहास आपके सामने आ जाएगा। जो दंगों की कालिख से पूरी तरह दागदार हैं, ऐसे लोगों ने दंगों का माहौल पैदा किया और ये जताने की कोशिश की भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा हो रही है। अपने आस पड़ोस में देख लीजिए, भारत अल्पसंख्यकों के लिए स्वर्ग है। नर्क का एहसास उन लोगों को है जो पाकिस्तान में रह रहे हैं।

पढ़े लिखे और विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकता के भी कई मुसलमान इस बात को मानते हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों के हितों का ज्यादा ध्यान रखा जाता है। शायद यही वजह है कि मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल के मुकाबले उनका बजट 15 सौ करोड़ बढ़ा दिया गया है। इस बार इसे 4700 करोड़ से बढ़ाकर 5000 करोड़ से ऊपर किया गया। इस समय कौन-कौन सी ऐसी नीतियां हैं जिन पर आप अल्पसंख्यकों को ले कर काम कर रहे हैं?
पहले हमें ये समझना होगा कि केंद्र की तमाम योजनाओं का लाभ हर हिंदुस्तानी को मिलता है। उदाहरण के लिए मुद्रा योजना जो कि गरीब और कमजोर तबकों के लिए हैं उसका लाभ छोटे व्यवसाय करने वालों को मिला। ऐसे लोग, जिन्हें पचास हजार से एक लाख तक के लोन की जरूरत होती है। ये लोन उन्हें बिना किसी गांरटी के मिलता है। अब मैं आपको ये बताना चाहता हूं कि इस योजना के 30 फीसद लाभार्थी अल्पसंख्यक खासतौर पर मुसलमान हैं। इसके अलावा जब 6 लाख गांवों में बिजली पहुंचाई जाती है तो उससे भी अल्पसंख्यकों को बड़ी राहत मिलती है। इन गांवों में से 25 फीसद में कांग्रेस कार्यकाल में बिजली आई थी। बाकी बचे हुए गांवों में 50 फीसद ऐसे गांव थे, जहां अल्पसंख्यक या मुस्लिम आबादी थी। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना का फायदा भी इन सभी लोगों को मिला। इससे पहले इन्हें जानबूझकर अंधेरे में रखा गया, बेघर रखा गया ताकि ये तबका कमजोर और अशिक्षित बना रहे। इस बजट में बहुत महत्वपूर्ण घोषणा हुई कि 50 लाख अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जाएगी, इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। पिछली बार 5 सालों में हमने तीन करोड़ 18 लाख अल्पसंख्यकों को फायदा पहुंचाया, जिनमें पचास फीसद से ज्यादा छात्राएं थीं। इस बार भी हम इसी तरह से इन छात्रों की मदद करेंगे। शिक्षा में बड़ी शक्ति है। हमारी प्राथमिकता है अल्पसंख्यक युवाओं को सशक्त बनाना। 2014 में जब मोदी सरकार आई थी तब स्कूलों से बच्चियों का ड्रॉप आउट रेट 73% था जो अब घटकर 40% रह गया है और हमारा संकल्प है इसे पूरी तरह खत्म कर दिया जाए।

मदरसों के बारे में बातचीत हो रही है तो करीब 19000 मदरसे हैं पूरे देश में। इनमें से करीब साढ़े चार हजार मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं और संचालित किए जा रहे हैं। मदरसों के लिए आप की क्या नीति हैं?
मैं यह नहीं मानता कि सारे मदरसे कोई गलत काम कर रहे हैं या सारे मदरसों में आतंकी गतिविधियां हो रही हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मदरसों को लेकर अहम कदम उठाया। उन्होंने कहा कि मदरसों को सरकार की ओर से ग्रांट दी जाती है ऐसे में उनके बारे में जानकारियों को व्यवस्थित किया जाना चाहिए। उन्होंने सभी मदरसों और उनके छात्रों की जानकारियों को ऑनलाइन जोड़ने की व्यवस्था की और खुशी की बात है कि उत्तर प्रदेश में 99 फीसद मदरसे अब ऑनलाइन जुड़ चुके हैं। मदरसों को पोर्टल पर रजिस्र्टड कराकर ही ग्रांट देने का काम काफी कारगर सिद्ध हुआ। मदरसों में पढ़ाने वालों की भी ट्रेनिंग होनी चाहिए, जो हम मुफ्त में दे रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने मदरसों में एनसीईआरटी की किताबें और सिलेबस लागू किया। इसका क्या प्रभाव रहा है?
यदि शिक्षा रोजगारपरक नहीं होगी तो वो आपको मुख्यधारा से नहीं जोड़ पाएगी। मदरसों में आप दीनी शिक्षा दीजिए लेकिन साथ ही साथ आपको व्यावहारिक शिक्षा भी देनी होगी। मदरसों से निकलने के बाद यदि छात्र को व्यावहारिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी आदि का ज्ञान नहीं होगा तो वो कभी भी मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन पाएगा। यदि आपके पास व्यावहारिक शिक्षा का र्सटििफकेट नहीं होगा तो आप किसी मदरसे में ही शिक्षक बन पाएंगे या कहीं इमाम बन पाएंगे।

राज्य सरकार और केंद्र सरकार मदरसों को किस तरह की आर्थिक मदद देती है? 5 करोड़ छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी गई, इसमें कितना खर्च आया होगा?
मदरसों को हम आर्थिक मदद नहीं देते हैं, बल्कि छात्र-छात्राओं को सीधे ये मदद दी जाती है। आंकड़े पूरी तरह तो नहीं हैं इस वक्त लेकिन मान लीजिए कोई बच्चा दसवीं में है तो उसे 5000 से लेकर के 10000 तक की आर्थिक मदद सालाना मिल जाती है। इसी तरह से अलग-अलग कक्षाओं के मुताबिक छात्र छात्राओं को आर्थिक मदद दी जाती है।

वक्फ बोर्ड के पास बहुत ज्यादा संपत्तियां हैं। करीब 5 लाख छोटी बड़ी संपत्तियां हैं, जो पूरे देश में करीब 6 लाख एकड़ क्षेत्र में फैली हुई हैं। आपने कहा था कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों से 10 हजार करोड़ तक की सालाना कमाई की जा सकती है। वर्तमान में इस कमाई का आंकड़ा महज 150 करोड़ के आस पास दिखाई देता है। आपकी उम्मीद और हकीकत में बहुत बड़ा फासला है। इस पर वक्फ बोर्ड को लेकर आप क्या ठोस पॉलिसी बना रहे हैं?
रक्षा क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास ही है। इस संपत्ति का सदुपयोग करने की बात हमने कही है। यहां अस्पताल, होस्टल, स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, पॉलिटेक्निक बनाए जा सकते हैं। इसके लिए हमने प्रधानमंत्री जन विकास योजना के तहत काम करने का प्रस्ताव भी रखा है। हमने वक्फ बोर्ड से कहा है कि हमें योजनाओं के प्रस्ताव दीजिए और उन्हें अमल में लाने के लिए सरकार पैसा देगी। हमारे पास कई प्रस्ताव आए हैं और इन पर काम भी हो रहा है। वक्फ बोर्ड को लेकर हमारा सबसे महत्वपूर्ण कदम रहा है वक्फ संपत्तियों को पूरी तरह से डिजिटलाइज्ड करना। देश की सारी वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड को अब सौ फीसद डिजिटल कर दिया गया है। जियो मैपिंग की प्रक्रिया भी चल रही है, जिसे 1 साल में पूरा कर लिया जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि वक्फ की संपत्तियों को लेकर जो विवाद होते रहे हैं, कई जगह संपत्ति को गायब कर दिया जाता था, इन सारी दिक्कतों की रोकथाम होगी। संपत्ति के कब्जे को लेकर होने वाले विवादों से निपटने के लिए हमने लीज़ को लेकर भी नए नियम बनाए हैं।

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से बहुत ज्यादा तनाव का माहौल रहा है। अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। दुनिया के तमाम देशों के राजदूत और प्रतिनिधि वहां गए और सब ने मुक्त कंठ से मोदी सरकार की तारीफ की। हांलाकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने ये भी कहा कि वहां सबकुछ ठीक नहीं है। आप अल्पसंख्यकों का चेहरा होने के साथ साथ सरकार में उनकी नुमाइंदगी भी करते हैं। 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में क्या बदलाव आए हैं?
जम्मू-कश्मीर, लेह और करगिल में 370 समस्याओं का कारण बना था। कोई भी कानून या कोई योजना बनती थी तो उसमें इन जगहों को शामिल नहीं किया जाता था। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम को लागू करना है तो जम्मू-कश्मीर के बिना उसे लागू करना होगा। मुद्रा योजना लागू होगी तो पूरे देश में सिवाय जम्मू-कश्मीर के। जम्मू-कश्मीर की योजनाओं के लिए केंद्र की तरफ से सौ फीसद पैसा जाता था और अन्य योजनाओं को वहां लागू करने में काफी पैसा लगता था। योजनाओं के लिए जाने वाले इस पैसे की बहुत लूट हुई और यहां योजनाओं के नाम पर भयंकर भ्रष्टाचार होता रहा। कुछ ऐसे राजनैतिक परिवार रहे हैं जिन्हें आप राजशाही परिवार भी कह सकते हैं, जो खुद तो मस्त रहे लेकिन जम्मू कश्मीर की जनता को उन्होंने पस्त कर दिया। 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर की आम अवाम की सकारात्मक प्रतिक्रिया आई। हमारे कई मंत्री वहां गए और मैं खुद भी वहां गया। मैंने तय किया कि मैं जम्मू कश्मीर की आम अवाम का मिजाज जानूंगा। इसीलिए मैं कई गांवों में घूमा, वहां लोगों से मिला और उनसे बातचीत की। वहां की समस्याएं हमने सुनीं। इन समस्याओं में सबसे बड़ी थी रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी। मैंने तय किया कि अधिकारियों को बिना बताए हम लाल चौक जाएंगे। यदि हम अधिकारियों को बताते तो वो हमें कभी वहां नहीं जाने देते। वहां पहुंचकर मैंने स्थानीय लोगों और दुकानदारों से बात की और उनकी परेशानियों के बारे में जाना। आम लोगों को ये एहसास हो रहा था कि 370 लगी होने की वजह से उनका कितना नुकसान हो रहा था। उन्हें इस बात का भी एहसास हुआ कि मुख्य धारा से जुड़ने के मायने क्या होते हैं। बेशक अधिकारियों की चिंता को दरकिनार कर मैं वहां गया और उन्होंने मुझे बाद में कहा भी कि यदि आप बताते तो हम आपको कभी वहां नहीं जाने देते लेकिन वहां जाने का फायदा ये रहा कि आज भी हर दिन मेरे पास जम्मू-कश्मीर, लेह, करगिल से कम से कम 40-50 लोग रोज आते हैं अपनी समस्याएं बताते हैं।

कुछ लोगों को एहतियातन नजरबंद भी रखा गया। इसकी क्या वजह रही?
ये सरकार का नहीं, सुरक्षा एजेंसियों का फैसला होता है। आंतरिक सुरक्षा एजेंसियां ये बताती हैं कि इन लोगों की नजरबंदी के बाद न तो कोई पत्थरबाजी हुई, न कहीं कोई गोलीबाजी हुई, न ही आतंकी घूम घूम कर लालचौक पर गोलियां चला रहे हैं। इससे ये साफ होता है कि उपद्रवी तत्वों को इन लोगों का प्रश्रय प्राप्त होता है। चाहे परोक्ष हो या अपरोक्ष कहीं न कहीं अशांति फैलाने वालों और इन लोगों के बीच एक दोस्ताना था। जम्मू कश्मीर के हित में इन्हें नजरबंद किया गया।

जामिया यूनिर्वसटिी में पुलिस की कार्रवाई को बर्बर कहा गया, क्या ये ठीक थी या पुलिस दूसरा भी रास्ता अपना सकती थी?
मेरा मानना है ऐसा नहीं करना चाहिए था। हम लोग भी छात्र राजनीति से ही निकलकर आए हैं। आंदोलन होते हैं और आंदोलन में बहुत बार पुलिस की कार्रवाई भी हुई। छात्रों का सामान निकालकर फेंकना या छात्रों के साथ हुई मारपीट को बिल्कुल भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। बातचीत का तरीका भी है, जिसके जरिए मामले को शांत किया जा सकता था।

भाजपा के कुछ नेताओं पर आरोप है कि दिल्ली में दंगा भड़काने और माहौल खराब करने में उनके भड़काऊ भाषणों का भी बड़ा योगदान है। इस पर आप क्या कहेंगे?
भड़काऊ भाषण किसी भी स्तर पर न्यायोचित नहीं ठहराए जा सकते। भड़काऊ भाषण सस्ती लोकप्रियता के लिए दिए जाते हैं लेकिन इन्हें जनमानस कभी पसंद नहीं करता। प्रधानमंत्री इस तरह के भाषणों के सख्त खिलाफ हैं। सभी को अपनी बात कहने का हक और सभी की अपनी अपनी सोच है लेकिन उसमें भड़काऊ बातों को डालना गलत है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से कई बातें सीखी जा सकती हैं। जो लोग भड़काऊ बातें करते हैं वो अपना नुकसान खुद करते हैं।

साल 2010 में नरेंद्र मोदी जी से अपनी मुलाकात में मैंने एक बात कही थी और उसे मैं आपके साथ हो रही बातचीत में दोहराना चाहता हूं। मैंने उनसे कहा था कि मुसलमानों को आपसे कोई परेशानी नहीं है मुसलमानों की राजनीति करने वालों को आपसे ज्यादा परेशानी है।
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। सीएए को लेकर पूरे मुस्लिम समाज में भय और उलझन को पैदा किया गया। इससे मुसलमान सशंकित भी हुए। जिस तरह से तीन तलाक पर फैसला आया, कश्मीर में धारा 370 हटी, अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तो मुसलामानों में ये गलतफहमी पैदा करने की कोशिश की गई कि ये फैसले मुस्लिम समाज की भावनाओं के खिलाफ हो रहे हैं। 

ये भाव तो आया कि जो निर्णय हो रहे हैं वो कहीं न कहीं मुसलमानों की भावनाओं पर आघात हैं, इस पर क्या कहेंगे?
नहीं। यहां भावनाओं की बात ही नहीं है। उदाहरण के लिए यदि सीएए की बात हो रही है तो इसका हिंदुस्तान के मुसलमानों से या हिंदुओं से क्या लेना देना है? इसी तरह न ही हिंदुस्तान के सिख या ईसाइयों से इसका कोई लेना देना है।

एक भय है नकवी साहब। किसी को भी यह खराब लगता है कि उसके दरवाजे पर खड़े होकर उससे उसका परिचय पूछा जाए?
किसी को परिचय देने की जरूरत नहीं है। मुझसे भी कई लोगों ने ये बात कही। मैंने उनसे कहा आप वोट देने जाते हैं तो अपना वोटर आईडी लेकर जाते हैं ना? देश में 99 फीसद मुसलमानों के पास वोटर आईडी कार्ड हैं। हिदुस्तान के लोगों के पास राशन कार्ड हैं, बैंक में अकाउंट हैं, जिनके लिए आधार कार्ड की जरूरत होती है। आपको कुछ भी देने की जरूरत नहीं है, सारी चीजें आपके पास हैं।

आम लोगों की तरफ से आपसे ये सवाल पूछ रहा हूं कि क्या यह भ्रम फैलाया गया है कि आप को अपने बाबा, दादा, परदादा को भी प्रमाणित करना होगा?
नहीं यह बिल्कुल गलत बात है। ये झूठ और अफवाह फैलाने वालों की बनाई हुई एक बनावटी बात है। आपको अपने बाप-दादा का या अपने पुरखों का कोई परिचय नहीं देना है। यही लोग जनगणना जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया के खिलाफ इन्हीं लोगों को भड़का रहे हैं। जनगणना जो हर 10 साल में होती है। अब इनके राजनैतिक स्वार्थ को समझिए ये इस प्रक्रिया के खिलाफ भी लोगों को भड़का रहे हैं। जनगणना का नामकरण नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रेशन, चिंदबरम साहब ने ही किया। मनमोहन सिंह और सोनिया जी ने इस प्रक्रिया को डिजिट करने की बात कही। अब क्या आपत्ति हो गई है? मुसलमानों को क्यों भड़काया जा रहा है कि इसमें अपना नाम दर्ज न कराएं? 

हज यात्रियों की तादाद 25 हजार तक बढ़ी है। इन लोगों को और सुविधाएं देने के लिए या सब्सिडी देने के लिए आपकी सरकार की क्या रणनीति है?
हज सब्सिडी के नाम पर एक बहुत बड़ा छलावा इस देश में चल रहा था। मोदी सरकार ने हज सब्सिडी को बंद कर एक बड़ा फैसला किया। हमने बिचौलियों और दलालों की भूमिका को खत्म कर दिया। इस फैसले की अहमियत आप इसी बात से समझ सकते हैं कि सब्सिडी बंद होने के बावजूद हज मंहगा नहीं हुआ है। दूसरी अहम बात ये है कि पहले मेहरम के बिना महिलाएं हज पर नहीं जा सकती थीं हमने उस बाध्यता को भी दूर करने में सफलता हासिल की। पिछले तीन सालों में साढ़े पांच हजार से ज्यादा महिलाएं बिना किसी पुरु ष रिश्तेदार के हज की यात्रा पर गई। ये एक बहुत बड़ा सकारात्मक बदलाव है। प्रधानमंत्री मोदी ने इन देशों के शासकों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है जिससे हमारा हज का कोटा बढ़ा है। 2 लाख से ज्यादा लोग पिछली बार हज के लिए गए थे।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सीएए के खिलाफ काफी कुछ लिखा है। ये भी कहा जा रहा है कि सीएए को लेकर हुए राजनैतिक आंदोलनों की वजह से हमारा बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है। आप को क्या लगता है इससे हमारा नुकसान हुआ है और छवि खराब हुई है?
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की अपनी मानसिकता है। यही वो मीडिया है, जिसने कभी मोदी जी को खलनायक बना दिया था। उन्हें वीजा तक नहीं मिला था। आज यही वो अंतरराष्ट्रीय मीडिया है, जिसने उन्हें नायक के तौर पर पेश किया। वो जहां जहां गए, वहां वहां उनका इकबाल बुलंद हुआ, और ये मीडिया की वजह से नहीं उनके कामों की वजह से था। सीएए को लेकर नकारात्मक बात करने वाला मीडिया का एक विशेष वर्ग है। मुझसे भी कई लोग इस पर सवाल-जवाब करते हैं। अमेरिका के मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन भी मिलने आए थे। उन्होंने कहा कि आप मुसलमानों के साथ भेदभाव करते हैं। मैंने उनसे पूछा कि आप कोई एक घटना बताइए, जहां इस देश में अल्पसंख्यकों, पिछड़े मुस्लिमों या क्रिश्चियनों के साथ कोई भेदभाव हुआ हो।

मुस्लिम समुदाय के कुछ बच्चे अतिवाद की तरफ बढ़ जाते हैं। कुछ जगहों पर मदरसों की भूमिका को लेकर एनआईए ने भी कार्रवाई की हैं। आप अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री तो हैं ही साथ ही साथ इस्लाम के भी जानकार हैं। मुस्लिम युवाओं को आप इस्लाम को किस तरह समझाना चाहेंगे?
मदरसों को लेकर बात का बतंगड़ बनाया जाता है। सिर्फ  मदरसों की बात क्यों करना, कई कॉलेज, एनजीओ और अन्य संस्थाएं भी हो सकती हैं, जो दूध की धुली हुई नहीं होंगी। मदरसों के बारे में मैं ये जरूर कहना चाहूंगा कि यहां पारदर्शिता की बहुत जरूरत है। मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, कंप्यूटर जैसे औपचारिक विषयों को भी पढ़ाया जाना चाहिए। सबसे अहम बात ये कि सभी को ये समझना होगा कि वो इस देश का हिस्सा हैं और देश की तरक्की में उनका योगदान भी जरूरी है। देश की तरक्की में भागीदारी से रोकने वाली ताकतें युवाओं को बहकाती और बरगलाती हैं, इन्हें रोकने की जरूरत है।
 

उपेन्द्र राय/सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ
नई दिल्ली


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