महाराष्ट्र राजनीतिक संकट : पहले के फैसलों के आधार पर दिया शक्ति परीक्षण का आदेश
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को विधानसभा में बुधवार की शाम तक बहुमत सिद्ध करने का निर्देश देने संबंधी आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक से लेकर झारखंड विधान सभा तक में उत्पन्न ऐसे ही राजनीतिक संकटों में शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला दिया।
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इन राज्यों में भी राजनीतिक संकट पैदा होने पर न्यायालय ने सदन में ही बहुमत सिद्ध करने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में सबसे पहले कर्नाटक विधानसभा के 17 सदस्यों को अयोग्य ठहराने के अध्यक्ष के निर्णय को सही ठहराने संबंधी अपने 13 नवंबर के फैसले का हवाला दिया है। न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कर्नाटक प्रकरण में अयोग्य घोषित विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया था। इस फैसले में न्यायालय ने संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों की संवैधानिक नैतिकता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया था। इसी तरह शीर्ष अदालत ने कर्नाटक विधानसभा में भाजपा के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को शाम चार बजे तक विश्वास मत हासिल करने का आदेश देने संबंधी अपने 18 मई, 2018 के फैसले का भी हवाला दिया है। न्यायालय ने कहा था कि यह पता लगाने के लिए कि क्या येदियुरप्पा को बहुमत प्राप्त है या नहीं, सदन में शक्ति परीक्षण करना होगा।
शीर्ष अदालत ने इसी तरह उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के मामले में अपने 2016 के निर्णय का हवाला दिया। इस मामले में न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत को सदन में विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया था। राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने राज्य विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करने और उसमें हरीश रावत को विश्वास मत प्राप्त का आदेश दिया था। इस तरह की स्थिति छह साल झारखंड विधान सभा में 2005 में पैदा हुई और एक बार फिर शीर्ष अदालत ने मार्च 2005 में सदन में ही शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था, ताकि यह पता लग सके कि अजरुन मुण्डा या शिबू सोरेन में से किसके पास बहुमत है।
इसी तरह न्यायालय ने 1999 के बहुचर्चित जगदम्बिका पाल बनाम भारत सरकार प्रकरण का भी हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने उप्र विधानसभा में समेकित शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किए गए कल्याण सिंह के पास बहुमत है या फिर उनके उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त कांग्रेस के जगदम्बिका पाल के पास बहुमत है।
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