चांद की सतह पर उतरने से 2.1 KM पहले टूट गया संपर्क और 16वीं बाधा पार नहीं कर पाया चंद्रयान-2

Last Updated 07 Sep 2019 10:21:36 AM IST

चंद्रयान-2 की मदद से शनिवार को तड़के अंतरिक्ष में इतिहास की नयी गाथा लिखने से ठीक पहले देश को उस समय धक्का लगा जब चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर पहले विक्रम लैंडर का संपर्क टूट गया।


चंद्रमा की सतह पर उतरने से महज 2.1 किलोमीटर पहले चंद्रयान-2 अभियान योजनाबद्ध कार्यक्रम के मुताबिक आगे बढ़ रहा था लेकिन अंतिम सफलता हासिल करने से ठीक पहले विक्रम लैंडर का संपर्क टूट गया और केंद्र में मौजूद इसरो अध्यक्ष डॉ के सिवन समेत सभी वैज्ञानिकों के चेहरे पर मायूसी छा गई और वहां सन्नाटा पसर गया।

चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम के चंद्रमा की सतह पर उतरने के जीवंत अवलोकन करने के लिए इसरो के बेंगलुरु स्थित टेलीमेंट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) केन्द्र में मौजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इसरो अध्यक्ष के सिवन ने जब विक्रम लैंडर का संपर्क टूट जाने की जानकारी दी तो मोदी ने उनकी पीठ थपथपाते हुए सभी वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई की।     

डॉ सिवन ने कहा, ‘‘विक्रम लैंडर निर्धारित समय एवं योजना के अनुरुप चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए बढ़ रहा था और सतह से 2.1 किलोमीटर दूर तक सब कुछ सामान्य था, लेकिन इसके बाद उससे संपर्क टूट गया। प्राप्त डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है।’’

मोदी ने बाद में ट्वीट किया, ‘‘भारत को अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है। उन्होंने अपना बेहतर दिया है और भारत को हमेशा गौरवान्वित महसूस कराया है। यह साहसी बनने के क्षण हैं और हम साहसी बने रहेंगे। इसरो के चेयरमैन ने चंद्रयान-2 के बारे में जानकारी दी। हमें पूरी उम्मीद है और हम अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर लगातार पूरी लगन के साथ मेहनत करते रहेंगे।’’

चंद्रयान-2 के दौरान कुल 16 बड़ी बाधायें सामने आयीं जिसमें आखिरी क्षणों के ‘सबसे भयावह’ 15 मिनट भी शामिल थे।  इसके साथ ही चांद पर पहुंचने के लिए शुरू किया गया भारत का 48 दिवसीय मिशन पूरा हो गया लेकिन इसके जरिये कोई नया इतिहास नहीं रचा जा सका। हॉलीवुड की हालिया ब्लॉकबस्टर मूवी ‘अवेंजर्स : एंडगेम’ जितनी राशि में बनी थी, उससे तिहाई कम खर्च में इसरो ने चंद्र अभियान को अंजाम दिया। इस अभियान पर लगभग 1000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं जो अन्य देशों की ओर से संचालित ऐसे अभियान की तुलना में काफी कम है।

चंद्रयान-2 के तीन हिस्से थे, ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। भारत में अंतरिक्ष विज्ञान के जनक कहे जाने वाले विक्रम साराभाई के नाम पर इसके लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है। वहीं रोवर का नाम प्रज्ञान है, जो संस्कृत का शब्द है। इसका अर्थ होता है ज्ञान। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर, सालभर चांद का चक्कर लगाते हुए प्रयोगों को अंजाम देगा। लैंडर और रोवर चांद की सतह पर कुल 14 दिन तक प्रयोग करना था।

चंद्रयान-2 ने अपने 48 दिन के सफर के दौरान मिशन की अबतक 15 बड़ी बाधाओं को सफलतापूर्व पार कर लिया था। चांद पर सफल लैडिंग इसकी अंतिम और निर्णायक बाधा माना जा रहा था जिसे आखिरी चरण में पूरा नहीं किया जा सका।

ठीक 11 साल पहले चंद्रयान-1 के रूप में भारत ने चांद की ओर पहला मिशन भेजा था। यह एक ऑर्बिटर मिशन था, जिसने 10 महीने चांद का चक्कर लगाया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है। चंद्रयान-2 इसी उपलब्धि की आगे की कड़यिां जोड़ने और चांद के पानी एवं विभिन्न खनिजों की उपस्थिति के प्रमाण जुटाने वाला था।
चंद्रयान-2 को 15 जुलाई की सुबह 2:51 बजे लांच करने की तैयारी थी। हालांकि उस दिन लांचिंग से 56 मिनट पहले रॉकेट में कुछ गड़बड़ी दिखने के कारण अभियान को टाल दिया गया था। वैज्ञानिकों का कहना था कि ऐसे अभियान में देरी स्वीकार्य है, लेकिन खामी नहीं। ऐसे हर अभियान से देश के करोड़ों लोगों की उम्मीद जुड़ी होती है।

चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को बेंगलुरु के श्रीहरिकोटा स्थित विक्रम साराभाई स्पेस एंड रिसर्च संस्थान (इसरो) से दोपहर बाद 2:43 बजे लॉच किया गया था। इसरो के बाहुबली रॉकेट ने प्रक्षेपण के ठीक 16 मिनट बाद ही यान को सुरक्षित तरीके से पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया था। इसके बाद यान ने रॉकेट से अलग होकर चंद्रमा की तरफ अपना सफर शुरू कर दिया था।

इस मिशन की सफलता के साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन जाता। साथ ही इस अभियान के सफल होने पर रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत चाँद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता। इसके अलावा इसरो को दुनिया के सामने अपनी मेधा और क्षमता को साबित करने का मौका भी मिलता। इस मिशन से दुनिया को भी पृथ्वी के निर्माणक्रम से लेकर हमारे सौरमंडल को समझने का रास्ता भी खुलता।

गौरतलब है कि चांद के हिस्से में हर वक्त अंधेरा रहता है। संभावना है कि यहां पानी, बर्फ और ऑक्सीजन मिल सकता है। भारत ने अपने पहले मिशन चंद्रयान-1 में कई अहम खोज की थी। इस मिशन में भारत ने ही चांद पर बर्फ और पानी की मौजूदगी का खुलासा किया था। ये जानकारी पूरी दुनिया के लिए काफी अहम साबित हुई थी।

अब भारत चांद के उस हिस्से में चंद्रयान-2 को उतारने की तैयारी में था जहां कई नए रहस्यों का खुलासा हो सकता है। इस वजह से भारत के इस मिशन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई थीं।

इसरो के चंद्रयान-2 के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को चुना गया था जहां पर विक्रम लैंडर की सॉफ़्ट लैंडिंग करवाई जानी थी। सब कुछ सही जा रहा था मगर सतह पर पहुंचने से कुछ देर पहले ही लैंडर से संपर्क टूट गया.

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई यान भेजने वाला भारत पहला देश है। अब तक चांद पर गए अधिकतर मिशन इसकी भूमध्य रेखा के आस-पास ही उतरे हैं। यदि भारत कामयाब हो जाता तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चंद्रमा पर किसी अंतरिक्ष यान की सॉफ़्ट लैंडिंग करवाने वाला चौथा देश बन जाता।

यदि भारत के प्रज्ञान रोवर के सेंसर चांद के दक्षिणी ध्रुवीय इलाके के विशाल गड्ढों से पानी के प्रमाण तलाश पाते तो यह बड़ी खोज होती।

चंद्रयान-2 मिशन की कामयाबी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लिए भी मददगार साबित हो सकती थी जो 2024 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक मिशन भेजने की योजना बना रहा है।

चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण पर नासा ने इसरो को बधाई दी थी। नासा चंद्रयान-2 की पल-पल की गतिविधि पर नजर रखे हुए है। अमेरिका ने जब चांद की सतह पर मानव भेजने का अभियान पूरा कर लिया था, उसके करीब महीने भर बाद 15 अगस्त, 1969 को इसरो की स्थापना की गई थी।

 

 

वार्ता
बेंगलुरु


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