अनुच्छेद 370: विपक्ष ने सरकार पर लगाया पक्षकारों से विचार विमर्श नहीं करने का आरोप

Last Updated 06 Aug 2019 04:42:35 PM IST

विपक्ष ने लोकसभा में सरकार पर जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का निर्णय करने से पहले संबंधित ‘पक्षकारों’ से विचार विमर्श नहीं करने का आरोप लगाया।


गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता मनीष तिवारी

वहीं सत्तारूढ़ पक्ष ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि संसद लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है और राज्य और वहां के लोगों के विकास के लिये यह कदम जरूरी है।

संविधान के अनुच्छेद 370 के कई प्रावधानों को समाप्त करने संबंधी संकल्प और जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक और जम्मू कश्मीर आरक्षण (दूसरा संशोधन) विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए विपक्षी दलों के सदस्यों ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों को खत्म करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का निर्णय राज्य की विधानसभा को लेना चाहिए था।

चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि कश्मीर पर संसद पक्षकार है, देश के 130 करोड़ नागरिक पक्षकार हैं और उनके प्रतिनिधि के तौर पर हम सभी सांसद पक्षकार हैं। ‘‘सबसे बड़ा पक्षकार कौन हो सकता है?’’

चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस और केंद्र में सत्तारूढ़ राजग की सहयोगी जदयू के सदस्यों ने सदन से वॉकआउट किया।

तृणमूल कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट करते हुए कहा कि वह न तो अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का और राज्य पुनर्गठन विधेयक का विरोध करती है और न ही समर्थन करते दिखना चाहती है।

तृणमूल नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य में आरक्षण संबंधी विधेयक का समर्थन करती है, लेकिन अनुच्छेद 370 संबंधी संकल्प और राज्य पुनर्गठन संबंधी विधेयक का विरोध करती है। सरकार को यह निर्णय करने से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों और पक्षकारों से विचार विमर्श करना चाहिए।          

बंदोपाध्याय ने नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला तथा पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती को हिरासत में लिये जाने संबंधी खबर के बारे में चिंता व्यक्त की। राकांपा नेता सुप्रिया सुले ने भी फारूख अब्दुल्ला के बारे में जानना चाहा।

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि नेशनल कान्फ्रेंस के नेता और सांसद फारूख अब्दुल्ला को न तो हिरासत में लिया गया है और न ही गिरफ्तार किया गया है, वह अपनी मर्जी से अपने घर पर हैं।

जम्मू कश्मीर के बारे में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश सांविधिक संकल्प और विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराएं हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र सरकार के कदम को लेकर संवैधानिक आधार पर सवाल खड़ा किया।

उन्होंने आरोप लगाया कि संसद में आज जो हो रहा है वह एक संवैधानिक त्रासदी है।

तिवारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ भारत का अभिन्न अंग पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी सरकार के कारण बने।

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में विभाजित करने के लिए वहां की विधायिका की कोई अनुमति नहीं ली गई। वहां की विधानसभा भंग की गई और अब संसद में ही राज्य के बारे में फैसला हो रहा है।

चर्चा के दौरान भाजपा के जुगल किशोर शर्मा ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराएं हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र सरकार के कदम को ‘ऐतिहासिक’ करार दिया, साथ ही कहा कि अनुच्छेद 370 ने राज्य को सिर्फ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद दिया।

उन्होंने आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू जिम्मेदार हैं। राज्य को भारी राशि दी गई लेकिन यह राज्य के कुछ परिवारों तक ही रह गयी।     शर्मा ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को वहां से भागना पड़ा और आज तक उनके साथ न्याय नहीं हुआ।

द्रमुक के टी आर बालू ने कहा कि सरकार ने इस संकल्प को लाने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति नहीं ली।

उन्होंने कहा कि सरकार बहुमत का लाभ उठाते हुए विधेयक तो पारित करा सकती है लेकिन अंतत: इससे सरकार को क्या हासिल होगा?

बालू ने कहा कि जम्मू कश्मीर में घुसपैठ की समस्या नहीं सुलझी है, सीमा के पास रहने वाले लोग सुरक्षित नहीं हैं। सरकार इस बारे में क्या सोचती है।

उन्होंने जानना चाहा कि सरकार को इस संबंध में फैसला लेने की इतनी जल्दी क्यों है और वह इंतजार क्यों नहीं कर सकती थी?

तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि वह जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक का समर्थन करते हैं लेकिन जिस तरह से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया है, उससे लगता है कि कोई लड़ाई की स्थिति है।

उन्होंने कहा कि जब अनुच्छेद 370 को लागू किया गया था तब यह संभवत: सबसे प्रभावी कदम था।

बंदोपाध्याय ने कहा कि सरकार को कश्मीर पर कोई फैसला करने से पहले देश के सभी राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि गृह मंत्री स्पष्ट करें कि जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाने की क्या जरूरत पड़ी? पूर्ण राज्य बने रहने देते तो क्या हो जाता?

तृणमूल सदस्य ने विधेयक को संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ बताते हुए कहा कि इस पर न केवल राजनीतिक दलों के, बल्कि समाज के विभिन्न वगरें ने सवाल उठाये हैं।

उन्होंने इसके बाद सदन से वाकआउट की घोषणा की और सरकार से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि जम्मू कश्मीर में किसी पर अत्याचार नहीं हो, शांति का माहौल हो।

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के रघु राम कृष्णराजू ने कहा कि आज इतिहास का बड़ा दिन है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के एकीकरण का सरदार वल्लभभाई पटेल का सपना पूरा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 में स्पष्ट उल्लेख था कि यह अस्थाई है।

जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने भाजपा को अटल बिहारी वाजपेयी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अनुच्छेद 370 से छेड़छाड़ नहीं करने के फैसले की याद दिलायी और सरकार के इस विवादास्पद अनुच्छेद के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने के निर्णय का विरोध किया।

ललन सिंह ने कहा कि जदयू जम्मू कश्मीर से संबंधित संकल्प और विधेयक पारित करने का हिस्सा नहीं बन सकता।

उन्होंने सत्ता पक्ष से कहा, ‘‘आपको विवादास्पद मुद्दे को नहीं छूना चाहिए था।’’

जदयू सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।

भाषा
नयी दिल्ली


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