अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया पर एक हफ्ते के अंदर मांगी स्थिति रिपोर्ट

Last Updated 11 Jul 2019 11:43:49 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्या भूमि विवाद मामले में जारी मध्यस्थता प्रक्रिया के संबंध में गुरूवार को एक सप्ताह के अंदर नवीनतम स्थिति रिपोर्ट सौंपे जाने का आदेश दिया।


सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर यह विवादित मामला मैत्रीपूर्ण तरीके से हल नहीं हुआ तो वह 25 जुलाई से दिन-प्रतिदिन आधार पर इसकी सुनवाई करेगा।    

 प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) एफ एम आई कलीफुल्ला से 18 जुलाई तक स्थिति रिपोर्ट सौंप देने का अनुरोध किया। साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि वह अगला आदेश भी 18 जुलाई को ही देगी। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) एफ एम आई कलीफुल्ला तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष हैं।      

संविधान पीठ ने कहा कि नवीनतम स्थिति रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद अगर उसे लगेगा कि मध्यस्थता प्रक्रिया विफल रही तब मुख्य अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई न्यायालय 25 जुलाई से दिन प्रतिदिन के आधार पर करेगा      

पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं।       

पीठ ने कहा, ‘‘हम समझते हैं कि न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) एफ एम आई कलीफुल्ला से यह अनुरोध करना उचित है कि वह अभी तक की मध्यस्थता प्रक्रिया के बारे में हमें सूचित करें और साथ ही यह भी बताएं कि प्रकिया अभी किस स्तर पर है।’’      

पीठ ने कहा, ‘‘न्यायाधीश कलीफुल्ला अगले बृहस्पतिवार तक यह रिपोर्ट सौंपेंगे। इसी दिन अगला आदेश पारित किया जाएगा।’’ सुप्रीम कोर्ट ने एक मूल वादी के कानूनी उत्तराधिकारी गोपाल सिंह विशारद की अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में विवाद पर न्यायिक फैसला देने और मौजूदा मध्यस्थता प्रक्रिया को बंद करने का अनुरोध किया गया। इसमें आरोप लगाया गया है कि मध्यस्थता प्रक्रिया में ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है। 

सुनवाई के दौरान राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने याचिका का समर्थन किया और कहा कि उन्होंने पहले भी मध्यस्थता समिति में मामला भेजे जाने का विरोध किया था।     

याचिका का विरोध कर रहे मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह नयी याचिका उन्हें डराने-धमकाने की चाल है इसलिए मध्यस्थता प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए। हालांकि, पीठ ने धवन को बताया कि चूंकि उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता समिति का गठन किया था तो उसे समिति से ताजा स्थिति रिपोर्ट प्राप्त करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के एस परासरण ने कहा कि शुरुआत से ही इस तरह के विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाना काफी मुश्किल रहा है।      

मध्यस्थता समिति की बैठकों का ब्यौरा देते हुए उन्होंने कहा कि यह बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट विवाद पर न्यायिक रूप से फैसला करें।  उनकी दलीलों का विरोध करते हुए धवन ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि इस समय समिति की कार्य प्रणाली की आलोचना करना उचित है।’’    

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम मध्यस्थता समिति से रिपोर्ट मांगेंगे।’’ इस पर धवन ने कहा कि मध्यस्थता को बीच में छोड़ना 10 मई के आदेश को पलटने जैसा होगा जब उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 15 अगस्त तक का समय बढा दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘यह ठीक नहीं है। वे (वादी) 10 मई के आदेश को पलटने के लिए नहीं कर रहे। वे कह रहे हैं कि मध्यस्थता समिति रद्द की जाए। गंभीर मध्यस्थता चल रही है।’’      

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उसने विवाद के पक्षकारों से पहले कहा था कि वह मौखिक सबूत के अनुवाद की सटीकता और शुद्धता के संबंध में लिखित में अदालत को सूचित करे। पीठ ने कहा कि पक्षकारों ने अभी तक उसे सूचित नहीं किया है।     

सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को मध्यस्थता प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय 15 अगस्त तक बढा दिया था और कहा था कि मध्यस्थता समिति सर्वमान्य समाधान को लेकर ‘‘आशावादी’’ है।      
न्यायालय ने आठ मार्च को सर्वमान्य समाधान की संभावना की तलाशने के लिए मध्यस्थता समिति के पास मामला भेज दिया था और न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) कलीफुल्ला को उसका अध्यक्ष नियुक्त किया था। आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिंिवग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता तथा प्रख्यात मध्यस्थ श्रीराम पंचू को समिति का सदस्य बनाया गया।  उसने समिति से बंद कमरे में सुनवाई करने और प्रक्रिया को आठ सप्ताह के भीतर पूरी करने के लिए कहा था।      

निर्मोही अखाड़ा और उत्तर प्रदेश सरकार को छोड़कर हिंदू संस्थाओं ने पीठ को बताया था कि वे मध्यस्थता के लिए अदालत के सुझाव के पक्ष में नहीं हैं। मुस्लिम संस्थाओं ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।      

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई। उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षकारों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच बराबर बांटा जाए।
 

 

भाषा
नयी दिल्ली


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