क्रांतिकारी आरटीआई कानून के बाद गोपनीयता बेमतलब
राफेल मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून के अमल में आने के बाद सरकारी कामकाज में गोपनीयता के कोई मायने नहीं रह गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट |
2005 का आरटीआई कानून क्रांतिकारी साबित हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से सवाल किया कि आरटीआई की अपार सफलता के बाद वह गोपनीयता जैसे पुरातन कानून पर वापस क्यों जाना चाहती है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कल अर केएम जोसेफ की बेंच ने राफेल मामले की सुनवाई के दरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से जानना चाहा कि आरटीआई अर मानवाधिकार ने भ्रष्टाचार को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई है। कुछ विभागों को सीमित तौर पर आरटीआई से छूट दी गई है लेकिन सूचना का अधिकार कानून के कई प्रावधान गोपनीयता कानून की अहमियत को कम करते हैं। राफेल लड़ाकू विमान के अति गोपनीय दस्तावेज के मसले पर सुप्रीम कोर्ट केन्द्र की आपत्तियों पर अपना निर्णय देगा। उसके बाद ही पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की जाएगी। केन्द्र की आपत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की बेंच ने केन्द्र की इन प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई पूरी की कि राफेल विमान सौदा मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले गैरकानूनी तरीके से प्राप्त किए गए विशिष्ट गोपनीय दस्तावेजों को आधार नहीं बना सकते है। यह बाद में पता चलेगा कि इस मुद्दे पर कोर्ट अपना आदेश कब सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं से अदालत ने कहा कि वे सबसे पहले लीक हुए दस्तावेजों की स्वीकार्यता के बारे में प्रारंभिक आपत्तियों पर ध्यान दें। अदालत ने कहा कि केन्द्र द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करने के बाद ही हम मामले के तथ्यों पर गौर करेंगे। इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे से संबंधित दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया और अदालत से कहा कि संबंधित विभाग की अनुमति के बगैर कोई भी इन्हें अदालत में पेश नहीं कर सकता। वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया।
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