प्रमाणपत्र के बिना इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को स्वीकार कर सकती हैं अदालतें: न्यायालय

Last Updated 04 Feb 2018 06:31:50 PM IST

डिजिटलीकरण के दौर में न्यायिक कार्यवाहियों में कम्प्यूटरीकृत रिकार्ड पर बढते भरोसे के बीच, उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि न्याय के हित में इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को स्वीकार्य बनाने के लिए प्रमाणपत्र होना अनिवार्य नहीं है.


(फाइल फोटो)

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि न्याय के हित में इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को स्वीकार्य बनाने के लिए प्रमाणपत्र होना अनिवार्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी को स्पष्ट किया. डिजिटलीकरण के दौर में न्यायिक कार्यवाहियों में कम्प्यूटरीकृत रिकार्ड पर बढते भरोसे के बीच यह धारा अदालती कार्यवाहियों में इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों की स्वीकार्यता से संबंधित है.

शीर्ष अदालत के इस आदेश का आपराधिक मामलों पर असर पडेगा जहां काल डिटेल रिकार्ड, सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल वीडियो रिकार्डिंग और सीडी को बढी संख्या में साक्ष्य के रूप में स्वीकारा जा रहा है.

न्यायमूर्ति ए के गोयल और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) की व्याख्या करते हुए कहा कि इस प्रावधान को केवल तब लागू किया जाना चाहिए जब इलेक्ट्रानिक साक्ष्य ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जाए जो खुद प्रमाणपत्र पेश करने की स्थिति में हो.

कानून की धारा 65 बी कहती है कि इलेक्ट्रानिक रिकार्ड को किसी अदालती कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य योग्य बनाने के लिए किसी जिम्मेदार पद वाले व्यक्ति द्वारा प्रमाणित करने की जरूरत है.

शीर्ष अदालत ने देश में अपराध स्थल की वीडियो रिकार्डिंग के मुद्दे पर गौर करते हुए इस सवाल पर विचार किया कि इलेक्ट्रानिक साक्ष्य को न्यायिक कार्यवाही में भरोसे के लिए स्वीकार किया जा सकता है या नहीं.



इसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह का प्रमाणपत्र पेश करने की स्थिति में नहीं है तो धारा 65 बी लागू नहीं होनी चाहिए.

पीठ ने कहा, ''अगर इसे अनुमति नहीं होगी तो यह उस व्यक्ति के लिए अन्याय होगा जिसके पास विसनीय सबूत, गवाह है.. इसलिए धारा 65 बी (4) के तहत प्रमाणपत्र की जरूरत हमेशा अनिवार्य नहीं है.''

भाषा


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