सिर्फ 80 करोड़ में सुखोई में फिट किया ब्रह्मोस
यह बात वर्ष 2013 की है, जब भारतीय वायुसेना ने एक प्रस्ताव रखा कि अगर सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को भारत के अग्रणी लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई में फिट (इंटीग्रेशन) कर दिया जाय तो दोनों का मिलन एक बहुत ही घातक मिश्रण होगा और किसी भी युद्ध का पासा पलटने वाला होगा.
सिर्फ 80 करोड़ में सुखोई में फिट किया ब्रह्मोस |
भारत ने इसके लिए सुखोई की रूसी मूल कंपनी से संपर्क साधा तो उसने 20 करोड़ डालर (लगभग 1300 करोड़ रुपये) की मांग की. भारत इसके लिए तैयार नहीं हुआ. फिर यह प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के समक्ष रखा गया और एचएएल के नासिक कैम्पस ने यह दुरूह कार्य महज 80 करोड़ रुपये में कर डाला. इससे भारतीय वायुसेना की शक्ति में भारी इजाफा तो हुआ ही, भारतीय वैज्ञानिकों की काबिलियत दुनिया ने देखी.
हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड ने ब्रह्मोस एयरोस्पेश के इस प्रस्ताव पर जब हामी भरी थी तो उस वक्त एचएएल के चेयरमैन थे डॉ. आर के त्यागी. त्यागी ने एक खास बातचीत में बताया कि ब्रह्मोस को सुखोई में इंटीग्रेट करने के प्रस्ताव के साथ ब्रह्मोस एयरोस्पेस के तत्कालीन सीईओ डॉ. शिवथनु पिल्लै ने एक और चुनौती उनके समक्ष रख दी. वह यह कि उनके पास इस काम पर खर्च करने के लिए सुखोई के मूल रूस निर्माताओं की 1300 करोड़ रुपये की मांग के मुकाबले सिर्फ 80 करोड़ का बजट है. उन्होंने एचएएल से अनुरोध किया कि वह इसी धनराशि में यह काम करे.
इस चुनौती को स्वीकार करते हुए चेयमैन डा. आरके त्यागी की अध्यक्षता में 26 नवम्बर 2013 को एचएएल बोर्ड की बैठक में यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया कि भले ही एचएएल को इस परियोजना में लाभ न हो, लेकिन राष्ट्रहित की एक अच्छी परियोजना होगी जिसे पूरा कर एचएएल यह दिखा सकेगा कि उसके पास किस उच्चस्तर की तकनीकी क्षमता है. त्यागी ने बताया कि एचएएल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि हमने इस काम से जुड़े डिजाइन और विकास का खर्च खुद उठाने का निर्णय लिया. मुनाफे और आकस्मिक लागत को भी छोड़ दिया तथा मात्र 80 करोड़ रुपये में इस परियोजना को पूरा करने का संकल्प लिया.
तत्कालीन चेयरमैन त्यागी कहते हैं कि उनके वैज्ञानिकों और तकनीशियनों की मेहनत उस वक्त रंग लायी जब 22 नवम्बर 2017 को भारतीय वायुसेना के सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमान ने ढाई टन वजन के ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के साथ कलाईकुंडा (पश्चिम बंगाल) वायुसेना अड्डे से उड़ान भरी और बंगाल की खाड़ी में 260 किलोमीटर दूर रखे एक लक्ष्य पर पहले ही बार में ब्रह्मोस मिसाइल की अचूक मार की.
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