सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी को मौलिक अधिकार करार दिया

Last Updated 24 Aug 2017 10:36:48 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है. प्रधान न्यायाधीश खेहर की अध्यक्षता वाली नौ जजों की बेंच ने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से निजता का अधिकार संरक्षित है.


सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्तिजे चेलामेर, न्यायमूर्तिएस ए बोबडे, न्यायमूर्तिआर के अग्रवाल, न्यायमूर्तिआर एफ नरीमन, न्यायमूर्तिए एम सप्रे, न्यायमूर्तिडी वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्तिसंजय किशन कौल और न्यायमूर्तिएस अब्दुल नजीर शामिल हैं और उन्होंने भी समान विचार व्यक्त किए.    
         
इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी कि क्या निजता के अधिकार को संविधान में प्रदत्त एक मौलिक अधिकार माना जा सकता है. यह सुनवाई दो अगस्त को पूरी हुयी थी. सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गयीं.
      
इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता सर्वश्री अरविन्द दातार, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमणियम , श्याम दीवान, आनंद ग्रोवर, सी ए सुन्दरम और राकेश द्विवेदी ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने या नही किये जाने के बारे में दलीलें दीं और अनेक न्यायिक व्यवस्थाओं का हवाला दिया था.
      
निजता के अधिकार का मुद्दा केन्द्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये आधार को अनिवार्य करने संबंधी केन्द्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था.
      
शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही निर्णय करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिये कदम उठायेंगे.
      
इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश के समक्ष इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी.


      
हालांकि, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी. संविधान पीठ के समक्ष विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है.
      
न्यायालय ने शीर्ष अदालत की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्मश: खडक सिंह और एम पी शर्मा प्रकरण में दी गयी व्यवस्थाओं के सही होने की विवेचना के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का निर्णय किया था. इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं है. खडक सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एम पी शर्मा प्रकरण में 1950 में फैसला सुनाया था.
      
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रखते हुये सार्वजनिक दायरे में आयी निजी सूचना के संभावित दुरूपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा  एक हारी हुयी लडाई  है.
         
इससे पहले, 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि निजता का अधिकार मुक्म्मल नहीं हो  सकता और सरकार के पास इस पर उचित प्रतिबंध लगाने के कुछ अधिकार हो सकते हैं.
      
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है.
      
केन्द्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था ,गरीब लोगों को  जिसे जीवन, भोजन और आवास के उनके अधिकार से वंचित करने के लिये प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.
      
इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुडे अनेक सवाल पूछे. इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है. उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है.

संविधान पीठ ने 19 जुलाई से इस मामले पर मैराथन सुनवाई शुरू की थी और तीन अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पैन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने निजता के अधिकार के मसले को नौ-सदस्यीय संविधान पीठ के पास स्थानांतरित किया था.
        
इससे पहले 18 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह तय करना जरूरी है कि संविधान के तहत निजता के अधिकार में क्या शामिल है और क्या नहीं? इसलिए इस मामले को नौ सदस्यों वाली संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए.
       
एटर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि सूचनात्मक निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के स्तर पर नहीं ले जाया जा सकता.
       
गौरतलब है कि 1954 में आठ न्यायाधीशों और फिर 1962 में छह न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला सुनाया था कि निजता का अधिकार मूलभूत अधिकार नहीं है. इन्हीं फैसलों के आधार पर सरकार ने मूलभूत अधिकारों के नाम पर आधार कार्ड को चुनौती देनी वाली याचिकाओं का विरोध किया था.

 

एजेंसियां


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