श्रमिकों का हित मोदी सरकार की प्राथमिकता: दत्तात्रेय
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने मजदूरों के हित में श्रम सुधारों को नरेंद्र मोदी सरकार की प्राथमिकता बतायी.
![]() केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय (फाइल फोटो) |
दत्तात्रेय ने कहा कि संसद के आगामी सत्र में श्रम एवं श्रमिकों के कल्याण से संबंधित विधेयकों को पारित कराने का पूरा प्रयास किया जाएगा.
दत्तात्रेय ने अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह में कहा कि मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद श्रम और श्रमिकों के हितों में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं. सरकार ने मातृत्व अवकाश संबंधी कानून बनाया है.
मातृत्व अवकाश के तहत छह महीने का अवकाश देने वाला भारत विश्व में तीसरा और ब्रिक्स देशों में पहला देश है. उन्होंने कहा कि बालश्रम और बोनस से संबंधित कानून भी महत्वपूर्ण है. सरकार देश भर में न्यूनतम मजदूरी लागू करने का प्रयास कर रही है और इसके बाद किसी भी में राज्य इससे कम मजदूरी का भुगतान नहीं होगा.
उन्होंने कहा कि श्रम सुधारों और श्रमिक कल्याण से संबंधित कुछ विधेयक संसद के दोनों सदनों में लंबित है. इसके अलावा श्रम सुरक्षा संहिता को जल्दी ही कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि श्रम और श्रमिकों से संबंधित विधेयकों को संसद के आगामी सत्र में पारित करा लिया जाएगा.
दत्ताोय ने इस अवसर पर कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) की सेवाएं लेने वाले कर्मचारियों को इलाज के लिए दो डिस्पेंसरियों का विकल्प देने की एक योजना शुरू की. इसके अलावा कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के दावों के निपटाने की ऑनलाइन प्रकिया का उद्घाटन भी किया. समारोह में वी वी गिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘श्रम कानूनों में संशोधन एवं श्रम सुधारों का प्रभाव‘’का लोर्कापण भी किया.
उन्होंने कहा कि ईएसआईसी की इस पहल से प्रवासी मजूदरों को लाभ होगा. इस योजना के अनुसार कोई भी कर्मचारी दो डिस्पेंसरियों का चयन कर सकता है और इनमें अपना इलाज करा सकता है.
इससे पूर्व श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की सचिव एम सत्यवती ने कहा कि सरकार असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे लाने का प्रयास कर रही है. हालांकि हाल के दिनों में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हुई है. ये कर्मचारी कुछ घंटे एक स्थान और कुछ घंटे अन्य स्थान पर काम करते हैं. ऐसे लोगों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना एक चुनौती है.
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