लड़कियों को कपड़े नहीं, जरूरत है मर्दों को सोच बदलने की

Last Updated 02 Aug 2013 12:18:28 PM IST

आज महिलाएं,पुरूषों से आगे निकल चुकी है, हर क्षेत्र में गौरव हासिल कर चुकी है पर फिर भी लोगों के दिल में उनके लिए इज्जत न के बराबर है.


छेडछाड

आये दिन शहरों में बलात्कार की खबरें सुनने को मिलती हैं, लोग कहते हैं कि उनके साथ दुष्कर्म करने की वजह वह स्वयं है.

आज-कल के छोटे कपड़े,उनके लिबास के कारण ही उनके साथ यह होता है. दिल्ली में निर्भया केस के बाद तो लड़कियों को ही इन सब घटनाओं का जिम्मेदार माना गया था.

कहा गया था लड़कियां लड़कों को मजबूर करती हैं, भला किस लड़की को अपनी इज्जत प्यारी नहीं,आखिर कौन लड़की चाहती है कि उसके साथ गलत हरकत हो.

बडे-बडे नेताओं,दिग्गज लोगों का भी यही मानना था कि लड़कियां लड़कों को उकसाती है. देश चलाने वाले नेता ही जब ऐसी बात कह रहे हैं तो अपराधियों की कौन कहे.

अगर लड़की के कपड़े ही उनका चरित्र बताते हैं तो मैं पूछती हूँ कि एक तीन साल की बच्ची के कपड़े कैसे उसका चरित्र बता सकता है, जिसे खुद कपड़े तक पहनने नहीं आते. जिसे दीन-दुनिया का कुछ पता नहीं, जिसे लड़की और लड़के में फर्क भी नहीं पता तो उसका चरित्र कपडों के माध्यम से कैसे पता चलेगा.

अगर इस बढ़ते अत्याचार के पीछे लड़की के छोटे कपडों का हाथ है तो नौ महीने की बच्ची का इसमें क्या दोष है?

क्यों उसके साथ ये दुष्कर्म हो रहा है, जिसे किसी भी चीज की समझ नहीं. लोग कैसे उसका चरित्र जान सकते हैं.

क्योंकि देश के तमाम लोग लड़कियों को जिम्मेदार बताते हैं. अगर उनकी नीयत ही ठीक नहीं तो इसमें लड़कियों का क्या कसूर?  हां, यह कहिये उनके देखने का नजरिया ही ठीक नहीं है. वो लोग तो बुरके में ढकी लड़की के साथ ही दुष्कर्म कर अपनी हवस को शांत कर लेते हैं.

इंसान की सोच उनका चरित्र बताती है न की कपड़े. पुरुषों का कहना है कि लड़की को ढककर रहना चाहिए. सलवार कमीज पहना चाहिए पर क्या यह सही उपचार है.

देखा जाए तो आधे से ज्यादा ऐसी घटनाएं ग्रामीण क्षेत्र में होती हैं. वहां तो लड़कियां पूरे लिबास में होती हैं तो फिर क्यों उसके साथ गलत होता है. अगर पुरुषों की नजर साफ हो तो छोटी नासमझ बच्चियां कभी उनकी हवस का शिकार नहीं बनतीं.

देश में लड़कियों को अपने कपड़े बदलने की जरूरत नहीं बल्कि पुरुषों को सोच बदलने की जरूरत है.

प्रियंका ध्यानी


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