यही है जिंदगी : अकेलेपन के दुख

Last Updated 02 Aug 2023 01:07:39 PM IST

कुछ दिन पहले खबर पर नजर पड़ी थी कि अमरीका में अकेलेपन ने महामारी का रूप ले लिया है। वहां बुजुर्गों से लेकर स्त्री, युवा, बच्चे सब किसी न किसी रूप में इसके शिकार हैं।


यही है जिंदगी : अकेलेपन के दुख

अपने देश में अमरीका को आदर्श की तरह देखा जाता है। अपना ही देश क्या, सारी दुनिया में यही हाल है। सबको पढ़ने-लिखने के बाद अमरीका का ही रु ख करना है। सालों पहले खबर यह भी आई थी कि दुनिया भर से दस करोड़ लोग अमरीका जाना चाहते हैं। वे इस देश को ड्रीम डेस्टिनेशन की तरह देखते हैं। अपने यहां लोग सरकारी संसाधनों से पढ़ते-लिखते हैं, सस्ती शिक्षा पण्राली का हर तरह से लाभ उठाते हैं। यहां के किसी संस्थान से डिग्री लेकर, अपनी शिक्षा का लाभ दूसरे देश को देने चले जाते हैं। आखिर रु पए के मुकाबले डॉलर में कमाई हमेशा आकषर्क है।

अमरीका और संपन्न देश अकेलेपन की महामारी से परेशान

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, वैसे ही अकेलापन तमाम समस्याओं को जन्म देता है। देखा जाए तो अकेलापन सिर्फ  अमरीका की समस्या नहीं है। चीन, जापान, यूरोप के तमाम देश इस समस्या से परेशान हैं। लेकिन दिलचस्प तथ्य यह है कि अमरीका या अन्य संपन्न देश जिस अकेलेपन की महामारी से परेशान हैं, अपने देश में बहुत से लोग इसकी बहुत रोचक पिक्चर दिखाते हैं। जैसे अकेले हों तो जो चाहे कर सकते हैं। कहीं भी घूम-फिर सकते हैं, किसी भी दोस्त से मिल सकते हैं। जब चाहे सो सकते हैं, जब चाहे उठ सकते हैं। न किसी से कुछ पूछने की जरूरत, न किसी को कुछ बताने की।

अकेलापन बढ़ने का प्रमुख कारण

अपनी जिंदगी के मालिक आप खुद होते हैं। लेकिन क्या वाकई यह बात सच है। अमरीका या अन्य देशों में जो लोग अकेलेपन से परेशान हैं, क्या उनके पास वे सारी सुविधाएं नहीं हैं,जो अपने देश में अकेलेपन की अच्छाई दिखाते हुए बताई जाती हैं। जी हां, सब कुछ है। बड़ा घर, गाड़ी, एक से एक गिजमोज, बैंक बैलेंस लेकिन कोई बात करने वाला नहीं। किसी आफत में परिवार का सदस्य आसपास नहीं। घरों में किसी आपदा के लिए हैल्प लाइंस लगी हैं। पुलिस फटाफट पहुंच भी जाती है। लेकिन अनेकों बार अकेले रहने वाले पुरुष या स्त्री घर में रहते हुए, घर में ही लगी हैल्पलाइन तक नहीं पहुंच पाते और जान गंवा देते हैं। ऐसे किस्से अब भारत में भी आम होने लगे हैं। जहां व्यक्ति के पास सब कुछ था लेकिन समय पर चिकित्सा सुविधा न मिलने से जान चली गई। देखा जाए तो अकेलापन बढ़ने का प्रमुख कारण परिवार का टूटना, परिवार संस्था में युवाओं का भरोसा लगातार घटना, अकेलेपन को किसी आदर्श की तरह देखना और अकेलापन बढ़ जाने पर तरह-तरह की शारीरिक और मानिसक व्याधियों से परेशान होना। जैसे कि यह नियति बन चुकी है।

गरीब के मुकाबले साधन-सम्पन्न अधिक परेशान

यह भी दिलचस्प है कि अकेलेपन की समस्या से गरीब के मुकाबले साधन-सम्पन्न अधिक परेशान होते हैं। क्योंकि जिस पैसे को अपनी ताकत मानते हैं, दुनिया को छोटी नजर से देखते हैं और मनुष्य से संबंध के मुकाबले तरह-तरह की मशीनों से सम्बंध ज्यादा आकषर्क लगते हैं। तोहफे में ऐसा अकेलापन पाते हैं, जिससे निपटना मुश्किल होता है। तमाम मानिसक व्याधाएं साधन सम्पन्नता के हिस्से आती हैं और आर्थिक गरीब के। इसीलिए गरीब के पास अकेलेपन के लिए कोई समय नहीं होता। उसका तो दिन-रात दो जून की रोटी की चिंता में ही निकल जाता है। जो लोग अकसर युवावस्था में अकेलेपन को अच्छा मूल्य मानते हैं, उन्हें बहुत से उम्रदराज ऐसे मिल सकते हैं। जो युवावस्था में उन्हीं की तरह सोचते थे और अब इस सोच के दुख भोग रहे हैं।
क्षमा शर्मा

क्षमा शर्मा/राष्ट्रीय सहारा


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