योग में है अद्भुत मानसिक शक्तियों को जागृत करने का रहस्य!

Last Updated 21 Jun 2021 12:12:56 PM IST

योग का तात्पर्य हम सिर्फ शारीरिक श्रम से निकाल रहे हैं जो कि इसके सीमित मायने हैं। सच्चे अर्थों में पूर्ण योग तभी है जब वो मस्तिष्क का विकास कर उसकी चमत्कारिक शक्तियों को भी सामने रखे।


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योग का तात्पर्य हम सिर्फ शारीरिक श्रम से निकाल रहे हैं जो कि इसके सीमित मायने हैं। सच्चे अर्थों में पूर्ण योग तभी है जब वो मस्तिष्क का विकास कर उसकी चमत्कारिक शक्तियों को भी सामने रखे। पतंजलि ने अपने अष्टांग योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि में यही बताने की कोशिश की। पतंजलि पुष्यमित्र शृंग के राज पुरोहित थे। बृहथरथ को मारकर शृंग वंश की स्थापना करने वाले पुष्यमित्र एक ब्राह्मण राजा थे। उन्होंने वेंदात को पुनर्स्थापित करने का सफल प्रयास किया। उन्हीं की वजह से हमारे वर्तमान ग्रंथ और गौरवशाली इतिहास के अंश आज भी मौजूद हैं। पतंजलि ने अपनी रचनाओं का श्रेय उपनिषदों को ही दिया। दरअसल उनका प्रयास था कि अलग-अलग जगह लिखे गये ज्ञान को वो एक जगह समायोजित करें। इसी प्रयास में उन्होंने उपनिषदों के सार पतंजलि योग सूत्र की रचना की।

इसमें चार पाद या हिस्से हैं। समाधि पाद (५१ सूत्र), साधना पाद (५५ सूत्र), विभूति पाद (५५ सूत्र), कैवल्य पाद (३४ सूत्र) कुल सूत्र = १९५। इन पादों में विभूति पात्र वो हिस्सा है जहा बकायदा मस्तिष्क की चमत्कारिक शक्तियों के बारे में बताया गया। इसे जानना इसीलिए जरूरी है क्योंकि सभी आश्चर्यमिश्रित आशंकाओं के साथ भारत के पुरातन इतिहास पर कई सवाल खड़े करते हैं। उदाहरण के लिए जिन बातों को मोटी मोटी किताबों में सहेज कर रखना संभव नहीं होता उन्हें भारतीय छात्र कंठस्थ कैसे कर लेते थे? श्रुति और स्मृति के जरिए इतनी व्यापक धरोहर को आगे कैसे बढ़ाया गया? भारतीय वैज्ञानिकों या ऋषि-मुनियों ने कैसे काल की अवधारणा और अंतरिक्ष विज्ञान में इतनी ऊंचाईयां पा ली? कैसे हजारों साल पहले चिकित्सा क्षेत्र में शल्य क्रियाओं तक के संदर्भ सुश्रुत संहिता में मिल जाते हैं?

विभुति पाद में पतंजलि यही बताते हैं कि यदि आप धारणा, ध्यान, समाधि की स्थिति में पहुंचते हैं और इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार जरिए अपने शरीर को सुयोग्य बनाते हैं तो बुद्धि निर्मल हो जाती है। इस निर्मल बुद्धि या रिफांइड माइंड में जादूई शक्तियां होती हैं जो सामान्य मनुष्य की बात नहीं होती। विभुति पाद में अतीन्द्रीय ज्ञान यान इंद्रीय जनित ज्ञान से भी आगे के ज्ञान की उपलब्धि के बारे में बताया गया है। इस ग्रंथ की सबसे अच्छी बात ये है कि ये पूरी तरह प्रायोगिक ज्ञान पर आधारित है। यानी आज भी कोई दिशा निर्देशों का ठीक ठीक पालन करे तो वो इन उपलब्धियों को पा सकता है।

भारतीय वेदांत में माइक्रोब्स तो मरुतगण कह कर संबोधित किया गया है। इन मरुतगणों या सुक्ष्माणुओं पर ही आज की माइक्रोबायोलॉजी आधारित है। आज का दौर सूक्ष्म विषाणुओं से ही लड़ने का है इनमें ये जीवाणु ही जीवन शक्ति देते हैं। इनके बारे में भी आपको विस्तार से जानकारियां मिलेंगे। समस्या ये है कि हम अपने इस वैदिक साहित्य के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। ये अच्छी बात है कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही सही आज पूरी दुनिया योग को अपना रही है लेकिन ये इसका सीमित रूप है। हमें अपने योग शास्त्र की पुनर्स्थापना करने की जरूरत है। जो प्रयास पुष्यमित्र शृंग ने किया था उसे आज एक बार फिर किए जाने की जरूरत है। भारत विश्व गुरू तब बनेगा जब भारतीय स्वयं अपने वैदिक साहित्य से परिचित होंगे। इसके लिए बहुत आवश्यक है कि हम अपनी शिक्षा पद्धति में इस साहित्य को भी स्थान दें।

 

- प्रवीण तिवारी



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