CSIR बनायेगा हर प्रकार के टीबी पर कारगर दवा

Last Updated 16 Aug 2017 04:58:29 PM IST

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (आईएमटेक) ने हर तरह के क्षय रोग (टीबी) के लिए कारगर दवा विकसित करने के वास्ते स्वास्थ्य क्षेत्र की वैश्विक कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के साथ मंगलवार को एक समहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये.


(फाइल फोटो)

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हषर्वर्धन की मौजूदगी में आईएमटेक के निदेशक डॉ. अनिल कौल और जॉनसन एंड जॉनसन के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी पॉल स्टोफल ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये. डॉ. हषर्वर्धन ने कहा कि भारत जैसे देश में टीबी के लिए नयी दवा का विकास और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहाँ अब भी गरीबी, कुपोषण और गंदगी की समस्या है. वैज्ञानिकों के सामने मुख्य चुनौती ऐसी दवा विकसित करना है जिसे कम से कम दिनों तक खाने की जरूरत हो.

यह दुनिया की पहली ऐसी परियोजना है जिसमें हर तरह के टीबी के इलाज में सक्षम दवा विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. टीबी एक ऐसी बीमारी है जिससे दूसरी बीमारियों का इलाज और जटिल हो जाता है.

डॉ. कौल ने कहा कि टीबी के विषाणु दवा के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर लेते हैं. इससे होने वाली बीमारियों को एमडीआर टीबी, एक्सडीआर और एक्सएक्सडीआर टीबी के नाम से जाना जाता है. जॉनसन एंड जॉनसन के साथ मिलकर आईएमटेक ऐसी दवाओं का विकास करेगी जो इन सब प्रकार के टीबी का सफलता पूर्वक इलाज कर सके. ये दवाएँ खाने वाली होंगी तथा एचआईवी पॉजिटव लोगों को भी बिना किसी परेशानी के दी जा सकेंगी. परियोजना का लक्ष्य ऐसी दवा बनाना है जिसका आकार छोटा हो, इसका सेवन कम करने की जरूरत हो और इसे कम अवधि तक खानी पड़े.

उन्होंने बताया कि दोनों संस्थानों ने दो-दो ऐसे पैटर्न की पहचान की है जिनके जरिये टीबी का बैक्टीरिया मौजूदा दवाओं के सेवन के बावजूद ऊर्जा हासिल करने और जीवित रहने में सक्षम होता है. इन चारों तरह को ऊर्जा स्रोतों को रोकने वाले अणुओं की भी पहचान कर ली गयी है. अब करार के तहत वैज्ञानिक इन अणुओं को दवा में विकसित करने और उसके बाजार तक लाने का काम करेंगे. उन्होंने कहा कि रासायनिक एवं सूक्ष्मजीव विज्ञान में अनुसंधान में जहाँ आईएमटेक को महारथ हासिल है, वहीं जॉनसन एंड जॉनसन क्लीनिकल ट्रायल और बाजार में दवा में उतारने का खास अनुभव रखती है.

दवा के विकास के लिए दोनों संस्थानों की संयुक्त टीम का गठन किया जायेगा और परियोजना की संयुक्त परिचालन समिति भी बनेगी. हालाँकि, अनुसंधान सीएसआईआर और जॉनसन एंड जॉनसन दोनों की प्रयोगशालाओं में समानांतर रूप से चलेगा.

डॉ. स्टोफल ने बताया कि यह दुनिया में अकेली ऐसी परियोजना है जिसमें सभी प्रकार के टीवी का इलाज दवाओं के एक ही कॉम्बीनेशन से हो जायेगा. इसमें कुल चार नयी दवाओं का विकास किया जायेगा जिन्हें जॉनसन एंड जॉनसन की हाल में विकसित दवा बेडाक्विलिन के साथ दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि हर दवा के विकास पर करोड़ों डॉलर का खर्चा आयेगा. उन्होंने बताया कि नयी दवाएँ पाँच से 10 साल में बाजार में पेश करने की उम्मीद है.


डॉ. स्टोफल ने इस बात से सहमति जताई कि भारतीय संस्थान के साथ साझेदारी में दवा का विकास करने से इसमें समय और लागत की बचत होगी. उन्होंने यह भी कहा कि भारत में बड़ी संख्या में इस बीमारी से संक्रमित आबादी तथा यहाँ के कठिन वातावरण के कारण अनुसंधान के यह उपयुक्त देश भी है. हालाँकि, दवा को बाजार में उतारने से पहले उसका अन्य देशों में भी परीक्षण किया जायेगा.

डॉ. हषर्वर्धन ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुये आश्वासन दिया कि नयी दवा किफायती होगी.
 

भाषा


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