पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का निधन, दुबई के अस्पताल में चल रहा था इलाज
लंबे समय से अमाइलॉइडोसिस बीमारी से परेशान दुबई के अस्पताल में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया। वे 79 वर्ष के थे।
![]() पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ |
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक जनरल (सेवानिवृत्त) परवेज मुशर्रफ ने रविवार को अंतिम सांस ली। स्थानीय मीडिया ने यह जानकारी दी। परिवार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, 79 वर्षीय पूर्व राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष मुशर्रफ एमाइलॉयडोसिस से पीड़ित थे।
बता दें कि एमाइलॉयडोसिस एक दुर्लभ बीमारी है। यह तब होती है जब एक असामान्य प्रोटीन शरीर में जमा होने लगता है, जिसे अमाइलॉइड कहा जाता है। इसमें शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, मुशर्रफ ने 1999 में देश में मार्शल लॉ लगाने के बाद मुख्य कार्यकारी का पद संभाला। इसके बाद 2001 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया।
पूर्व राष्ट्रपति का परिवार 1947 में नई दिल्ली से कराची चला गया था। वह 1964 में पाकिस्तानी सेना में शामिल हुए। वह क्वेटा के आर्मी स्टाफ एंड कमांड कॉलेज से ग्रेजुएट थे।
मुशर्रफ कई महीने से अस्पताल में भर्ती थे। उनके परिवार ने ट्विटर पर जानकारी देते हुए कहा था कि वे अमाइलॉइडोसिस नाम की बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसके चलते उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था।
ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक, अमाइलॉइडोसिस दुर्लभ और गंभीर बीमारियों का समूह है। इसमें इंसान के शरीर में अमाइलॉइड नाम का असामान्य प्रोटीन बनने लगता है। यह दिल, किडनी, लिवर, नर्वस सिस्टम, दिमाग आदि अंगों में जमा होने लगता है, जिस वजह से इन अंगों के टिशूज ठीक से काम नहीं कर पाते।
मुशर्रफ ने बनाया था कारगिल युद्ध का प्लान, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को भी दिया था 'धोखा'
कारगिल की लड़ाई का पूरा खाका उन्होंने ही तैयार किया था। खुद पाकिस्तान सरकार, इसके बहुत से पहलुओं से अनभिज्ञ थी। शुरुआत में तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ और उनकी कैबिनेट तक को लड़ाई के प्लान की भनक नहीं लग सकी।
इतना ही नहीं, जनरल मुशर्रफ ने कारगिल लड़ाई को लेकर तीनों सेनाओं के बीच खाई पैदा करने का प्रयास किया। पाकिस्तानी वायु सेना और नौसेना को मुशर्रफ की 'जंग' के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। जब भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया तो पाकिस्तान के हुक्मरान को जनरल मुशर्रफ के 'धोखे' की मार का अहसास हुआ।
खुद को तोप समझ बैठे थे
कारगिल की लड़ाई में जनरल परवेज मुशर्रफ, खुद को तोप समझ बैठे थे। उनकी योजना थी कि वे पाकिस्तानी थल सेना की मदद से कारगिल की लड़ाई जीत सकते हैं। यही कारण रहा कि उन्होंने पाकिस्तानी नौसेना और एयरफोर्स से भी लड़ाई की अहम जानकारियां छिपा लीं।
कारगिल की लड़ाई में भारतीय सेना के प्रमुख रहे वेद प्रकाश मलिक ने अपनी किताब 'फ्रॉम सरप्राइज टू विक्टरी' के चेप्टर 'द डार्क विंटर' में ऐसे कई खुलासे किए हैं। उन्होंने लिखा है, कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी फौज के जनरल परवेज मुशर्रफ के धोखे को समझने वाला कोई नहीं था। भारतीय एजेंसी, रिसर्च एंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) ने इस लड़ाई के दौरान पाकिस्तान में कई फोन कॉल इंटरसेप्ट की थी। परवेज मुशर्रफ और उनके विश्वासपात्र ले. जन. मोहम्मद अजीज खान के बीच जो कुछ बातचीत हुई, रॉ ने उसे भी इंटरसेप्ट किया।
चूंकि कारगिल की लड़ाई की सारी प्लानिंग परवेज मुशर्रफ ने तैयार की थी, इसलिए उन्होंने यह बात बाहर नहीं निकलने दी। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनका मंत्रिमंडल भी अंधेरे में रहा। पाकिस्तानी वायुसेना और नौसेना को भी बहुत कम एवं सामान्य जानकारी दी गई।
जेहादी के वेश में पाकिस्तानी सेना ने जब तक एलओसी पार नहीं कर ली, तब तक मुशर्रफ ने यह 'सीक्रेट' कहीं भी उजागर नहीं होने दिया। जब पाकिस्तानी सेना, कारगिल की चोटियों पर पहुंची तो ही मुशर्रफ ने पीएम नवाज को इस बारे में जानकारी दी। उसमें भी अति महत्वपूर्ण तथ्य छिपा लिए गए।
पाकिस्तानी पीएम को बताया गया कि जेहादियों ने कारगिल में घुसपैठ की है। उन्होंने पीएम को वैसे ही कुछ झूठे संदेश भी सुनाए, जो उन्होंने भारतीय सेना को धोखा देने के लिए पाकिस्तानी रेडियो पर जारी कराए थे। कारगिल की लड़ाई खत्म होने के कई साल बाद नवाज शरीफ ने सार्वजनिक तौर पर यह बात स्वीकार की थी कि परवेज मुशर्रफ को सेना की कमांड सौंपना, उनकी सबसे बड़ी गलती थी।
रेडियो पर 'बाल्टी और पश्तो' भाषा में जारी कराए थे 'संदेश'
जेहादियों का वेश बनाकर पाकिस्तानी सेना, कारगिल में प्रवेश कर चुकी थी। 'रॉ' और 'मिलिट्री इंटेलीजेंस' को गुमराह करने के मकसद से परवेज मुशर्रफ ने कारगिल में एलओसी पर झूठे रेडियो संदेश प्रसारित कराए। ये संदेश 'बाल्टी और पश्तो' भाषा में प्रसारित किए गए थे। उस वक्त 'एलओसी' पर पाकिस्तान के जितने भी जेहादी सक्रिय थे, वे आपसी बोलचाल के लिए इन्हीं दो भाषाओं का इस्तेमाल कर रहे थे। रेडियो पर जारी संदेशों में ऐसे हालात बयां किए जा रहे थे कि जिससे भारतीय एजेंसियों को लगे कि कारगिल क्षेत्र में जेहादी ही सक्रिय हैं।
पाकिस्तान सेना की घुसपैठ जैसा कुछ नहीं है। रेडियो संदेशों में कहा गया कि पाकिस्तानी सेना, जेहादियों का साथ नहीं दे रही है। ये सब भारतीय सेना को यह विश्वास दिलाने की चाल थी कि एलओसी पर जो कुछ चल रहा है, उसमें पाकिस्तानी सेना शामिल नहीं है। परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान सरकार को भी जेहादियों की घुसपैठ बताकर शांत कर दिया था।
तख्ता पलट करके सरकार पर कब्जा कर लिया
अक्टूबर 1999 में नवाज़ शरीफ़ ने जब मुशर्रफ़ को उनके पद से हटाने की कोशिश की तो मुशर्रफ़ के प्रति वफ़ादार जनरलों ने शरीफ़ का ही तख्ता पलट करके सरकार पर कब्जा कर लिया।
मई 2000 में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि पाकिस्तान में चुनाव कराए जाएं। मुशर्रफ़ ने जून 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति रफीक़ तरार को हटा दिया व खुद राष्ट्रपति बन गए।
अप्रैल 2002 में उन्होंने राष्ट्रपति बने रहने के लिए जनमत-संग्रह कराया जिसका अधिकतर राजनैतिक दलों ने बहिष्कार किया।
अक्टूबर 2002 में पाकिस्तान में चुनाव हुए जिसमें मुशर्रफ़ का समर्थन करने वाली मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल पार्टी को बहुमत मिला। इनकी सहायता से मुशर्रफ़ ने पाकिस्तान के संविधान में कई परिवर्तन कराए जिनसे 1999 के तख्ता-पलट और मुशर्रफ़ के अन्य कई आदेशों को वैधानिक सम्मति मिल गई।
मुशर्रफ़ के शासन के दौरान भारत पर उग्रवादी हमले बढ़े, लेकिन बाद में दोनों देशों के बीच शान्ति की बात-चीत भी आगे बढ़ी। 2005 में परेड पत्रिका ने मुशर्रफ़ को दुनिया के 10 सबसे बुरे तानाशाहों की सूची में शामिल किया। २४ नवम्बर २००७ को उन्होने सेना प्रमुख का पद त्याग दिया तथा असैन्य राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
पाकिस्तान के शासक के रूप में कार्यकाल के दौरान प्रमुख घटनाएं
अमेरिका पर आतंकवादी हमला (9/11)
11 सितम्बर 2001 के हमले के बाद जब संयुक्त राज्य अमरीका ने अफ़गानिस्तान और इराक पर युद्ध शुरु किया तो मुशर्रफ़ ने अमेरिका का पूरा समर्थन किया।
नवाब बुग्ती हत्याकांड
नवाब अकबर खान बुगती पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के एक राष्ट्रवादी नेता थे जो बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग एक देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
2006 में बलूचिस्तान के कोहलू जिले में एक सैन्य कार्रवाई में अकबर बुगती और उनके कई सहयोगियों की हत्या कर दी गई थी। इस अभियान का आदेश जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने दिया था जो तब देश के सैन्य प्रमुख और राष्ट्रपति दोनों थे।
आपातकाल
मुशर्रफ ने पाकिस्तान में 2007 में आपातकाल लागू कर दिया।
बेनजीर भुट्टो की हत्या
बेनजीर भुट्टो दिसम्बर 2007 में रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के बाद एक आत्मघाती हमले में मारी गई। मुशर्रफ पर उन्हें जरूरी सुरक्षा मुहैया नहीं कराने के आरोप लगे।
लाल मस्जिद पर हमला
मुशर्रफ के आदेश पर 2007 में लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई की गई जिसमें लगभग 90 धार्मिक विद्यार्थियों की मृत्यु हो गई थी।
आगरा शिखर वार्ता
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आगरा में पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष के रूप में मुलाकात की। इस मुलाकात का दोनों देशों के रिश्तों पर कोई खास असर नहीं पडा।
शीर्ष न्यायाधीश की बर्खास्तगी
9 मार्च 2007 को उन्होंने शीर्ष न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को जबरन पदमुक्त कर दिया। उनके इस कदम के बाद समूचे पाकिस्तान में वकीलों ने मुशर्रफ के खिलाफ आंदोलन कर दिया।
शासन के अंत के बाद के प्रमुख घटनाक्रम
मुशर्रफ का शासन समाप्त होने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए देश छोड़ दिया। किंतु वापस आते ही उन पर कई मुकद्दमे चलाए गए और इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
मुकद्दमे तथा गिरफ्तारी
पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो तथा बलूचिस्तान के राष्ट्रवादी नेता अकबर खान बुगती की हत्या तथा लाल मस्जिद की करवाई के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया।
2007 में आपातकाल के दौरान जजों को हिरासत में लिए जाने के मामले में भी केस चलाया गया।
2013 में नवाज शरीफ सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया। पाकिस्तान में इस आरोप के सही साबित होने पर मृत्युदंड तक का प्रावधान है।
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