अफगान महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से बाहर करने की कोशिश चिंतनीय : यूएन
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं और लड़कियों को सार्वजनिक जीवन से तेजी से हटाने की कोशिश पर गहरी चिंता जताई है।
संयुक्त राष्ट्र |
उन्होंने कहा कि नस्ली और धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे हजारा, ताजिक, हिंदू और अन्य समुदायों की महिलाएं युद्धग्रस्त देश में और असुरक्षित हैं।
संयुक्त राष्ट्र के 35 से अधिक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा, हम पूरे देश (अफगानिस्तान) के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को बाहर करने की हो रही लगातार और व्यवस्थागत कोशिश को लेकर चिंतित हैं।
उन्होंने कहा, यह चिंता और बढ़ जाती है अगर मामला नस्ली, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों का हो जैसे हजारा, ताजिक, हिंदू और अन्य समुदाय जिनके अलग विचार और दृश्यता उन्हें अफगानिस्तान में कहीं अधिक असुरक्षित बनाते हैं।
विशेषज्ञों ने कहा, आज हम देख रहे हैं कि तेजी से महिलाओं और लड़कियों को संस्थानों और प्रक्रिया सहित अफगानिस्तान के सार्वजनिक जीवन से मिटाने की कोशिश की जा रही है और उनकी सहायता और रक्षा करने के लिए पूर्व में गठित प्रणाली और संस्थानों को भी अधिक खतरा है।
उन्होंने अपनी इस राय के लिए महिला मामलों के मंत्रालय को बंद करने और अफगान स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग में महिलाओं की आमने-सामने की उपस्थिति पर रोक का हवाला दिया।
विशेषज्ञों ने कहा, गैर न्यायेतर हत्याओं और नस्ली व धार्मिक अल्पसंख्यकों के जबरन विस्थापन को लेकर आ रही खबरें बहुत ही परेशान करने वाली हैं। उन्होंने बताया, खबरें संकेत करती हैं कि जानबूझकर उनको निशाना बनाने, प्रतिबंधित करने और यहां तक देश से मिटाने की कोशिश की जा रही है।
समूह ने कहा, तालिबान नेता अफगानिस्तान में लैंगिक आधार पर भेदभाव, महिलाओं और लड़कियों के प्रति हिंसा को बड़े पैमाने पर एवं व्यवस्थागत तरीके से संस्थागत बना रहे हैं।
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