सीओपी 26 हमारी आखिरी सर्वश्रेष्ठ उम्मीद : आलोक शर्मा
पक्षकारों के 26 वें सम्मेलन (सीओपी26) के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने रविवार को कहा कि यह सम्मेलन पेरिस समझौता लागू करने के लिए ‘हमारी आखिरी सर्वश्रेष्ठ उम्मीद’ है।
![]() पक्षकारों के 26 वें सम्मेलन (सीओपी26) के अध्यक्ष आलोक शर्मा |
उन्होंने यहां सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत करते हुए यह कहा।
पेरिस समझौते ने वैश्विक तापमान में वृद्धि सीमित की है और 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को बरकरार रखा है। भारतीय मूल के कैबिनेट मंत्री शर्मा, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) सीओपी26 की ब्रिटेन की अध्यक्षता का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने दो सप्ताह तक चलने वाले सम्मेलन में अपनी भूमिका का जिक्र किया।
उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, मेरा मानना है कि हम वार्ता को आगे बढ़ा सकते हैं और महत्वाकांक्षा एवं कार्रवाई बढ़ाने के दशक की शुरुआत कर सकते हैं..लेकिन हमें जमीनी स्तर पर काम करना होगा। उन्होंने कहा, छह साल पहले, पेरिस में, हम अपने साझा लक्ष्यों पर सहमत हुए थे। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने की कोशिश के लिए 2015 के समझौते का जिक्र किया।
शर्मा ने कहा, 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए सीओपी26 हमारी अंतिम सर्वश्रेष्ठ उम्मीद है। यदि हम अभी कार्रवाई करते हैं और साथ मिल कर काम करते हैं तो हम अपने बेशकीमती वादे की रक्षा कर सकते हैं और पेरिस में जो कुछ वादा किया गया था, उसे ग्लासगो में पूरा करना सुनिश्चित कर सकते हैं।
इससे पहले, मंत्री ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए ‘र्वल्ड लीडर्स समिट’ में हिस्सा लेने आए 120 से अधिक देशों के नेताओं से अपील की कि वे धरती के लिए और भी प्रयास करें। यह शिखर सम्मेलन सोमवार और मंगलवार को होने वाला है। उन्होंने कहा, मेरा उन्हें बहुत स्पष्ट संदेश है। अतीत को पीछे छोड़ कर भविष्य पर ध्यान केंद्रित करें और इस एक मुद्दे पर एकजुट हों, जो हमारी धरती की रक्षा कर रही है। शर्मा ने कहा, यह इन सभी देशों के लिए नेतृत्व दिखाने का मौका है। मैं हर देश से और अधिक योगदान चाहता हूं।
ग्लोबल वार्मिग पर विमर्श
स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में रविवार से शुरू हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के सवरेत्तम उपायों पर चर्चा के लिए लगभग 200 देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इस सम्मलेन को सीओपी26 भी कहा जा रहा है।
सीओपी क्या है
सीओपी का पूर्ण अर्थ ‘कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज’ है। यह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर रूपरेखा तैयार करने के लिये आयोजित होने वाला सम्मेलन है। साल 1995 में पहली बार इसका आयोजन किया गया। पहले सम्मेलन से पूर्व साल 1992 में जापान के क्योतो शहर में एक बैठक हुई थी, जिसमें शामिल देशों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी। इन देशों ने साल 2015 के पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। छह साल पहले फ्रांस की राजधानी में हुए सम्मेलन में इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फ़ारेनहाइट) से नीचे रखने के लक्ष्य पर सहमति जतायी गई थी। इस साल सम्मेलन के लिए 25 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने पंजीकरण कराया है। ब्रिटिश अधिकारी आलोक शर्मा इसकी अध्यक्षता करेंगे।
हाई लेवल सेगमेंट
दुनिया भर के 100 से अधिक नेता सोमवार और मंगलवार को शिखर सम्मेलन की शुरुआत में भाग लेंगे, जिसे हाई लेवल सेगमेंट के रूप में जाना जाता है। इन नेताओं में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन शामिल हैं। इसके अलावा इसमें जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल भी शामिल होंगी जबकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी व्यक्तिगत रूप से शामिल होने की उम्मीद है। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और पोप फ्रांसिस ने ग्लासगो की अपनी यात्रा रद्द कर दी है, जबकि चीनी राष्ट्रपति शी जिन¨पग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो कार्यक्रम में व्यक्तिग रूप से शामिल नहीं होंगे, लेकिन वे वीडियो लिंक द्वारा भाषण दे सकते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान
पेरिस समझौते ने ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया, लेकिन प्रत्येक देश को अपने स्वयं के उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्रस्तुत करने की छूट दी गई, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के रूप में जाना जाता है। योजना का एक हिस्सा देशों के लिए नियमित रूप से समीक्षा करने और, यदि आवश्यक हो, पेरिस लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपने लक्ष्यों को अद्यतन करने के लिए था। पेरिस सम्मेलन के पांच साल बाद सरकारों को अपने नए एनडीसी जमा करने की आवश्यकता थी, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण उस समय सीमा को चुपचाप एक साल पीछे धकेल दिया गया।
पेरिस नियम पुस्तिका
समझौते पर हस्ताक्षर होने के कुछ साल बाद देशों को तथाकथित पेरिस नियम पुस्तिका को अंतिम रूप देने की उम्मीद थी, लेकिन समझौते के कुछ तत्व अधूरे रह गए। इसमें यह बताया गया है कि कैसे देश अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पारदर्शी तरीके से एकत्र कर जानकारी देते हैं और वैश्विक कार्बन बाजारों को कैसे विनियमित करते हैं।
जलवायु वित्त
सीओपी26 में शीर्ष मुद्दों में एक सवाल यह है कि गरीब देश अक्षय ऊर्जा के पक्ष में सस्ते जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल का खर्च कैसे उठाएंगे। इस बात पर आम सहमति है कि जिन अमीर देशों का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है, उन्हें भुगतान करना होगा। हालांकि यह अब भी एक सवाल है कि उन्हें कितना भुगतान करना होगा।
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