पाकिस्तान में शरीफ के बयान के बाद सेना के खिलाफ गुस्सा

Last Updated 29 Sep 2020 04:19:02 AM IST

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा बाजवा-खान साझेदारी पर दिए बयान के बाद नागरिकों के बीच शीर्ष सैन्य नेतृत्व के खिलाफ बड़े पैमाने पर गुस्सा उबल रहा है।


पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (file photo)

बीते रविवार को इस्लामाबाद में आयोजित एक महत्वपूर्ण बहुदलीय वर्चुअल कॉन्फ्रेंस को पीएमएल-एन प्रमुख नवाज शरीफ ने लंदन से संबोधित करते हुए पाकिस्तान की सेना को निशाने पर लिया था। उन्होंने सेना पर इमरान खान की अक्षम सरकार को सत्ता में लाने का आरोप लगाया, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और विदेशी संबंधों को खत्म करने, मीडिया को सेंसर करने और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान के सशस्त्र बल देश के संविधान और संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के विजन के अनुसार सरकारी प्रणाली से दूर रहें, और लोगों की पसंद में हस्तक्षेप न करें।



शरीफ ने कहा, "हमने इस देश को अपनी नजर में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मजाक बना दिया है।" पूर्व प्रधानमंत्री, जिन्हें 2017 में प्रधानमंत्री पद से अपदस्थ कर दिया गया था और पाकिस्तान में भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए थे, पिछले साल नवंबर से इलाज के सिलसिले में ब्रिटेन में हैं।

कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान के मुख्य विपक्षी दलों ने भाग लिया, जिसमें मौलाना फजलुर रहमान की अगुवाई वाला जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (फजल) भी शामिल रहा। रहमान ने खान सरकार को सत्ता में बने रहने देने के लिए विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया और उनसे 'ठोस निर्णय लेने' का आग्रह किया।

शरीफ ने मौलाना फजलुर रहमान के साथ सहमति जताई और कहा कि सेना समानांतर सरकार बन गई है और हमारी समस्याओं का मूल कारण है। उनके भाषण ने तुरंत सेना पर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ दी, जो कि कथित रूप से लोकतांत्रिक पाकिस्तान में अभी भी उतनी ही शक्तिशाली है, जितनी कि तब जब उसने देश पर शासन किया था।

इस्लामाबाद निवासी शाहिद ने फोन पर आईएएनएस को बताया, "पाकिस्तान में आम आदमी आज यह जानता है कि प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तानी सेना के सिविलियन प्रतिनिधि होने के अलावा कुछ नहीं है, जो वास्तव में देश को चलाता है। इसे यहां हाइब्रिड मार्शल लॉ कहा जाता है।"

पंजाब प्रांत में नवाज शरीफ के समर्थक बताते हैं कि वह ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्होंने देश का लोकतंत्रीकरण किया। प्रधानमंत्री (1997-99) के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने संविधान संशोधन के माध्यम से अधिक संसदीय प्रणाली के पक्ष में सेमी-प्रेसीडेंशियल प्रणाली को पूर्ववत करने का प्रयास किया। हालांकि, हफ्तों बाद, संसद को एक सैन्य तख्तापलट द्वारा सस्पेंड कर दिया गया था और देश में सेमी-प्रेसिडेंशियल प्रणाली को एक कानूनी आदेश के तहत फिर से लगाया गया था।

किसी भी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान में अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। यह पाकिस्तान में एक आम बात है कि अपदस्थ प्रधानमंत्रियों या मंत्रियों पर आरोप लगाया जाएगा या उनके खिलाफ मुकदमा चलेगा, सजा दी जाएगी या फिर निर्वासन में भेजा जाएगा।

सूत्रों ने कहा कि वर्तमान सेना प्रमुख मेजर जनरल कमर जावेद बाजवा और आईएसआई चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद, निर्वासन में रहते हुए पाकिस्तान की राजनीति में शरीफ की वापसी से इतना परेशान थे कि उन्होंने मीडिया में लीक कर दिया था कि प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेताओं ने सर्वदलीय कॉन्फ्रेंस से पहले बाजवा और फैज से गुप्त रूप से मुलाकात की थी। इसका उद्देश्य यह दिखाना था कि नवाज शरीफ को छोड़कर, पाकिस्तान में सभी विपक्षी दल सेना के सहयोगी हैं।

सरकार के आलोचकों का मानना है कि सैन्य शासन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचने और सीमा पार आतंक सहित सामाजिक, आर्थिक और विदेशी नीति पर सैन्य विफलताओं पर घरेलू दबाव से बचने के लिए इमरान खान को सेना द्वारा चुना गया था।

इस्लामाबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता अजीज ने कहा, "पाकिस्तान लगभग दिवालिया हो गया है, हमने प्रवासी लोगों की बड़ी मदद करने से इनकार कर दिया है और चीन के साथ गठबंधन करके, हमने अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी खो दी है और तुर्की और ईरान के साथ मैत्री किए जाने से सऊदी अरब के साथ हमारे संबंध भी लगभग खत्म हो गए हैं।"

पाकिस्तान की रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका ने हाल ही में लिखा कि बाजवा-हमीद की जोड़ी ने सोना को समाज के साथ बढ़ते असहज संबंधों की दिशा में धकेल दिया है।

आईएएनएस
नई दिल्ली/इस्लामाबाद


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment