Karwa chauth vrat katha : करवा चौथ के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा

Last Updated 31 Oct 2023 08:47:32 AM IST

इस वर्ष करवाचौथ का व्रत 1 नवंबर 2023 के दिन रखा जाएगा। करवा चौथ की यह कथा अति पावन है। इस कथा को करवा चौथ के दिन सुनन बहुत शुभ माना जाता है।


Karwa chauth vrat katha

Karwa chauth vrat katha : करवाचौथ व्रत एक ऐसा व्रत है जो हिन्दू समाज की सुहागिन स्त्रियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपनी पति की लंबी आयु तथा रक्षा के लिए रखा जाता है। यह व्रत साल में एक बार आता है। इस व्रत को पूरे दिन निर्जला रखा जाता है। इस व्रत में चन्द्र दर्शन का अधिक महत्व है। चन्द्र दर्शन के बाद ही महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। इस वर्ष करवाचौथ का व्रत 1 नवंबर 2023 के दिन रखा जाएगा। यहां पढ़ें करवाचौथ व्रत की कथा।
 
karwa chauth vrat ki katha in hindi
करवाचौथ व्रत की कथा - करवा चौथ की पहली कथा

देवी करवा तथा उनके पति तुंगभद्रा नदी के किनारे निवास करते थे। एक दिन देवी करवा के पति तुंगभद्रा नदी में स्नान करने गए। उसी बीच उनका पांव नदी के एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। यह देखकर उन्होंने करवा को पुकारा। करवा दौड़ते हुए नदी के पास पहुंची तथा अपने पति के प्राणों को मगरमच्छ के मुंह में फंसा देखा। यह देखकर करवा ने शीघ्रता से एक कच्चे धागे में मगरमच्छ को बांध दिया। करवा के सतीत्व भाव के कारण मगरमच्छ उस कच्चे धागे से टस से मस नहीं हो सका। अब करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में थे।

करवा ने यमराज से गुहार लगाई कि वह उसके पति को जीवनदान दें तथा उस मगरमच्छ को मृत्यु लेकिन इस बात पर यमराज ने कहा कि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। यह सुनकर करवा यमराज से बोली, " यदि आपने मेरे पति को जीवनदान नहीं दिया तो मैं आपको श्राप दे दूंगी।" सती के श्राप से भयभीत होकर यमराज ने करवा के पति को जीवनदान दिया तथा मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया। यही कारण है कि करवाचौथ के दिन सुहागिन स्त्रियां व्रत रखकर करवा माता से यह प्रार्थना करती हैं कि हे माता जैसे आपने अपने पति के प्राणों को यमराज से मुक्त कराया उसी प्रकार हमारे सुहाग की भी रक्षा करना।

करवा चौथ व्रत कथा की दूसरी कथा  - karwa chauth vrat ki katha in hindi
एक साहूकार के सात बेटे और और उनकी एक बहन करवा थी। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई और उसने करवा चौथ का व्रत रखा। जब साहूकार के सभी पुत्र भोजन करने बैठे तो उन्होंने बहन से भी भोजन करने को कहा। लेकिन बहन ने कहा कि आज मेरा करवा चौथ का व्रत है और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खाना खाऊंगी।

बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देखकर भाई दुखी हो गए और उन्होंने घर के बाहर  एक पेड़ पर दीपक जलाकर रख दिया, जो दूर से देखने में चतुर्थी का चाँद लग रहा था। घर आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा कि चांद निकल आया। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। अपने भाईयों की बात मानकर करवा ने अग्नि को चांद समझकर अर्घ्य दे दिया और उसके बाद भोजन ग्रहण कर लिया।

जब उसने पहला टुकड़ा मुंह में डाला तो उसे छींक आ गई, दूसरे टुकड़े में बाल निकल आया, तीसरा टुकड़ा मुंह में डालते ही पति की मृत्यु का समाचार उसे मिला। तब उसकी भाभी उसे सारी सच्चाई बताई कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज़ हो गए जिसकी वजह से ऐसा हुआ। सच्चाई जानने के बाद करवा ने अपने पति को पुनर्जीवित करने का निश्चय किया।

अगले साल जब करवा चौथ का दिन आया तो वो भाभियों से आशीर्वाद लेने पहुंची। इस दौरान उसने प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह किया।

जब करवा ने अपनी सबसे छोटी भाभी से सुहागिन बनने का आग्रह किया तो भाभी ने अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से निकले अमृत को उसके पति के मुंह में डाल दिया, जिससे करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहते हुए जीवित हो गया, इसलिए पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को रखा जाता है।

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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