हल ढूंढ़ना होगा
हम पृथ्वी को ‘धरती मां’ कहते हैं। क्या इसका मतलब है कि धरती पर सारा अपराध रु क जाएगा? नहीं।
सद्गुरु |
अलग-अलग तरह के अपराध होते हैं। स्त्रियों पर यौन हमले बहुत आम हैं। इसके कई पहलू हैं। पहली चीज यह है कि एक संस्कृति के रूप में भारत के लिए यह पहली पीढ़ी है, जिसमें स्त्रियां वास्तव में सड़क पर निकल रही हैं, पुरु षों के साथ चल रही हैं, और उनके करीब रह कर काम कर रही हैं। लाखों युवा गांवों से शहरों में आ रहे हैं। उनके गांव में उनके लिए स्त्री का मतलब उनकी मां, उनकी मौसी, बुआ या दादी होती थी। अब वे शहर आकर युवा लड़कियों को सड़क पर चलते देखते हैं। उनके लिए यह बहुत नया है।
इंसानों में सेक्सुअलिटी या यौनिकता होती है। पंद्रह से पच्चीस की उम्र के बीच हार्मोन का असर अधिकतम होता है। अगर आपको व्यस्त रखने के लिए कुछ नहीं है, सिर्फ आपके हार्मोन आपके भीतर उछल रहे हैं, फिर उसके बाद आप अपने गांव से शहर आते हैं, और अचानक युवा लड़कियों को देखते हैं। अब वह अकेले शहर आता है। एक कमरे में दस लड़कों के साथ रहता है, दिन-रात एक बेकार और अमानवीय माहौल में काम करता है। वह बंदी शिविर की तरह होता है। अधिकांश लड़के उस तरह की स्थितियों में रहते हैं, और उसके लिए कोई समाधान नहीं होता। उनके हार्मोस, उसके शरीर, उसकी भावनाओं, उसके जीवन के लिए। एक भी आदमी जाकर उनसे नहीं पूछता, ‘तुम जीवन में क्या करोगे?
किससे शादी करोगे? अपना जीवन कैसे बसाओगे?’ कोई एक इंसान भी उनकी तरफ देखता है? नहीं। जब वे शाम को दोस्तों के साथ शराब पीते हैं, तो पागल हो जाते हैं। लोग हर तरह के पोर्नोग्राफिक (अश्लील) वीडियो भी बेचते हैं। वह उन चीजों को देखता है और सोचता है कि वही करना चाहिए। सामाजिक तौर पर इसका क्या हल है?
आप उन्हें योग या साधना सिखा रहे हैं, ताकि वे ब्रह्मचारी बनकर इन चीजों से मुक्त? हो जाएं? नहीं, क्या आप उन्हें कोई हल दे रहे हैं? अगर वह गांव में होता, तो अठारह, उन्नीस साल की उम्र तक उसकी शादी हो चुकी होती। अब उसे कोई उम्मीद नहीं है। वह बस वहां रहता है और वह पागलपन की चीजें करेगा। एक इंसान की प्रकृति यही है, यह हमें समझना चाहिए।
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