विश्व शांति
मनुष्य का इतिहास अशांति का और युद्ध का इतिहास रहा है। मनुष्य के अतीत की पूरी कथा दुख, पीड़ा, हिंसा और हत्या की कथा है।
आचार्य रजनीश ओशो |
आज ही यह कोई सवाल खड़ा नहीं हो गया है कि विश्व में शांति कैसे स्थापित हो, यह सवाल हमेशा से रहा है। यह सवाल आधुनिक नहीं है, यह मनुष्य का चिरंतन और सनातन का सवाल है। तीन हजार वर्षो में पंद्रह हजार युद्ध मनुष्य ने किए हैं। अब तक कोई शांति का समय नहीं जाना जा सका है! जो थोड़े-बहुत दिन के लिए शांति होती है वह भी शांति झूठी होती है। उस शांति में भी युद्ध की तैयारी चलती है।
युद्ध के समय में हम लड़ते हैं और शांति के समय में हम आगे आने वाले युद्ध की तैयारी करते हैं। एक छोटे से बच्चे से उसके एक पड़ोसी ने पूछा कि मैंने देखा है कि तुम एक छोटी सी पेटी में हमेशा पैसे इकट्ठे करते हो, ये पैसे तुम्हें किस बात के मिलते हैं और फिर इकट्ठा करके तुम क्या करते हो? तो उस बच्चे ने कहा, मुझे रोज रात को लीवर ठीक रखने की दवाई और तेल पीना पड़ता है।
और जब मैं एक खुराक पी लेता हूं तो मुझे चार आने ईनाम के मिलते हैं, वह पैसे मैं पेटी में इकट्ठा करता हूं। उस पड़ोसी ने पूछा कि फिर तुम उन इकट्ठे पैसों का क्या करते हो? उसने कहा, उनसे मेरे पिताजी फिर दवाई खरीद लेते हैं, फिर तेल खरीद लेते हैं। उन पैसों से पिताजी फिर लीवर ठीक करने की दवाई खरीद लेते हैं। पड़ोसी बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, यह कैसा चक्कर हुआ! हम थोड़े दिन शांति में रहते हैं, उस शांति में हम युद्ध का फिर इंतजाम कर लेते हैं। फिर हम युद्ध करते हैं और युद्ध हम इसलिए करते हैं ताकि हम शांति पा सकें और फिर हम जब शांत हो जाते हैं तो हम युद्ध की तैयारी करते हैं।
युद्ध के समय हम मांग करते हैं कि शांति चाहिए और शांति के समय हमारी मांग चलती रहती है कि युद्ध चाहिए। बड़ी अदभुत, बड़े चक्कर की कथा है! और अगर यह आज का कोई सवाल होता, अगर यह कोई कंटेम्प्रेरी सवाल होता, तो शायद आज की दुनिया में कोई भूल-चूक हम निकाल लेते और उसको ठीक कर लेते। यह कोई ऐसा नहीं है कि कोई यह कहने लगे कि दुनिया भौतिकवादी हो गई है इसलिए युद्ध हो रहे हैं। युद्ध हमेशा रहे हैं। चाहे राम का जमाना हो और चाहे कृष्ण का जमाना हो, चाहे राम-राज्य हो और चाहे कोई राज्य हो।
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