तप
करीब चार सौ साल पहले की बात है। जिला रायगढ़ (मध्य प्रदेश) में बिल्वा नाम का एक आदमी रहता था।
![]() सद्गुरु |
ऊंची कदकाठी, गठीले बदन का सजीला व्यक्तित्व। जिंदगी से बहुत प्यार करने वाला बिल्वा यह तो जानता ही नहीं था कि डर किसे कहते हैं। यह किस चिड़िया का नाम है। सपेरों के उस कबीले में उसकी छवि, लीक से हटकर चलने वाले एक अजीब इंसान की थी। शिव का भक्त बिल्वा स्वभाव से ही विद्रोही था, जाहिर है कि हमेशा से समाज के कायदे-कानून को तोड़ने वाला। वह चलता तो इतने गर्व से था, मानो यह धरती उसे विरासत में ही मिली हो।
वह एक ऐसा व्यक्ति था जो सामाजिक ढांचे में फिट नहीं बैठता था और उसे लोग एक विद्रोही के रूप में देखते थे। उसने कई विद्रोहपूर्ण कार्य भी किए, उनमें से एक यह था कि उस समय में प्रचलित कड़े जाति-भेद के नियमों की उसने कतई परवाह नहीं की। इस कारण बहुत कम उम्र में ही उसे मौत दे दी गई। बिल्वा को एक पेड़ से बांध कर उस पर उसी का एक भयंकर जहरीला सांप छोड़ दिया गया।
इस तरह उसे जहरीले सांप से कटवाया गया। सांप का जहर उसकी रग-रग में फैलने लगा और उसका खून जमने लगा। दर्द बढ़ता जा रहा था। उसके फेफड़े सिकुड़ने लगे थे। उसने मन ही मन तय किया कि इन जालिमों को अपनी भयानक मौत का तमाशा देखकर खुश नहीं होने देगा। उसने अपनी सांसों पर नजर रखना शुरू कर दिया। सांसें भारी होने लगीं, मगर वह सिर्फ उन्हीं पर ध्यान देता रहा, जब तक कि उसकी सांसें थम न गई। उसने पूरी जागरूकता में शरीर छोड़ा। वह अपने जीवन-काल में सिर्फ एक भक्त था, उसने कभी कोई आध्यात्मिक साधना नहीं की थी।
लेकिन अपने अंतिम समय में उसने जिस तरह से अपनी सांसों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और जिस तरह से पूरी जागरूकता में उसने अपना शरीर छोड़ा, उसने उसका भविष्य कई तरह से बदल दिया। यही जागरूकता बिल्वा को अगले जन्म में अध्यात्म की गहरी खोज करने वाले इंसान के रूप में वापस ले आई। वह एक शिवयोगी थे। उनका जीवन बहुत ही तकलीफदेह था। कहना होगा कि दिल दहलाने वाले तप का जीवन था। शिवयोगी ने कठोर तप से योग में असाधारण दक्षता हासिल की।
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