अनूठी सीख
गुरु नानक के जीवन का महत्त्व यह नहीं कि उन्होंने नया धर्म शुरू किया था, जैसा कि बहुत से लोगों को लगता है कि उन्होंने किया था।
सद्गुरु |
गुरु नानक किसी भी शास्त्र को नहीं जानते थे, बस जीवन को जानते थे। आज हम उनकी शिक्षाओं के रूप में जो कुछ भी जानते हैं, वो बहुत कम है। पर हम कल्पना कर सकते हैं कि उन्होंने क्या कहा होगा, क्योंकि भीतरी अनुभव को शब्दों में ढालने वाले सभी लोग एक ही बात बोलते हैं।
हो सकता है कि शास्त्र पुराने हो जाएं, पर भीतरी अनुभव कभी पुराना नहीं होता। वह हमेशा मुसकुराते रहने वाले और सीधे-सादे संतों की तरह नहीं थे। अच्छी तरह जानते थे कि कब सख्त होना है, और कब शांत। एक बार एक रईस के यहां मेहमान बनकर पहुंचे। कुछ दिनों बाद जब चलने लगे तो उन्होंने उस धनी आदमी को एक सुई दी और कहा-‘इसे अपने पास रखना। फिर जब कभी मुझे मिलो, इसे मुझे वापस कर देना।’
गुरु नानक के जाने के बाद उस धनी ने यह बात अपनी पत्नी को बताई। पत्नी ने नाराज होते हुए कहा-‘तुमने गुरु से यह सुई क्यों ली? वह बूढ़े हो चुके हैं। मान लो वह नहीं रहे तो उन्हें सुई कैसे लौटाओगे? उनके जैसे शख्स की सेवा करना ठीक है, लेकिन उनसे कुछ भी लेना गलत बात है।
उनकी मौत हो गई तो तुम हमेशा के लिए उनके कर्जदार रहोगे। उस एक कर्म को मिटाने में असमर्थ रहोगे और उसकी वजह से तुम्हें हजारों जन्म लेने होंगे। यह अच्छी बात नहीं है। किसी तरह से उन्हें ढूंढो और तुरंत यह सुई वापस कर आओ।’ वह रईस गुरु की खोज में निकल पड़ा। दो महीने बाद उसने उन्हें ढूंढ लिया और कहा-‘गुरु जी, मैं इस सुई को अपने पास नहीं रखना चाहता। आप बूढ़े हो चुके हैं।
अगर मर गए तो इस सुई को स्वर्ग में साथ ले जाकर वहां तो आपको दे नहीं सकता। मैं हमेशा के लिए आपका कर्जदार हो जाऊंगा।’ गुरु बोले-‘तो तुम जानते हो कि इस सुई को स्वर्ग में साथ नहीं ले जा सकते?’ आदमी बोला-‘बिल्कुल’। गुरु ने फिर कहा-‘अगर तुम सुई तक अपने साथ लेकर नहीं जा सकते तो उस धन दौलत का क्या जो तुम एकत्र कर रहे हो, उसे भी तो लेकर नहीं जा पाओगे।’ उस धनी को गुरु का संदेश मिल गया।
वह उनके चरणों में गिर गया। घर लौट कर उसने केवल उतना अपने पास रखा, जितने की उसे अपने परिवार के लिए जरूरत थी। खुद को उन कामों के लिए समर्पित कर दिया, जिनकी समाज को जरूरत थी। दुनिया में सीमित स्थान है, और संसाधन भी सीमित हैं।
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