अहंकार
अहंकार एक पहेली है। यह कुछ अंधकार जैसा है-जिसे तुम देख सकते हो, अनुभव कर सकते हो, जो तुम्हारे मार्ग में बाधा है पर उसका कोई अस्तित्व नहीं है।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
उसमें कोई सकारात्मकता नहीं है। वह केवल एक अभाव है, प्रकाश का अभाव। अहंकार का कोई अस्तित्व नहीं है- भला उसका समर्पण कैसे कर सकते हो। अहंकार केवल जागरूकता का अभाव है। कमरे में घना अंधेरा है। तुम चाहते हो कि अंधेरा कमरे से चला जाए।
तुम वह सब कुछ कर सकते हो जो तुम्हारे बस में है-उसे बाहर धक्का दो, उससे लड़ो-परंतु उससे जीत नहीं सकते। बहुत हैरत की बात है, कि तुम उस चीज से पराजित हो जाओगे जिसका कोई अस्तित्व नहीं है।
थक कर तुम्हारा मन कहेगा कि अंधेरा इतना शक्तिशाली है कि इसे दूर करना, इसे भगाना तुम्हारी क्षमता के बाहर है। लेकिन यह निष्कर्ष सही नहीं है; यह जर्मन है, लेकिन यह सही नहीं है। बस जरूरत है भीतर एक दिया जलाने की। अंधकार को भगाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें उससे लड़ने की आवश्यकता नहीं है-यह निपट मूर्खता है। बस, एक दिया ले आओ, और अंधकार नहीं मिलेगा। ऐसा नहीं कि वह बाहर चला जाएगा-वह कहीं जा नहीं सकता, क्योंकि पहली बात तो यह कि उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। न तो वह भीतर था, न ही वह बाहर जाता है।
प्रकाश भीतर आता है, प्रकाश बाहर चला जाता है; उसका एक सकारात्मक अस्तित्व है। तुम दिया जला सकते हो और अंधकार नहीं रहता; तुम दिया बुझा सकते हो और अंधकार आ जाता है। अंधकार के साथ कुछ करने के लिए, तुम्हें प्रकाश के साथ कुछ करना पड़ेगा-बहुत विचित्र बात है, बहुत बेतुकी भी, पर तुम कर क्या सकते हो? चीजों का यही स्वभाव है। तुम अहंकार का समर्पण नहीं कर सकते, क्योंकि यह होता ही नहीं।
तुम थोड़ी जागरूकता ला सकते हो, थोड़ा चैतन्य, थोड़ा प्रकाश। अहंकार के बारे में बिल्कुल भूल जाओ; अपने भीतर जागरूकता लाने पर पूरा ध्यान लगा दो। और जिस क्षण तुम्हारी चेतना इकट्ठी होकर एक आग की लपट बन जाएगी, तुम्हें अहंकार ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। तुम जागरूक नहीं हो तो तुम समर्पण नहीं कर सकते और तुम जागरूक हो तो इसका समर्पण नहीं कर सकते। एक अज्ञानी समर्पण नहीं कर सकता। और बुद्धिमान व्यक्ति समर्पण की सोच भी नहीं सकता क्योंकि इसका अस्तित्व ही नहीं।
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