समयानुसार

Last Updated 01 Nov 2021 03:58:27 AM IST

आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने वाले भी जब समय का ठीक-ठाक उपयोग नहीं कर पाते, इस सम्बन्ध में जागरूक और विवेकशील नहीं होते तो बड़ा आश्चर्य होता है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

इससे अच्छे तो वे लोग ही हैं, जो बेचारे किसी प्रकार जीवन-निर्वाह के साधन और आजीविका जुटाने में ही लगे रहते हैं। कम से कम उन्हें यह पछतावा तो नहीं होता है कि जीवन के बहुमूल्य क्षणों का पूर्ण उपयोग नहीं कर सके। आजीविका भी अध्यात्म का ही एक अंग है, अतएव सम्पूर्ण न सही, कुछ अंशों में तो उन्होंने मानव-जीवन का सदुपयोग किया ही।

हाथ पर हाथ रखकर आलस्य में समय गंवाने वाले सामाजिक जीवन में गड़बड़ी ही फैलाते हैं, भले ही वे कितने ही बुद्धिमान, भजनोपदेशक, कथावाचक, पण्डित या संत-संन्यासी ही क्यों न हों। समय का सदुपयोग करने वाला घसियारा भी बेकार बैठे रहने वाले पण्डित से बढ़कर है, क्योंकि वह समाज को किसी न किसी रूप में समुन्नत बनाने का प्रयास तो करता ही है।

रस्किन के शब्दों में-‘जवानी का समय विश्राम के नाम पर नष्ट करना घोर मूर्खता ही है क्योंकि यही वह समय है, जिसमें मनुष्य अपने जीवन का, अपने भाग्य का अपनी इच्छा के अनुरूप निर्माण कर सकता है। जिस तरह लोहा ठण्डा पड़ जाने पर घन पटकने से भी कोई लाभ नहीं होता, उसी तरह अवसर निकल जाने पर मनुष्य का प्रयत्न भी व्यर्थ चला जाता है।

विश्राम करें, अवश्य करें क्योंकि अधिक कार्यक्षमता प्राप्त करने के लिए विश्राम अति आवश्यक है, लेकिन उसका भी समय निश्चित कर लेना चाहिए और विश्राम के लिए ही लेटना चाहिए।’ मनुष्य कितना ही परिश्रमी क्यों न हो यदि वह अपने परिश्रम के साथ ठीक समय का सामंजस्य नहीं करेगा तो कहना होगा कि निश्चय ही उसका श्रम या तो निष्फल चला जाएगा अथवा अपेक्षित फल नहीं ला सकेगा।

किसान परिश्रमी है, किंतु यदि वह अपने श्रम को समय पर काम में नहीं लाता है, तो वह अपने परिश्रम का पूरा लाभ नहीं उठा सकता। वक्त पर नहीं जोतकर असमय पर जोता गया खेत अपनी उर्वरता को प्रकट नहीं कर पाता। असमय बोया हुआ बीज बेकार चला जाता है, वक्त पर नहीं काटी गई फसल नष्ट हो जाती है। संसार में प्रत्येक काम के लिए निश्चित वक्त  पर न किया हुआ काम समय निकलने के बाद में कितना भी परिश्रम करने पर सफल नहीं होता।



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