नर-नारी
काम का अर्थ विनोद, उल्लास और आनन्द है। मैथुन को ही काम नहीं कहते। काम क्षेत्र की परिधि में वह भी एक बहुत ही छोटा और नगण्य सा माध्यम हो सकता है, पर वह कोई निरन्तर की वस्तु तो है नहीं।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
यदा-कदा ही उसकी उपयोगिता होती है। इसलिए मैथुन को एक कोने पर रखकर उपेक्षणीय मानकर भी काम लाभ किया जाता है।
स्नेह, सद्भाव, विनोद, उल्लास की उच्चस्तरीय अभिव्यक्तियां जिस परिधि में आती हैं, उसे आध्यात्मिक काम कह सकते हैं। नर-नारी के बीच व्यापक सद्भाव सहयोग की, सम्पर्क की स्थिति में ही व्यक्ति और समाज का विकास सम्भव है। उससे हानि रत्ती भर भी नहीं। स्मरण रखा जाए कि पाप या व्यभिचार का सृजन सम्पर्क से नहीं दुर्बुद्धि से होता है। पुरु ष डाक्टर नारी के प्रजनन अवयवों तक का आवश्यकतानुसार ऑपरेशन करते हैं।
उसमें न पाप है, न अश्लीलता, न अनर्थ। रेलगाड़ी की भीड़ में नर-नारियों के शरीर चिपके रहते हैं। जहां पाप वृत्ति न हो वहां शरीर का स्पर्श दूषित कैसे होगा? हम अपनी युवा पुत्री के शिर और पीठ पर स्नेह का हाथ फिराते हैं, तो पाप कहां लगता है। सान्निध्य पाप नहीं है। पाप तो एक अलग ही छूत की बीमारी है जो तस्वीरें देखकर भी चित्त को उद्विग्न कर सकने में समर्थ है। इलाज इस बीमारी का किया जाना चाहिए।
हमारी कुत्सा का दंड बेचारी नारी को भुगतना पड़े, यह सरासर अन्याय है। इस अनीति को जब तक बरता जाता रहेगा, नारी की स्थिति दयनीय ही बनी रहेगी और इस पाप का फल व्यक्ति और समाज को असंख्य अभिशापों के रूप में बराबर भुगतना पड़ेगा। भगवान वह शुभ दिन जल्द ही लाए जब नर-नारी स्नेह सहयोग की तरह, मित्र और सखा की तरह एक दूसरे के पूरक बनकर सरल और स्वाभाविक नागरिकता का आनन्द लेते हुए जीवन यापन कर सकने की मन:स्थिति प्राप्त कर लें। हम विकारों को रोके, सान्निध्य को नहीं।
सान्निध्य रोक कर विकारों पर नियंत्रण पा सकना सम्भव नहीं है। इसलिए हमें उन स्रोतों को बन्द करना पड़ेगा, जो विकारों और व्यभिचार को भड़काने के लिए उत्तरदायी हैं। अग्नि और सोम, प्राण और रयि, ऋण और धन विद्युत प्रवाहों का समन्वय इस सृष्टि के संचरण और उल्लास को अग्रगामी बनाता चला आ रहा है। नर-नारी का सौम्य सम्पर्क बढ़ाकर हमें खोना कुछ नहीं, पाना अपार है।
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