दिमाग
हमें इस बात को समझना चाहिए कि हमारी जीवन ऊर्जा एक खास तरह से व्यवस्थित होती है।
सद्गुरु |
आपने देखा होगा कि अलग-अलग लोगों की क्षमता अलग-अलग स्तर की गतिविधियों के लिए अलग-अलग होती है। जब हम कर्म की बात करते हैं तो हमारा मतलब अपने भीतर मौजूद कुछ खास तरह के ‘प्रोग्राम’ से होता है। ऐसी कई सारी चीजें इस तरह से घटित हुई कि आपके कार्मिंक ढांचे ने खुद को एक खास तरीके से सजा लिया।
ये कर्म फिलहाल जिस रूप से व्यक्त हो रहा है उसे प्रारब्ध कहते हैं। सिर्फ एक पीढ़ी पहले तक मेरी मां और दादी अपनी रोजमर्रा की बातचीत के दौरान हर तीन से चार वाक्यों में ‘कर्म,’ ‘प्रारब्ध,’ ‘मुक्ति’ या ‘मोक्ष’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करती रहती थीं। यह सब किसी आध्यात्मिक बातचीत के दौरान नहीं, बल्कि अपनी रोजमर्रा की आम बातचीत में होता था। क्योंकि तब लोग हमेशा इन चीजों के प्रति जागरूक हुआ करते थे।
दरअसल, इस तरह से आप दूसरों को उसी तरह से स्वीकार करने की कोशिश करते हैं, जैसे वे हैं। क्योंकि जब आप लोगों के करीब रहते हैं तो उनकी कई छोटी-छोटी चीजों पर भी आप बौखला जाते हैं। ‘आखिर क्यों यह इंसान इस तरह से व्यवहार कर रहा है?’ ‘अरे यह तो उसके कर्म हैं।’ यानी वह फिलहाल जो भी कर रहा है, वह मजबूर है ऐसा करने को। इसलिए उसके बारे में कोई राय बनाने का कोई मतलब नहीं है। दरअसल, जिस तरह की आपकी शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक या ऊर्जा की गतिविधियां होती हैं, वह पहले से ही तय होती हैं।
तो अब आप उसका बुनियादी रूप बदलना चाहते हैं। इस मामले में यहां ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो आपको प्रभावित कर रही हैं-आपकी आनुवांशिक (वंश से आई) याददाश्त, कार्मिंक याददाश्त, जीवन की कई चीजों का असर व अनुभव जैसे बहुत सारे पहलू हैं। अब आप उन सारी चीजें से परे जाने की कोशिश कर रहे हैं। ये सारी चीजें आपके जीवन को बनाती हैं। अगर व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो यह व्यवस्था बिल्कुल ठीक है, लेकिन अब आप जीवन की उपयोगिता से परे जाना चाहते हैं, जीवन के बारे में जानना चाहते हैं। मैं आपके कर्मो में अभी बदलाव कर सकता हूं, लेकिन अगर आपके भीतर की कोई बुनियादी चीज बदल जाए तो आपका संघर्ष बेहिसाब बढ़ जाएगा।
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