तीन दुख

Last Updated 21 Jan 2021 04:09:00 AM IST

समस्त दु:खों का कारण है-अज्ञान, अशक्ति व अभाव। जो इन तीनों को जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा, वह उतना ही सुखी बन सकेगा।


श्रीराम शर्मा आचार्य

अज्ञान के कारण मनुष्य का दृष्टिकोण दूषित हो जाता है। वह तत्वज्ञान से अपरिचित होने के कारण उल्टा-सीधा सोचता और करता है। तद्नुरूप उलझनों में फंसता जाता है और दु:खी बनता है। स्वार्थ, लोभ, अहंकार और क्रोध की भावनाएं मनुष्य को कर्त्तव्यच्युत करती हैं और वह दूरदर्शिता को छोड़कर क्षणिक लाभ वाले बातें ही सोचता है तथा वैसे ही करता है।

फलस्वरूप उसके विचार और कार्य पापमय होने लगते हैं। पापों का निश्चित परिणाम दु:ख ही है। अज्ञान के कारण वह अपने और दूसरे सांसारिक गतिविधियों के मूल हेतुओं को नहीं समझ पाता और असंभव आशाएं रखता है। इस उल्टे दृष्टिकोण के कारण साधारण सी बातें उसे दु:खमय दिखाई देती हैं जिसके कारण वह रोता-चिल्लाता रहता है। अपने करीबियों की मृत्यु, साथियों की भिन्न रुचि, परिस्थितियों का उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है। पर अज्ञानी सोचता है कि मैं जो चाहता हूं, वही होता रहे। अज्ञान के कारण भूलें भी अनेक प्रकार की होती हैं।

समीपस्थ सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है, यह भी दु:ख का हेतु है। अशक्ति का अर्थ है-निर्बलता। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक, आत्मिक निर्बलता के कारण मनुष्य अपने स्वाभाविक अधिकारों का भार अपने कंधों पर उठाने में समर्थ नहीं होता। फलस्वरूप उसे वंचित रहना पड़ता है। शरीर को बीमारी ने घेर रखा हो तो स्वादिष्ट भोजन, मधुर संगीत आदि निर्थक हैं। धन-दौलत का कोई कहने लायक सुख उसे नहीं मिल सकता। बौद्धिक निर्बलता हो तो साहित्य, मनन, चिंतन का रस प्राप्त नहीं हो सकता। आत्मिक निर्बलता हो तो सत्संग, प्रेम, भक्ति आदि का आनंद दुर्लभ है। सर्दी जो बलवानों को बल-बुद्धि प्रदान करती है, रसिकों को रस देती है, वह कमजोरों को निमोनिया, गठिया आदि का कारण बन जाती है।

जो तत्व निर्बलों के लिए प्राणघातक हैं, वे ही बलवानों को सहायक सिद्ध होते हैं। कमजोर को सताने और मिटाने के लिए अनेकों तथ्य प्रकट हो जाते हैं। अभावजन्य दु:ख है-पदाथरे का अभाव। अन्न, वस्त्र, मकान, औषधि आदि के अभाव में विविध प्रकार की पीड़ाएं, कठिनाइयां भुगतनी पड़ती हैं। उचित आवश्यकताओं को कुचलकर, मन मारकर बैठना पड़ता है और जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षणों को मिट्टी के मोल नष्ट करना पड़ता है। योग्य और समर्थ व्यक्ति भी साधनों के अभाव में लुंज-पुंज अनुभव करते हैं और दु:ख उठाते हैं। तीनों प्रकार के दु:खों के कारणों को दूर करने के लिए प्रयास करना चाहिए।



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