संतोष की तलाश

Last Updated 15 Jan 2021 12:30:56 AM IST

आज हम में से हरेक खुशी और शांति की तलाश कर रहा है। यह खोज सर्वव्यापी है। आखिरकार दुखी तो कोई भी नहीं रहना चाहता।


राजिन्दर महाराज

लोग अलग-अलग तरीकों से खुशियां ढूंढने की कोशिश करते हैं। कुछ इसे धन-दौलत और दुनियावी चीजों में ढूंढते हैं। कुछ इसे यश और प्रसिद्धी में पाना चाहते हैं। कुछ इसे सांसारिक रिश्तों-नातों में तलाश करते हैं। कुछ लोग फिल्म, संगीत, सांस्कृतिक गतिविधियां, टी.वी. और शारीरिक भोग-रसों जैसे दुनियावी मनोरंजनों में खुशियां ढूंढने की कोशिश करते हैं।

अन्य लोग खेलकूद देखकर या उनमें भाग लेकर खुशियों की तलाश करते हैं। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो शराब और अन्य नशीले पदाथरे के जरिए खुशियां पाना चाहते हैं। अधिकतर लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के द्वारा ही खुशियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। हमें एक कार खरीदने की इच्छा हो सकती है; हमें एक मकान खरीदने की इच्छा हो सकती है; हमें इतिहास या विज्ञान का अध्ययन करने की इच्छा हो सकती है; या हमें इस संसार की किसी भी वस्तु की इच्छा हो सकती है। हमारी कोशिश यही होती है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा कर पाएं।

हमारा जीवन ऐसे ही गुजरता चला जाता है, जिसमें हम एक के बाद एक अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में ही लगे रहते हैं। समस्या यह है कि हमारी इच्छाओं का कोई अंत ही नहीं होता। जब हमारी एक इच्छा पूरी हो जाती है, तो हमारे अंदर दूसरी पैदा हो जाती है। जब वो भी पूरी हो जाती है, तो हमारे अंदर कोई और इच्छा उत्पन्न हो जाती है, और उसके बाद फिर कोई अन्य इच्छा जाग जाती है।

इस तरह हमारा जीवन गुजरता चला जाता है। यह सच है कि आधुनिक संस्कृति हमारे अंदर नई-नई इच्छाओं को पैदा करती है। हम पोस्टरों, होर्डिग्स, टी.वी. और रेडियो पर रोज नये-नये विज्ञापन देखते हैं। विज्ञापनकर्ता हमें सिखाते हैं कि हमारे लिए फलां इलेक्ट्रिॉनिक उपकरण, या फलां फैशन के कपड़े, या फलां कार बहुत ही जरूरी है। वो हमें यकीन दिलाते हैं कि अगर हम तुरंत इन चीजों को खरीद नहीं लेते, तो इसका मतलब हम में और हमारे जीवन में कुछ-ना-कुछ गड़बड़ जरूर है। यदि हम इन चीजों पर विचार करें, तो पाएंगे कि ये हमें वो स्थाई खुशियां नहीं देतीं जिनका हमसे वादा किया जाता है।



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