सामाजिकता

Last Updated 07 Jan 2021 12:05:26 AM IST

सामान्य दृष्टि से विचार करने पर सामाजिकता का अर्थ समाज के हितों का ध्यान रखना ही प्रतीत होता है, लेकिन सामाजिकता का अर्थ इतना मात्र नहीं है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

समाज हित के लिए एकाकी प्रयास भी किए जा सकते हैं। प्राचीन ऋषि-महर्षि सारा जीवन घने जंगलों में बिता देते थे और समाज का स्तर किस प्रकार ऊंचा उठे, इसके लिए विचार करते और योजनाएं बनाया करते थे। समाज को ऊंचा उठाने के लिए अपना जीवन ही होम कर देने के आदर्श स्तुत्य हैं, किन्तु ककहरा से आरंभ करने वाले साधक के लिए अचानक उस स्थिति की कल्पना करना अव्यावहारिक होगा। इसका अर्थ समाज के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वालों का गौरव घटाना नहीं है।

कहा इतना भर जा सकता है कि हमें आरंभ सामाजिक बनने से करना चाहिए। स्वयं कार्यकुशल और सक्षम होने के बावजूद कितने ही व्यक्ति औरों से तालमेल न बिठा पाने के कारण अपनी प्रतिभा का लाभ समाज को नहीं दे पाते। समाज में रहकर अन्य लोगों से तालमेल बिठाने तथा अपनी क्षमता-योग्यता का लाभ समाज को देने की स्थिति भी सामाजिकता से ही प्राप्त हो सकती है। बहुधा यह भी होता है कि कई व्यक्ति अकेले तो कोई जिम्मेदारी आसानी से निभा लेते हैं, किन्तु उनके साथ कुछ व्यक्तियों को और जोड़ दिया जाए तथा कोई बड़ा काम सौंप दिया जाए तो वे जिम्मेदारी से कतराने लगते हैं।

बहुधा ही नहीं, प्राय: ऐसा होता है। कुछ व्यक्तियों को यदि किसी कार्य की जिम्मेदारी सौंप दी जाए, तो हर व्यक्ति यह सोचकर अपने दायित्व से बचने होने की सोचने लगता है कि दूसरे लोग इसे पूरा कर लेंगे। सामूहिक उत्तरदायित्वों के प्रति अवहेलना या उपेक्षा का भाव मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसका दुष्प्रभाव व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन, दोनों पर पड़ता है। समाज के हितों का ध्यान रखना, समाज में रहते हुए अन्य लोगों से तालमेल बिठाना तथा सामूहिक उत्तरदायित्वों को अनुभव कर उन्हें पूरा करने के लिए तत्पर रहना अपने व्यक्तित्व को सामाजिक बनाने की दिशा में अग्रसर करना ही है। जीवन उत्कर्ष के सभी इच्छुकों, प्रयासियों को सामाजिक गुणों के विकास की आवश्यकता और महत्ता ध्यान में रखनी चाहिए तथा उन गुणों को अर्पित करते चलना चाहिए।  
 



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